केन्द्रीय–विद्यालय की कक्षा नौ में गुरु जी आपदा–प्रबंधन के बारे में पढ़ा रहे थे।
गुरु जी ने कहा–‘आपदाएँ कई तरह की होती हैं-प्राकृतिक आपदा, मानवकृत आपदा व अन्य भी कई तरह की आपदाएँ होती हैं। हमें इन आपदाओं के कारण समझकर उनके प्रबंधन के बारे में विचार करना है।
पूजा ने कहा–‘सर!’ घरेलू–आपदाएँ, विद्यालय की आपदाएँ आदि भी हो सकती हैं। इसके प्रबंधन के बारे में भी पढ़ाएँगे।’
“हाँ पूजा! आपदाएँ कई प्रकार की होती हैं। आपदा घर, विद्यालय कहीं की भी हो सकती है, उस आपदा के कारण जानकर उसका बचाव कैसे हो, इसी को आपदा–प्रबंधन कहते हैं।
मैं तुम लोगों को एक प्रोजेक्ट देता हूँ, तुम लोग घर, विद्यालय, मानवकृत या प्राकृतिक आपदा, किसी भी आपदा से सम्बन्धित एक विषय लेकर उस आपदा के कारण व निवारण के विषय में लिखो।’
गुरुजी यह कह कर बैठे ही थे कि विमलेश उचक कर गुरुजी के पास आ गया और हाथ लहराते हुए बोला–‘गुरुजी! मैं किस आपदा के बारे में प्रोजेक्ट बनाऊँ।’
गुरुजी हँसकर बोले–‘नाटकीय ढंग से क्यों पूछ रहे हो, चाहे जिस आपदा पर प्रोजेक्ट बनाओ, यह तुम्हारी स्वेच्छा पर निर्भर है।’
दुर्गेश्वर बोला–‘सर’ ये तो स्वयं आपदा है।’
‘ऐसे नहीं कहते हैं।’ गुरुजी ने कहा।
पूजा के दिमाग में एक बिजली सी कौंधी उसे अपने प्रोजेक्ट का विषय मिल गया। सभी विद्यार्थियों ने विभिन्न आपदाओं के प्रबंधन पर प्रोजेक्ट बनाए किन्तु पूजा ने एक अनोखा प्रोजेक्ट बनाया, जिसका विषय था–‘विमलेश-आपदा का प्रबंधन।’
सबने प्रोजेक्ट जमा किया। जब पूजा का प्रोजेक्ट गुरुजी ने देखा तब पूछा– ‘पूजा ये क्या लिखा है।’
डरते–डरते पूजा बोली–‘सर! पढ़िए तो, यह एक अलग तरह की आपदा है। इसका प्रबंधन भी बहुत आवश्यक ह ।’
खैर––––गुरुजी पढ़ते गए, एक ओर तो उनका हँसते–हँसते बुरा हाल था। दूसरी ओर इस प्रोजेक्ट में गहराई के साथ संदेश भी था। पूजा का प्रोजेक्ट इस प्रकार था–
विमलेश-आपदा का प्रबंधन
पर्यावरणीय आपदाएँ जैसे भूकम्प, ज्वालामुखी या सुनामी लहरों से तो आत्मरक्षा के उपाय भी किए जा सकते हैं। साम्प्रदायिक दंगों व युद्ध की स्थिति पर भी काबू पाया जा सकता है किन्तु विमलेश-आपदा को सम्भालना हमारे वश में नहीं है। इसके लिए तो किसी मूर्धन्य विद्वान मनोवैज्ञानिक की आवश्यकता है।
विमलेश-आपदा का परिचय
विमलेश हमारी कक्षा में पढ़ने वाला एक बुद्धिमान छात्र है। उसमें एक ही बीमारी है। वह सदा अपनी हरकतों से ध्यान–आकर्षित करने का प्रयास करता है। इस ध्यानाकर्षण प्रक्रिया में वह कई रास्ते अपनाता है। यथा–
* जोर–जोर से चिल्लाना।
* अकारण ताली बजाना।
* हर समय बोलते रहना।
* दो लोगों की बात के बीच में एकदम चिल्ला कर विघ्न डाल देना।
* अजीब तरह से हाथ–पैर, मुँह व पूरा शरीर हिलाना।
* विद्यालय से आते–जाते व साइकिल चलाते समय अपनी हरकतों से विद्यालय के बच्चों व राहगीरों का ध्यानाकर्षण करना आदि।
विमलेश–आपदा का विमलेश व अन्य लोगों पर दुष्प्रभाव
विमलेश के इन क्रियाकलापों के दुष्प्रभाव कई रूपों में होते हैं। यथा–
1– विमलेश पर दुष्प्रभाव-विमलेश की इस ध्यानाकर्षण प्रक्रिया का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव विमलेश पर ही पड़ता है। उसका विकास बाधित होता है। वह पूर्ण मनोयोग से पढ़ नहीं पाता है। जो ध्यान उसे अपनी पढ़ाई में लगाना चाहिए, वह दूसरों के ध्यानाकर्षण पर लगाता है। फलस्वरूप पढ़ाई बाधित होती है।
