हमारी सांस्कृतिक धरोहर क्या है ? वेदों व उपनिषदों आदि में क्या है ? हमारे मनीषियों का चिन्तन क्या है ?
यदि बच्चों को प्रारम्भ से ही सहज जीवन व्यतीत करने दिया जाए, परिवार में प्यार–दुलार मिले तो हमारी संस्कृति स्वयं ही समृद्ध होगी व ऊँचाई के नए आयामों का संस्पर्श कर सकेगी । परिवार में गरीबी हो सकती है किन्तु बच्चे का बचपन सहज हो, मानसिक बोझ व चिन्ताओं से लदा हुआ न हो ।
निर्भया जैसे काण्ड हमारी संस्कृति के लिए दाग हैं । ऐसी घटनाएँ भविष्य में न हो, उनका कारण व निवारण प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । वास्तविक मूल्यपरक शिक्षा क्या है ? मूल्यों को कैसे सहजरूप में बालहृदय में स्थापित किया जा सकता है, वर्णित है ।
इसका प्रत्यक्ष उदाहरण एक लेख में वर्णित है,‘जब राष्ट्रपति की पोती को घर में खाने के लिए चावल नहीं मिला ।’ यह सत्य घटना उस समय की है जब देश में अनाज की कमी थी । इसलिए जनता से आह्वान किया गया कि वह सप्ताह में एक दिन अन्न न खावें । तत्कालीन राष्ट्रपति ने इस नियम को अपने घर में भी लागू किया तथा घर में बच्चों तक को उस दिन अन्न खाने के लिए नहीं दिया जाता था ।
यदि ऐसा सभी लोग करें तो हमारी संस्कृति एक आदर्श संस्कृति बन सकती है ।
यदि बच्चों को प्रारम्भ से ही सहज जीवन व्यतीत करने दिया जाए, परिवार में प्यार–दुलार मिले तो हमारी संस्कृति स्वयं ही समृद्ध होगी व ऊँचाई के नए आयामों का संस्पर्श कर सकेगी । परिवार में गरीबी हो सकती है किन्तु बच्चे का बचपन सहज हो, मानसिक बोझ व चिन्ताओं से लदा हुआ न हो ।
निर्भया जैसे काण्ड हमारी संस्कृति के लिए दाग हैं । ऐसी घटनाएँ भविष्य में न हो, उनका कारण व निवारण प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है । वास्तविक मूल्यपरक शिक्षा क्या है ? मूल्यों को कैसे सहजरूप में बालहृदय में स्थापित किया जा सकता है, वर्णित है ।
इसका प्रत्यक्ष उदाहरण एक लेख में वर्णित है,‘जब राष्ट्रपति की पोती को घर में खाने के लिए चावल नहीं मिला ।’ यह सत्य घटना उस समय की है जब देश में अनाज की कमी थी । इसलिए जनता से आह्वान किया गया कि वह सप्ताह में एक दिन अन्न न खावें । तत्कालीन राष्ट्रपति ने इस नियम को अपने घर में भी लागू किया तथा घर में बच्चों तक को उस दिन अन्न खाने के लिए नहीं दिया जाता था ।
यदि ऐसा सभी लोग करें तो हमारी संस्कृति एक आदर्श संस्कृति बन सकती है ।
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