Saturday, January 5, 2019

डकैत अंकल, मिठाई खा लो

‘बच्चों चलो तैयार हो जाओ, आज घूमने चलेंगे। माँ ने जल्दी–जल्दी काम निबटाते हुए बच्चों को आवाज दी।
घूमने के नाम पर बच्चे तुरन्त उठ गए व खुशी–खुशी तैयार भी हो गए। राजू और पिंकी की बुआ के बच्चे शिवम व प्रियम भी आए थे। अत: वे बहुत खुश थे। तैयार होकर सबने लस्सी पी। माँ ने रास्ते के लिए पूड़ी सब्जी बना ली, पापा ने पैकिंग करके एक थैले में रख लिया।
चारों बच्चे तथा माता–पिता शहर जाने के लिए बस पर बैठे। उनका घर गाँव में था। गाँव से शहर लगभग चालीस किलोमीटर दूर था। अत: वे लोग सबेरे जल्दी ही चल दिये थे।
जहाँ बस चली तो पिंकी माँ की गोद में सिर रख कर सो गई। थोड़ी दूर चलने पर बस तेज हिचकोले के साथ रुकी। पिंकी की नींद खुल गई।
उठते ही बोली–‘माँ भूख लगी है, पूड़ी सब्जी दो।’
पापा ने एक पैकेट निकाल कर पिंकी को दिया। पिंकी को खाते देखकर सब बच्चों को भूख लग आयी। पापा ने सबको एक–एक पैकेट निकाल कर दे दिया।
‘देखा पैकेट बना देने में कितनी आसानी हो गई वरना बस में खाना निकाल कर देने में कितनी परेशानी होती।’ पापा बोले।
‘हाँ! आप सही कह रहे हैं। मैंने सोचा था कि बस से उतर कर खाएँगे, लेकिन बच्चों का क्या भरोसा, कब भूख लग आए। अगर खाना इकट्ठा बँधा होता तो वाकई परेशानी होती।’ माँ ने कहा।
जब बच्चे खा चुके तब राजू ने सबके खाली पैकेट एक जगह इकट्ठा कर लिए व कहा–‘बस से उतरने पर कूड़ेदान में डाल देंगे।’
इतने में एक गड्ढा आने के कारण बस उछली। अन्य यात्रियों को जहाँ पीड़ा हुई, वहीं बच्चे खुशी से ताली बजा कर चिल्लाने लगे। शहर आने पर वे बस से उतर कर सबसे पहले चिड़ियाघर गए।
शिवम् ने कहा–‘मामा जी! हाथी की सवारी करेंगे।’
जब बच्चे हाथी पर चढ़ने के लिए आए तो पिंकी को हाथी ने सूँड़ में लपेट लिया। पिंकी के साथ ही सभी लोग चिल्लाने लगे किंतु हाथी ने पिंकी को पीठ पर बैठा लिया। अब सब आश्वस्त हुए।
महावत ने सबको बताया–‘जानवर अकारण किसी को तंग नहीं करते। हाथी बच्चों को बहुत प्यार करते हैं। इसीलिए उसने बच्ची को उठा कर पीठ पर बैठा लिया।’
अब सब बच्चों ने महावत से कहा–‘हाथी से कहिए कि हमें भी सूँड़ से उठा कर अपनी पीठ पर बैठाए।’
‘बेटा हाथी अपनी मर्जी से सूँड़ में लपेटता है।’ इतने में हाथी की पीठ पर बैठी हुई पिंकी चिल्लाने लगी–‘भइया तुम लोग भी ऊपर आ जाओ, मुझे अकेले डर लग रहा है।’
खैर हाथी की पीठ पर सब बच्चे चढ़ गए। हाथी मस्त चाल से चलने लगा।

