Monday, September 24, 2018

मन्दिर का नल


मन्दिर का नल टपक रहा था । यदि एक वासर लग जाता तो नल का टपकना रुक सकता था । लोग आते, उसी
नल से हाथ होते थे व मन्दिर में प्रवेश करते थे । किसी का ध्यान उस तरफ नहीं जाता था ।
    बारह वर्षीय करण अपनी माँ के साथ मन्दिर गया । टपकता हुआ नल देखकर उसने बन्द करने का प्रयत्न किया किन्तु नल बन्द नहीं हुआ । उसकी माँ ने कहा, ‘बेटा नल का वाशर खराब हो गया होगा । इसीलिए नल टपक रहा है ।
    वह लोग मन्दिर गए, पूजा की । करण की माँ ने पुजारी से कहा— ‘पुजारी जी! बाहर नल टपक रहा है । उसे ठीक करवा दीजिए ।
    पुजारी जी ने हँसते हुए कहा— ‘बहन जी! पानी ही तो है, बहने दो ।’
          करण बोला— ‘पुजारी जी! पानी तो बहुत कीमती होता है । एक बूँद पानी भी बहुत कीमती होता है ।’
    संयोगवश मंदिर के प्रबंधक महोदय भी वहाँ खड़े थे । उन्होंने करण के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा— ‘बड़ा प्यारा बच्चा है । बहन जी! आप इसकी माँ हैं ।’
      करण की माँ हाथ जोड़कर बोली— ‘जी हाँ!’
‘आपने बड़े अच्छे संस्कार बच्चे को दिए हैं । मैं आज ही नल ठीक करवाता हूँ ।’
करण ने कहा— ‘धन्यवाद अंकल! अगर कहीं भी नल टपकता देखें तो तुरन्त ठीक करवा दें । अगर इसी तरह नल टपकते रहे तो एक दिन पानी के लिए तरसना पड़ सकता है ।’