‘भगवान जो करता है, अच्छा ही करता है।’ मंत्री जी बोले।
राजा हँसने लगे–‘मंत्री जी! अगर आपके ऊपर कोई विपत्ति आ जावे, तब भी आप यही कहेंगे।’
‘अवश्य ही सरकार।’
‘ठीक है समय आने पर देखेंगे।’
एक बार राजा और मंत्री अपने सैनिकों के साथ वन–विहार को निकले। झाड़ियों में फँस कर राजा की अंगुली कट गई। राजा दर्द के मारे चिल्लाने लगे। एक ओर राजा की मरहम–पट्टी हो रही थी, दूसरी ओर मंत्री जी ने कहा– ‘सरकार! भगवान जो करता है अच्छा ही करता है। भगवान की दया है कि अधिक चोट नहीं लगी।’
राजा दर्द से पहले ही त्रस्त थे। मंत्री के उपदेश सुनकर आगबबूला हो उठा। उसने सैनिकों से कहा–‘इस मंत्री को खूब पीटो, तब इसे पता चलेगा कि भगवान जो करता है, वह अच्छा करता है कि नहीं।’
राजा के आदेश पाकर न चाहते हुए भी सैनिक मंत्री की पिटाई करने लगे। मंत्री जी पिटते रहे और कहते रहे–‘भगवान जो करता है, अच्छा ही करता है, इस पिटाई में भी मेरी कुछ भलाई ही होगी।’
यह सुनकर राजा को दर्द की अवस्था में भी हँसी आ गई, उन्होंने कहा–
‘सैनिकों! मंत्री जी को अब छोड़ दो, पिट–पिट कर भी कह रहे हैं कि पिटाई में भी भगवान कुछ भलाई कर रहा है। लगता है मंत्री जी पागल हो गए हैं, भला पिटाई में क्या भलाई हो सकती है।’
मंत्री जी पिटाई के कारण लंगड़े हो गये थे, फिर भी उन्होंने कहा–
‘सरकार! हमारे लिए जो भी होता है, सभी क्रियाकलापों में भगवान की दया छुपी होती है। हम समझ नहीं पाते हैं। मैं तो यही मानता हूँ कि मेरी पिटाई में भी भगवान की कुछ न कुछ दया छुपी है।’
राजा सहित सभी सैनिक भी हँसने लगे। राजा ने कहा–‘मंत्री जी! अब आपका दिमाग खराब हो गया है। अब आप राजकाज के लायक नहीं रहे। आप आराम करिए। आज तक के आपके निष्ठापूर्ण कार्य को देखते हुए आपको राज्य की ओर से पेंशन दी जाएगी।’
यह बातें हो ही रही थीं कि कुछ डाकू आ गए। अपनी धर्मान्ध कुप्रथा के अनुसार देवी माँ को बलि चढ़ानी थी। डाकुओं के सरदार ने कहा–‘राजा को ले चलो, देवी माँ प्रसन्न हो
जाएँगी।’
डाकू लोग राजा को पकड़कर सरदार के पास ले गए और कहा–‘सरदार! राजा की अंगुली कटी हुई है।’ सरदार बोला–‘अरे बेवकूफों तुम्हें पता नहीं है क्या, देवी को बिना अंगदोष के मनुष्य की ही बलि चढ़ायी जाती है। राजा को छोड़ दो, मंत्री को पकड़ लाओ।’
डाकू मंत्री को लेकर चलने लगे तो मंत्री को लंगड़ाता देखकर डाकुओं ने उन्हें भी छोड़ दिया। इतनी देर में सैनिकों को सम्भलने का मौका मिल गया और उन्होंने डाकुओं को खदेड़ दिया।
अब मंत्री जी मौन थे। राजा कह रहे थे–‘मंत्री जी! आप सत्य कहते हैं, भगवान जो करता है, अच्छा ही करता है। अगर मेरी अंगुली न कटी होती या आपकी पिटाई के कारण आप लंगड़े न हुए होते तो आज मेरी या आपकी बलि चढ़ गई होती। आप पागल नहीं हैं, आदर के पात्र हैं। आप अपने पद पर बने रहें। मैं आपको मुँह माँगा पुरस्कार दूँगा।’
‘सरकार! पुरस्कार तो मुझे मिल गया। आपने इस बात को स्वीकार कर लिया कि भगवान जो करता है, अच्छा करता है। आप देश के राजा हैं–‘यथा राजा तथा प्रजा’ अत: आपकी इस मान्यता से प्रजा भी लाभान्वित होगी ही। जब प्रजा भी भगवान के हर विधान को मंगलमय मानेगी तो देश में हर ओर खुशहाली आ जाएगी।’
भगवान का हर विधान मंगलमय है ।
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