“और सुन यह ऑफिस टाइम होता है, इसलिए इधर और उधर दोनों तरफ देखकर ही सड़क पार किया कर।”
माँ की तमाम हिदायतों के बावजूद प्रशान्त की हरकतों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह हाथ छोड़कर साइकिल चलाता और मस्त रहता। वह कहता–‘मुझे कुछ नहीं होता।’
माँ ने समझाया–‘बेटा! दुर्घटना से देर भली। धीरे–धीरे साइकिल चलाया करो। जल्दबाजी में अगर चोट लग गयी
तो।’
बीच में बात काट कर वह बोला–‘हड्डी टूट जाएगी तो बहुत अच्छा है, स्कूल तो नहीं जाना पड़ेगा।’
माँ ने उसके कान खींचते हुए कहा–‘चुप नालायक कहीं का, ऐसी गन्दी बातें बोलता है।’
प्रशान्त हँसता हुआ खेलने चला गया।
और एक दिन वही हुआ, जिसका माँ को डर था। सामने से ट्रक आ रही थी। ट्रक ड्राइवर ने जोर का ब्रेक लगाया किन्तु ब्रेक लगाते–लगाते भी प्रशान्त की साइकिल को ज़ोर का धक्का लगा और ट्रक जोर की चीख के साथ रुक गई।
प्रशान्त बच तो गया किन्तु पैर में फ्रैक्चर हो गया। ट्रक ड्राइवर भला आदमी था। उसने प्रशान्त को अपनी ट्रक पर लिटाया व साइकिल को भी ट्रक पर रखा। सड़क के दो लोग भी साथ हो लिए और निकटस्थ अस्पताल में ले गये। इस बीच प्रशान्त से फोन नं॰ पूछ कर उसके घर पर फोन कर दिया। अस्पताल में उसकी माँ भी आ गई व प्रशान्त की फर्स्ट एड भी हो गई। एक्सरे से पता चला कि उसके बाएँ पैर में बुरी तरह फ्रैक्चर है। प्लास्टर चढ़ा दिया गया।
एक सप्ताह अस्पताल में रहने के बाद डॉक्टर ने उसे घर ले जाने की अनुमति दे दी किन्तु पूरी तरह ठीक होने के लिए उसे लगभग तीन महीने तक बिस्तर पर रहना पड़ा। बिस्तर पर पड़े–पड़े वह ऊब गया।
अब उसके दोस्त उससे मिलने आते तो वह उनसे कहता–
‘रास्ते में साइकिल धीरे चलाओ, सदा सड़क के दोनों ओर देखकर ही सड़क पार किया करो। दुर्घटना से देर भली।’
यातायात के नियमों का पालन करो।
माँ की तमाम हिदायतों के बावजूद प्रशान्त की हरकतों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह हाथ छोड़कर साइकिल चलाता और मस्त रहता। वह कहता–‘मुझे कुछ नहीं होता।’
माँ ने समझाया–‘बेटा! दुर्घटना से देर भली। धीरे–धीरे साइकिल चलाया करो। जल्दबाजी में अगर चोट लग गयी
तो।’
बीच में बात काट कर वह बोला–‘हड्डी टूट जाएगी तो बहुत अच्छा है, स्कूल तो नहीं जाना पड़ेगा।’
माँ ने उसके कान खींचते हुए कहा–‘चुप नालायक कहीं का, ऐसी गन्दी बातें बोलता है।’
प्रशान्त हँसता हुआ खेलने चला गया।
और एक दिन वही हुआ, जिसका माँ को डर था। सामने से ट्रक आ रही थी। ट्रक ड्राइवर ने जोर का ब्रेक लगाया किन्तु ब्रेक लगाते–लगाते भी प्रशान्त की साइकिल को ज़ोर का धक्का लगा और ट्रक जोर की चीख के साथ रुक गई।
प्रशान्त बच तो गया किन्तु पैर में फ्रैक्चर हो गया। ट्रक ड्राइवर भला आदमी था। उसने प्रशान्त को अपनी ट्रक पर लिटाया व साइकिल को भी ट्रक पर रखा। सड़क के दो लोग भी साथ हो लिए और निकटस्थ अस्पताल में ले गये। इस बीच प्रशान्त से फोन नं॰ पूछ कर उसके घर पर फोन कर दिया। अस्पताल में उसकी माँ भी आ गई व प्रशान्त की फर्स्ट एड भी हो गई। एक्सरे से पता चला कि उसके बाएँ पैर में बुरी तरह फ्रैक्चर है। प्लास्टर चढ़ा दिया गया।
एक सप्ताह अस्पताल में रहने के बाद डॉक्टर ने उसे घर ले जाने की अनुमति दे दी किन्तु पूरी तरह ठीक होने के लिए उसे लगभग तीन महीने तक बिस्तर पर रहना पड़ा। बिस्तर पर पड़े–पड़े वह ऊब गया।
अब उसके दोस्त उससे मिलने आते तो वह उनसे कहता–
‘रास्ते में साइकिल धीरे चलाओ, सदा सड़क के दोनों ओर देखकर ही सड़क पार किया करो। दुर्घटना से देर भली।’
यातायात के नियमों का पालन करो।
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