राजू ने कहा– ‘पापा हमें आइसक्रीम खरीद कर दे दीजिए। हाथी पर बैठ कर खाने में बड़ा मजा आएगा।’
महावत ने मीठी घुड़की दी, बेचारे बच्चे चुप हो गए। इतने में प्रियम् ने गाना शुरू कर दिया। शिवम् उछला तो महावत चिल्लाया–‘उछल–कूद मत करो, हाथी बिगड़ जाएगा तो हम सब मरेंगे।’
अन्तत: महावत ने बड़बड़ाते हुए सबको हाथी से उतार दिया, बोला–‘बड़े शरारती बच्चे हैं।’
सब हाथी से उतर कर आइसक्रीम खाने लगे। चिड़ियाघर और म्यूजियम देखने के बाद सब लोग बाजार गए, कपड़े खरीदे, चाट खाई और वापस बसस्टेशन आकर बस पर बैठ गए। बस पर बैठते ही थके होने के कारण बच्चे सो गए। पापा माँ से बोले–‘तुम भी झपकी लगा लो, तब तक मैं सब सामान व बच्चों को देख रहा हूँ।’
थोड़ी दूर चलने पर बस में एक नवविवाहित जोड़ा व कुछ बाराती भी सामान सहित बस में बैठ गए।
बच्चे बस रुकने व शोर–शराबे के कारण जाग गए। सब उत्सुकतापूर्वक बारात व दूल्हा–दुल्हन को देखने लगे। बस चलने लगी। तब बारातियों को मिठाई के पैकेट बाँटे गए।
प्रियम् अपनी जबान निकाल कर बोला–‘आ जा मेरे मुँह में मिठाई आ जा।’ सब हँस पड़े। मिठाई बाँटने वाले ने सुन लिया। उसने बच्चों को भी एक–एक पैकेट मिठाई दी।
बच्चों ने माता–पिता की अनुमति लेकर मिठाई उदरस्थ करनी प्रारम्भ करी ही थी कि अब बस अगले पड़ाव पर रुकी। उतरने वाले उतर गए, चढ़ने वाले चढ़ गए। बस चलने वाली थी कि मुँह पर कपड़ा बाँधे हुए कुछ लोग बस पर चढ़ गए। उनमें से एक आदमी ड्राइवर के पास जाकर खड़ा हो गया और बस चलाने का आदेश दिया। अन्य लोग बारात के पास जाकर खड़े हो गए। सबने बन्दूकें निकाल लीं व बारातियों से कहा–‘निकाल कर रख दो सब।’

बच्चे भी समझ गए कि ये डकैत हैं। सभी यात्री भयभीत थे। बच्चों ने इशारों में ही योजना बनाई। शिवम उठकर एक डकैत के पास गया, बोला-‘डाकू अंकल मिठाई खाएँगे ।’
‘हुँ–––––हूँ तेरी ये हिम्मत।’ डाकू गुर्राया ।
‘गल्ती हो गई डाकू अंकल।’ डरने का नाटक करता हुआ शिवम् बोला। इतने में बच्चों ने बिना मौका दिए हुए मिठाई डाकुओं की आँख की तरफ फेंकी। जब तक डाकू सम्भलते, सब बच्चों सहित बस के अन्य यात्री डाकुओं पर एक साथ टूट पड़े।
इतने में कंडक्टर ने अपने मोबाइल से फोन करके घटना तथा बस रुकने की निश्चित जगह पुलिस को बता दी। बस वहाँ रुकी, तब तक पुलिस भी आ गई थी। यात्रियों ने डाकुओं की चटनी बना दी थी। डाकू पकड़ लिए गए।
अब सबसे शरारती शिवम् ने बारातियों से कहा–‘अंकल सभी यात्रियों को मिठाई खिलाइए ताकि मन से कड़वाहट निकल जाए और सब मीठे मुँह से अपने घर जावें। हाँ, हमारे लिए दो–दो पैकेट, डाकुओं को इतना पीटने के बाद पेट में चूहे कूदने लगे।’
अभी तक हतप्रभ रहे यात्रियों में मुस्कराहट छा गई। दूसरी तरफ दूल्हे के पिता भावावेश तथा खुशी में रो पड़े और उन्होंने बच्चों को छाती से लगा कर कहा–‘भगवान तुम्हारे जैसे बच्चे सबको दे।’
अब तक ड्राइवर भी हादसे से उबर चुका था। अत: बस चलने लगी। पूरी बस में एक ओर मिठाई बँटने लगी, दूसरी ओर बच्चों ने गाना शुरू कर दिया।
मुसीबत में साहस से काम लो।
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