सभी के जीवन में विभिन्न प्रकार के उतार–चढ़ाव आते रहते हैं । यदि हर परिस्थिति में शान्तचित्त से स्थिर मन से सोचे तो गम्भीर समस्या भी छोटी लगने लगती है । जीवनधारा से जुड़ी हुई इस पुस्तक में मन को स्वस्थ रखने के सहज साध्य उपायों का वर्णन है ।
जिसका बचपन दुलार भरा होगा, बड़े होने पर भी उसका मस्तिष्क स्वस्थ रहेगा । वह विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं को समायोजित कर लेगा ।
इस पुस्तक की विशेषता यह है कि इसमें बचपन को ही सँवारने को बताया गया है । सत्य है यदि जीवन की नींव सुदृढ़ होगी तो जीवन तो सुखद होगा ही ।
शिवसंकल्प तथा स्वस्थ सोच मनुष्य को सदा प्रसन्न रखते हैं । हम अपना जीवन प्रबन्धन कैसे करें ? हमारे प्राचीन शास्त्रों जैसे, वेद, उपनिषद, पुराण, बाइबिल आदि में मन को स्वस्थ व प्रसन्न रखने के बारे में बहुत कुछ लिखा है । उसका कुछ अंश इस पुस्तक में देने का प्रयास है ।
इस पुस्तक में एक ओर तो विभिन्न शास्त्रों के उदाहरण दिए हैं । दूसरी ओर राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् द्वारा अनुमोदित राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 द्वारा भी यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि बचपन उल्लासपूर्ण होना चाहिए ।
पूरी पुस्तक सहज व सुखद जीवनयापन की ओर इंगित करती है ।
जिसका बचपन दुलार भरा होगा, बड़े होने पर भी उसका मस्तिष्क स्वस्थ रहेगा । वह विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं को समायोजित कर लेगा ।
इस पुस्तक की विशेषता यह है कि इसमें बचपन को ही सँवारने को बताया गया है । सत्य है यदि जीवन की नींव सुदृढ़ होगी तो जीवन तो सुखद होगा ही ।
शिवसंकल्प तथा स्वस्थ सोच मनुष्य को सदा प्रसन्न रखते हैं । हम अपना जीवन प्रबन्धन कैसे करें ? हमारे प्राचीन शास्त्रों जैसे, वेद, उपनिषद, पुराण, बाइबिल आदि में मन को स्वस्थ व प्रसन्न रखने के बारे में बहुत कुछ लिखा है । उसका कुछ अंश इस पुस्तक में देने का प्रयास है ।
इस पुस्तक में एक ओर तो विभिन्न शास्त्रों के उदाहरण दिए हैं । दूसरी ओर राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद् द्वारा अनुमोदित राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 द्वारा भी यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि बचपन उल्लासपूर्ण होना चाहिए ।
पूरी पुस्तक सहज व सुखद जीवनयापन की ओर इंगित करती है ।
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