Saturday, January 5, 2019

सक्सेना जी बने स्टूडेन्ट


पड़ोस के सक्सेना साहब मेरे पास बैठे हुए थे कि मेरा बेटा प्रवीन आया, बोला–‘पापा पचास रुपए दे दीजिए, प्रोजेक्ट का सामान लाना है।’

‘तुम्हारे स्कूल में ही प्रोजेक्ट क्यों नहीं बनवाया जाता है। अब रात के बारह बजे तक जाग कर प्रोजेक्ट बनाओगे।’
‘क्या करूँ पापा? जो काम करना है, वह तो करना ही है। लेकिन प्रोजेक्ट बनाने में मज़ा भी खूब आता है।’
‘ठीक है लेकिन अपनी सेहत का भी तो ध्यान रखना चाहिए।’ मैंने प्रवीन से कहा–‘जाओ माँ से रुपए ले लो।’ प्रवीन चला गया।
‘बच्चा जितनी अधिक मेहनत करेगा, उतना ही अच्छा रहेगा। अभी से ही मेहनत की आदत पड़ी रहेगी तो जीवन में कष्ट नहीं होगा।’ सक्सेना जी बोले।
‘ठीक है सक्सेनाजी! मेहनत की आदत तक तो ठीक है, किन्तु शरीर की क्षमता से अधिक मेहनत से सिवाय बीमारी के और कुछ नहीं मिलता। खाली पड़े रहना भी उतना ही घातक है जितना जरूरत से अधिक काम।’
‘शायद आप ठीक कहते हैं।’
इतने में ही सक्सेना जी का बेटा विवेक आया बोला–‘पापा! बाबा का फोन आया है, वह कल सुबह की गाड़ी से आ रहे हैं। अंकल प्रवीन कहाँ है? उससे नोट्स लेने हैं । मैं आज स्कूल नहीं गया था।’
मैंने कहा–‘प्रवीन चौराहे तक गया है, आता ही होगा। तुम स्कूल क्यों नही गए थे?
‘मेरी तबियत ठीक नहीं थी।’
मैंने देखा विवेक की आँखों के नीचे काले गड्ढे पड़े हुए थे। मैंने पूछा-‘विवेक कितने बजे सोते हो ?’
‘अंकल! होमवर्क पूरा करते–करते बारह–एक तो बज ही जाते हैं।’
‘उठते कितने बजे हो?’
‘पापा तो चार बजे उठाते हैं, लेकिन पाँच बजे तक उठ ही जाता हूँ।’
‘सक्सेना जी! आपने देखा विवेक की आँखों के नीचे काले गड्ढे पड़े हुए हैं।’
‘हाँ सतीश जी! यह अक्सर बीमार भी पड़ जाता है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि इसकी नींद पूरी न होती हो।’
‘बिल्कुल ठीक! शरीर भगवान की दी हुई एक मशीन है, जिसे कब और कितना आराम करना है। यह शरीर स्वयं बता देता है। हम आवश्यकता से अधिक आराम करेंगे तो शरीर के अंगों का सुचारू रूप से संचालन नहीं होगा। फलस्वरूप पाचन प्रभावित होगा और रोग घेरेंगे। इसी प्रकार अधिक काम करने पर शरीर को पूरा आराम न मिलने पर भी अनेकानेक रोग घेर लेते हैं।’
‘लेकिन अंकल! फिर काम कैसे पूरा होगा?’ विवेक ने कहा।
‘जब तुम पूरी नींद लोगे तो शरीर में स्फूर्ति रहेगी। काम जल्दी व सुव्यवस्थित होगा। पाठ भी जल्दी समझ में आएगा।’
‘अंकल! आप सही कह रहे हैं। जिस दिन पूरी नींद सो लेते हैं, मन प्रसन्न रहता है, पढ़ाई में भी मन लगता है और याद भी जल्दी होता है।’
‘अच्छा सतीश जी! अब मैंने निश्चय किया है कि रात को नौ बजे विवेक को सुला दिया करेंगे, जिससे सुबह पाँच बजे वह नींद पूरी होने पर अपने आप उठ जावे।’ सक्सेना जी ने उठते हुए कहा–‘और हाँ! आज से हम आपके स्टूडेन्ट बन गए।’
सब हँसने लगे।
पूरी नींद लेना आवश्यक है।
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