‘प्रिया! चलो नाश्ता कर लो।’
‘माँ! मुझे भूख नहीं है।’
‘भूख हो या न हो, थोड़ा–थोड़ा खाते रहना चाहिए।’
‘माँ! मेरी योग–शिक्षिका बताती हैं– बिना भूख लगे नहीं खाना चाहिए।’
‘मुझे अधिक पढ़ाओ मत! चुपचाप खा लो।’
‘नहीं, अब हम बिना भूख लगे नहीं खाएँगे।’ नितिन बोला।
‘क्यों?’ माँ ने कुछ गुस्से में कहा।
‘क्योंकि बिना भूख के खाने से अपच हो जाता है।’
अब माँ सोचने लगी– ‘सत्य तो है, पहले इन लोगों की तबियत अक्सर खराब रहती थी। अब तो बिल्कुल ठीक है, बुखार भी नहीं आया। एक दिन स्कूल जाकर इनके टीचर से मिलूँगी।
एक दिन माँ विद्यालय गर्इं। चपरासी से कहा– ‘मुझे योग–शिक्षिका जी से मिलना है।’
चपरासी उन्हें योग–शिक्षिका के पास ले गया।
‘प्रणाम मैडम!’
‘प्रणाम!’
‘मेरे दो बच्चे नितिन और प्रिया आपके विद्यालय में पढ़ते हैं। आपकी बहुत तारीफ करते हैं। कहते हैं कि बिना भूख लगे नहीं खाना चाहिए। यह हमारी टीचर ने बताया है।’
‘हाँ! बिना भूख लगे खाने से अपच हो जाता है। इसलिए कड़ी भूख लगने पर ही खाना चाहिए भूख न लगने का अर्थ है कि शरीर में पहले से अपचा भोजन है। जब शरीर उसे पचा लेता है, तब भूख लगती है।’
‘बिना भूख लगे खाने से बीमार क्यों हो जाते हैं?’
‘अपचा भोजन विकार के रूप में जमा होता रहता है। यही विकार विभिन्न रोगों के रूप में प्रकट होता रहता है।’
‘बहुत अच्छी बातें आपने बतार्इं। अन्य कुछ उपयोगी जानकारी भी दें।’ माँ बोलीं।
‘रात को जल्दी सो जाना चाहिए। सुबह अपने आप जल्दी नींद खुल जाएगी। बाकी बातें फिर बच्चों को पढ़ाना है।’
‘प्रणाम! मैं आपकी बातों को ध्यान में रखूँगी।’ माँ ने आदर के साथ कहा।
बच्चे विद्यालय से आए तब माँ ने कहा–‘बच्चों! आज मैं तुम्हारे विद्यालय गई थी। योग टीचर से मिली थी। बहुत अच्छा लगा। तुम लोग रात को जल्दी सो जाया करो।
और–––भोजन भी कड़ी भूख लगने पर ही किया करो।’
दोनों बच्चे– (एक साथ खुशी से) ‘हमारी प्यारी माँ!’ लिपट जाते हैं।
नितिन शरारत से बोला–‘आज तो माँ भी पढ़ आई।’
माँ– (नितिन की नाक पकड़ कर) ‘शरारती कहीं का।’
प्रकृति के नियमों के पालन से मनुष्य स्वस्थ रह सकता है।
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