Monday, January 28, 2019

नर्सरी शिक्षा : क्या, कब, क्यों व कैसे ?- पुस्तक मंगाने हेतु संपर्क - मोबाइल.- 9654135918 e-mail : chilbil.shubh@gmail.com

बच्चों को पहली कक्षा से पूर्व शिक्षा प्राप्ति के लिए तैयार करने हेतु जो शिक्षा अनौपचारिक रूप से या बिना पाठ्यक्रम निर्धारित किए हुए दी जाती है उसे पूर्व प्राथमिक शिक्षा, शाला पूर्व शिक्षा या स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम या नर्सरी शिक्षा कहते हैं । पूर्व प्राथमिक शिक्षा के लिए नर्सरी और के0 जी0 विद्यालयों की स्थापना बच्चे की विद्यालय के प्रति रुचि जाग्रत करने के लिए हुई थी । उद्देश्य यह था कि इनके माध्यम से स्कूल से ऊबने वाले बच्चों की संख्या में कमी की जाए, किन्तु अब तो इन विद्यालयों में तीन वर्ष की आयु से ही बच्चों को पढ़ना–लिखना सिखाया जाने लगा है, यह गलत है । नर्सरी शिक्षा का उद्देश्य बच्चे को अक्षर ज्ञान करवाना नहीं वरन् उसकी क्षमता का अधिकतम सीमा तक विकास करना और विद्यालय के प्रति रुचि जाग्रत कर उसे पढ़ने के लिए तैयार करना 
है ।
सरकारी विद्यालयों में भी कुछ सप्ताहों के लिए पूर्व प्राथमिक शिक्षा या नर्सरी शिक्षा की बहुत आवश्यकता महसूस की जा रही है ताकि बच्चा विद्यालय के वातावरण से परिचित हो सके तथा प्राथमिक शिक्षा के लिए तैयार हो सके । इसीलिए सन् 1999 में देश के केन्द्रीय विद्यालयों में पहली कक्षा में एडमीशन के बाद छ: सप्ताह का स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम प्रारम्भ किया गया । 
बच्चों का बचपन–प्रकृति का अमूल्य उपहार है । जिस प्रकार खेत के तैयार हो जाने पर उसमें बीज डालने पर बहुत अच्छी फसल तैयार होती है, उसी प्रकार बच्चे की पढ़ाई प्रारम्भ होने से पूर्व यह आवश्यक है कि उसकी पढ़ाई के प्रति रुचि जाग्रत की जाए । विद्यालय उसकी सुखद कल्पनाओं की परिपूर्ति का स्थान हो । इस पुस्तक में नर्सरी शिक्षा के उद्देश्य, केन्द्रीय विद्यालय के बच्चोंं पर किया गया प्रायोगिक अनुभव व निष्कर्ष, नर्सरी शिक्षक की प्राथमिक गतिविधियाँ, नर्सरी शिक्षा का कार्यान्वयन, बच्चों के स्वस्थ विकास हेतु कुछ गतिविधियाँ, बच्चों के मानसिक रोग (निदान, कारण और समाधान), बच्चों के संतुलित विकास में शिक्षक व अभिभावकों का योगदान वर्णित है । शिक्षा के माध्यम के रूप में खेल व खेल–सामग्री की उपलब्धता व निर्माण के बारे में भी बताया गया है । 
बच्चों के खेल, कहानियाँ व कुछ लोकप्रचलित पहेलियाँ तथा शिशुगीत भी दिए गए हैं । शिशुगीतों, कहानियों आदि का शिशु मन पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभाव के बारे में भी वर्णन है ।

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