‘पानी फेंक दो, फिर खाली बोतल से कैच–कैच खेलेंगे।’
‘नहीं–नहीं पानी मत फेंको, पानी बहुत कीमती होता है।’
‘अरे पागल हो क्या? पानी भी कहीं कीमती होता है?’
‘हमारे घर में तो पानी बहता रहता है, कोई खर्च नहीं होता है।’
‘अगर पानी न मिले तो क्या हो?’
‘अच्छा चलो कुछ और खेला जाए, फालतू बातें करने से क्या फायदा?’
बच्चे खेलने लगते हैं। पार्क में बैठी हुई सुलभा आँटी यह सब सुन रही थीं। सोचने लगी कि यदि अभी से इन्हें सही बात बता दी जाए या यूँ कहें कि दिमाग में बात ठीक प्रकार से बैठा दी जाए तो समाज का कम से कम कुछ हिस्सा तो सुधर ही जाएगा।
उन्होंने बच्चों को अपने पास बुलाया, बैठाया और प्यार से बोलीं–
‘अगर तुम्हारे पास केवल दस रुपए हैं और तुम किसी ऐसी जगह पर हो, जहाँ दस रुपए में केवल पानी मिले या केवल खाना मिले तो तुम क्या लोगे?’
‘पानी लेंगें।’ एक बच्चा बोला।
‘क्यों ?’
‘अगर पानी नहीं पियेंगे तो मर भी सकते हैं, बिना खाये तो फिर भी कुछ दिन रह सकते हैं।’ यह बात राजू ने कही, जो कह रहा था कि पानी बहुत कीमती होता है।
‘और यदि तुम्हारे पास दस रुपए भी न हों और तुम्हें बहुत तेज़ प्यास लगी हो तब?’ सुलभा आँटी ने पूछा।
‘मैं ढाबे वालों के बरतन माँज दूँगा।’ रवि ने कहा ।
‘बरतन माँजना तुम्हें आता भी है?’ गुंजन ने रवि को चिढ़ाते हुए कहा।
‘बरतन न माँज पाने की स्थिति में मैं अपनी कमीज़ उतार कर दे दूँगा।’ राजू बोला।
‘इसका मतलब पानी तुम्हारी कमीज़ से मँहगा है।’ सुलभा आँटी समझाते हुए बोलीं।
‘हाँ आँटी! पानी तो हर चीज़ से मँहगा हुआ क्योंकि हम जान बचाने के लिए पानी का कोई भी दाम चुकाने के लिए तैयार हो जाएँगे ।’ गुंजन ने राजू से पहले ही बोल दिया।
‘सचमुच पानी बहुत कीमती होता है, मैं फालतू में ही रवि से पानी फेंकने को कह रहा था।’ पंकज को अपनी ग़लती का एहसास हुआ।
‘तो अब कभी पानी मत बर्बाद करना।’ सुलभा को खुशी हुई कि बच्चों को पानी का महत्त्व अच्छी तरह से समझ में आ गया ।
‘हम कभी पानी बर्बाद नहीं करेंगे।’ बच्चे समवेत स्वर में बोले।
जल–संसाधन का संरक्षण (बचत) करो।
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