2– कक्षा के विद्यार्थियों पर दुष्प्रभाव– विमलेश के हर समय बोलते रहने व अजीब–अजीब हरकतों से कक्षा का वातावरण स्वस्थ नहीं रह पाता है फलस्वरूप अन्य विद्यार्थियों का अध्ययन भी बाधित होता है।
3– अध्यापकों पर दुष्प्रभाव– विमलेश की अजीबोगरीब हरकतों के कारण अध्यापक का ध्यान बार–बार उसकी ओर चला जाता है। उसको रोकने–टोकने व समझाने में भी कुछ समय लगता है। फलस्वरूप अध्यापन की गति भी प्रभावित होती है।
4– परिवार पर दुष्प्रभाव– विमलेश के बुद्धिमान होते हुए भी वह न तो पढ़ाई में, न ही अन्य किसी क्षेत्र में अव्वल आ पाता है। अत: माता–पिता उसके भविष्य को लेकर चिन्तित रहते हैं। उसके हर समय के चुलबुलेपन से उसके माता–पिता व भाई बहन परेशान रहते हैं।
विमलेश-आपदा का प्रबंधन
इस आपदा से बचाव के प्रबंधन में जो घटक प्रभावित हैं, वह सब ही उसका सार्थक उपाय भी कर सकते हैं यथा-माता–पिता, भाई–बहन, सहपाठी व अध्यापक। सबके सम्मिलित प्रयास से न केवल इस आपदा से ही छुटकारा पाया जा सकता है वरन् विमलेश समाज के लिए बहुत उपयोगी भी हो सकता है। कतिपय उपाय निम्नवत् हैं–
1– माता पिता उसे पर्याप्त समय दें।
2– अभिभावक, भाई–बहन व अध्यापक एवं सहपाठी सभी लोग उसकी पूरी बात ध्यान से सुनें। उसे यह लगे कि उसकी बातों का भी कोई महत्त्व है। जब उसकी बातों को महत्त्व दिया जाएगा तो वह स्वयं ही सार्थक बातें करने लगेगा।
3– उसकी बातें सुनकर प्यार व सहानुभूतिपूर्वक उसे उसकी गल्ती बताई जाए अर्थात् उसे गल्ती की दशा व दिशा दोनों से ही अवगत करवाया जाए। सुधारात्मक उपाय भी किए जाएँ।
4– उसे खेलने का भरपूर अवसर दिया जाए।
5– पढ़ाई में उसे जिस बिन्दु पर मार्गदर्शन की आवश्यकता हो या जिस बिन्दु पर पिछड़ापन हो, उसे दूर किया जाए। यदि वह किसी विषय में बहुत पिछड़ गया है तो उसे अतिरिक्त कक्षा या घर पर विषय–विशेष की ट्यूशन दी जाए।
आशा करती हूँ कि विमलेश-आपदा का प्रबन्धन इस भाँति करने से वह आपदा न होकर घर, विद्यालय, समाज व देश का उपयोगी अंग हो सकता है।
जब विमलेश सामान्य व्यवहार करने लगे तब यदि उसकी प्रतिभा को सही दिशा निर्देशन दिया जाए तो वह अपनी विशिष्ट प्रतिभा से घर, विद्यालय, समाज व देश का नाम भी रोशन कर सकता है।
* * * *
गुरुजी ने इस प्रोजेक्ट को न केवल स्वयं ही पढ़ा वरन् इसे प्राचार्य जी, अन्य अध्यापकों तथा विमलेश के घर वालों को भी पढ़वाया व सभी ने मिलकर सम्मिलित सुधारात्मक उपाय भी किए।
कक्षा के विद्यार्थियों को भी समझाया कि विमलेश अच्छा लड़का है। उसकी पूरी बात सुनकर उसके साथ प्यार से व्यवहार करें तथा उसे अपने साथ खिलावें।
कक्षा के महत्त्वपूर्ण कार्य उसे सौपे जाने लगे, जैसे फीस एकत्रित करते समय उसका सहयोग लेना आदि। उसे कक्षा का द्वितीय मॉनीटर भी बना दिया गया।
कहना न होगा कि कुछ ही महीनों के प्रयास से विमलेश कक्षा में सामान्य बच्चे की तरह व्यवहार करने लगा व पढ़ाई के स्तर में भी आश्चर्यजनक सुधार हुआ। खेलकूद में तो राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगा।
सभी सहपाठियों के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करो ।
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