Saturday, January 5, 2019

मुझे गेंद नहीं चाहिए


‘मुझे कास्को गेंद चाहिए। कितनी छोटी सी चीज़ माँग रहा हूँ। अन्य बच्चों के पास तो बड़ी–बड़ी चीजें हैं।’ नितिन बोला।
‘बेटा! दुनिया में सभी लोग एक समान नहीं हो सकते। अन्य बच्चों के माता–पिता धनी हैं। हमारे पास भी गुज़ारे लायक धन है भगवान ने जितना दिया है, उसका धन्यवाद करना चाहिए।’ माँ ने कहा।
‘यदि हम इतने गरीब हैं कि एक गेंद भी नहीं खरीद सकते तो भगवान को किस बात का धन्यवाद दें?’
‘भर पेट भोजन मिल रहा है, पर्याप्त वस्त्र हैं, अपना मकान है। तुझे अच्छी शिक्षा मिल रही है। हम सभी स्वस्थ हैं, आनन्दित हैं, सुमति है और क्या चाहिए?’ दादी ने समझाते हुए कहा ।
‘लेकिन दादी! अन्य लोगों के पास ज्यादा पैसा क्यों है? हमारे पास कम क्यों है?’

‘यह तो अपना–अपना भाग्य है ?’
पापा ने हस्तक्षेप करते हुए कहा– नितिन! तुम कल सुबह मेरे साथ सैर करने चलना। तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा।’
‘लेकिन मुझे तो सुबह स्कूल जाना है।’
‘कल स्कूल मत जाना।’ पापा ने हँसते हुए कहा।
‘नहीं मैं स्कूल की नागा नहीं करूँगा।’
जब सभी लोग हँसने लगे तब नितिन को याद आया कि कल इतवार है । ‘––––अरे––––’ वह भी हँसने लगा ।
दूसरे दिन नितिन पापा के बिना जगाए ही जग गया और सैर के लिए तैयार हो गया सर्दी के मौसम के अनुसार अच्छी तरह गर्म कपड़े पहन लिए।
चलते–चलते दोनों स्टेशन के पास पहुँचे।
पापा ने कहा–‘देखो!’
नितिन ने देखा फुटपाथ पर पड़े हुए लोग ठंड से ठिठुर रहे थे।
वह लोग आगे बढ़े-फुटपाथ के किनारे एक स्त्री–पुरुष और तीन छोटे–छोटे बच्चे बैठे थे। दोनों तरफ र्इंटे रख कर चूल्हा जला कर खाना बना रहे थे।
‘पापा! ये लोग यहीं रहते हैं।’
‘हाँ बेटा! मैं रोज इसी तरह के मजदूरों को देखता हूँ, यह लोग इसी समय पूरे दिन का खाना बना कर एक थैले में बनाने, खाने के बर्तन व अपना सामान लेकर मजूदरी करने चले जाएँगे। बच्चे भी इन्हीं के साथ जाएँगे। मजदूरी मिल गई तो ठीक अन्यथा दूसरे दिन शायद भोजन भी न मिले।’
‘फिर यह लोग शाम को यहीं वापस आएँगे।’
‘जरूरी नहीं है कि पुलिस वाले दूसरे दिन इन्हें यहाँ सोने ही दें । ऐसी स्थिति में ये लोग फिर अन्य कहीं बसेरा ढूँ ढ़ेंगे।’
‘बस पापा बस! जब पैसे बचें तो इनके बच्चों के लिए स्वेटर खरीद दीजिएगा। मुझे गेंद नहीं चाहिए।
सब पर दया करो।


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