Saturday, January 5, 2019

चावल के दाने

रविवार का दिन था। सब लोग साथ में भोजन कर रहे थे।
वन्दना ने भोजन समाप्त करने के बाद भी थोड़े से दाल–चावल थाली में छोड़ दिए।
पापा ने कहा–‘वन्दना ! तुम उतना ही भोजन लिया करो, जितना खा सको, तुम अक्सर जूठा छोड़ देती हो, जो फेंकना पड़ता है।’
‘क्या करूँ पापा? मैंने लिया तो अन्दाज़ से ही था, लेकिन बच गया। आप ही तो कहते हैं कि जबर्दस्ती खाने से पेट खराब होगा।’
‘हाँ! जबर्दस्ती तो नहीं खाना चाहिए किन्तु भोजन फेंकना भी उचित नहीं है। इसलिए थोड़ा कम भोजन लो, जब और भूख लगे तब दोबारा ले लो, इससे खाना जूठा नहीं बचेगा व फेंकना नहीं पड़ेगा।’
माँ ने कहा–‘अच्छा वन्दना! बताओ हमारे देश की आबादी कितनी है?’
‘लगभग एक अरब बाइस करोड़।’
‘शाबाश, अगर हर व्यक्ति रोज केवल एक चावल का दाना फेंके तो कितने दाने फेंके गए।’
‘एक अरब बाइस करोड़ दाने।’
‘यदि एक ग्राम चावल में लगभग दस दाने आवें तो एक अरब बाइस करोड़ दाने का कितने क्विंटल चावल हो जाएगा।’
वन्दना दौड़कर कागज, पेंसिल ले आई व गणना करने लगी।
एक ग्राम में– 10 दाने
एक किलोग्राम में– 10 x1000 =10,000 दाने
एक क्विंटल में– 10000 x100 =10,00,000 (दस लाख दाने)
10,00,000 (दस लाख) दाने में– एक क्विंटल
एक अरब बाइस करोड़ (1,22,00,00,000) दाने में
12,20,000,000/ 10,00,000 =1,220 क्विंटल

बाप रे बाप एक अरब चावल के दानों में एक हजार दो सौ बीस क्विंटल चावल। पूरा का पूरा गोदाम भर जाएगा।
‘हाँ अब कुछ सोचो। मात्र एक चावल का दाना प्रतिदिन प्रति व्यक्ति बरबाद न करे तो प्रतिदिन एक हजार दो सौ बीस क्विंटल चावल बच सकता है।
तुम जानती हो वन्दना। एक मजदूर एक दिन में लगभग ढाई सौ ग्राम चावल खा सकता है। बताओ एक हजार दो सौ बीस क्विंटल चावलों से कितने मजदूरों का पेट भर सकता है?’
वन्दना ने गणना करके बताया–
‘चार लाख अट्ठासी हजार मजदूरों का पेट भर सकता है। यह सोच कर ही अपने से ग्लानि हो रही है कि प्रति व्यक्ति, प्रति दिन एक दाना बचाने से देश के चार लाख अट्ठासी हजार लोगों का पेट भर सकता है और मैं––––कितना खाना फेंकती थी।’
माता–पिता के कुछ कहने से पूर्व ही वन्दना उछल कर दादी से लिपटते हुए बोली–‘दादी! मैं समझ गयी हूँ, अब मैं एक दाना भी बरबाद नहीं करूँगी। आप तो समझाते–समझाते हार गर्इं थीं। अब समझ में आया। दादी! मुझे माफ कर दो।’
दादी उसे प्यार करते हुए बोलीं–‘तू तो मेरी प्यारी बिटिया है। जब समझे तभी सवेरा। आज मैं तेरे लिए लड्डू बनाऊँगी।’
‘अरे वाह––––लड्डू वन्दना खुशी से चिल्लायी।
खाद्य पदार्थों की बरबादी मत करो।
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