‘माँ! आज तोता लेट कर सो रहा है।’
‘हाँ बुआजी! जल्दी आइए वरना तोता जग जाएगा।’
‘बच्चों तोता लेटकर नहीं सोता है।’
‘वही तो हम भी कह रहे हैं, तोता लेट कर नहीं सोता है किन्तु आज लेटा है।’
‘देखो तुम लोग इतना शोर कर रहे हो, यह फिर भी नहीं उठ रहा है न। यह तो––––’
‘हाँ! इसकी तबियत खराब होगी। चलिए इसे डॉक्टर को दिखा देते हैं।’
‘इसे डॉक्टर को दिखाने की जरूरत नहीं है । यह तो––––’
बुआ जी की बात पूरी होने के पहले ही पूजा बोली–‘बुआजी! यहाँ डॉक्टर सक्सेना बहुत अच्छे हैं। हम लोग जब बीमार पड़ते हैं, तब उन्हीं को दिखाते हैं।’
‘बुद्धू! पशु–पक्षियों के डॉक्टर अलग होते हैं। चलो मामा जी से पूछते हैं कि यहाँ पर जानवरों का अस्पताल कहाँ है?’ छुट्टियों में ननिहाल आए हुए नितिन ने ममेरी बहन पूजा से कहा।
तब तक मामा–मामी भी वहाँ आ गए। नानी तख्त पर बैठी हुई सब्जी काट रही थीं और सब तमाशा देख रही थीं। वे बच्चों की नादानी पर मुस्करा रही थीं।
‘अरे मामा जी जल्दी करिए, तोते को पशु–पक्षियों के डॉक्टर के पास ले चलिए, इसकी तबियत बहुत खराब है। देर होने पर मर भी सकता है।’
‘ठीक कहा तुमने नितिन! तोता मर ही चुका है।’
‘क्या?’ सभी बच्चों का मुँह आश्चर्य और दु:ख के साथ खुला रह गया।
‘हाँ! क्योंकि तोता या कोई भी पक्षी लेटकर नहीं सोता है। जब पक्षी मर जाता है तब ही लेटता है।’मामी जी बोलीं।
‘वही तो मैं भी इतनी देर से कहना चाह रही थी।’बुआ जी ने कहा।
बच्चों ने पिंजरा नीचे उतार लिया और सब बच्चे उदास होकर तोते के चारों ओर बैठ गए। अपूर्वा तो रोने लगी।
मामा जी बोले–‘चलो बच्चों उठो, आज तुम लोगों को लखनऊ का चिड़ियाघर दिखाने ले चलेंगे। वहाँ पर तुम्हें बहुत से पशु–पक्षियों के बारे में जानकारी मिल सकेगी। चलो जल्दी तैयार हो जाओ ।’
बच्चों के उत्तर की प्रतीक्षा किए बगैर वह मामी जी से बोले–‘पूड़ी–सब्जी बना दो, साथ ले जाएँगे। हो सकता है देर लगे, बच्चे तब तक भूखे हो जाएँगे।’
पर बच्चे उदास बैठे रहे। सबसे बड़ा गौरव था । वह दार्शनिक अन्दाज़ में बोला–‘पापा! पहले इसके दाहसंस्कार का इंतजाम करिए। ऐसी स्थिति में तो हम भोजन भी नहीं करते। घूमना तो दूर की बात है।’
‘बेवकूफी की बात मत करो अभी जमादार आएगा, तब उसे इसको दे देंगे। वह इसे फेंक देगा।’
‘पापा! क्या मैं मर जाऊँगा तो मुझे भी जमादार को फेंकने के लिए दे देंगे।’
‘बदतमीज!’ कहते हुए मामाजी का एक जोरदार थप्पड़ गौरव के गाल पर पड़ा। हालांकि बाद में वह पछताने लगे।
गौरव की आँखों से आँसू निकलने लगे। अन्य बच्चे भी रोने लगे, उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि गौरव ने क्या गलत कह दिया है।
अब नानी बच्चों के पास आकर प्यार से बोलीं–‘बच्चों चलो उठो! पशु–पक्षियों का दाहसंस्कार नहीं होता है। तुम लोगों के लिए दूसरा तोता खरीद देंगे।’
अब गौरव फफक कर रो उठा–‘दादी! हमें दूसरा तोता नहीं चाहिए। यह कोई मिट्टी का खिलौना नहीं था। यह तोता तो हमारे साथ खेलता था। कभी उड़कर हमारे कन्धे पर बैठ जाता था, कभी अपनी कटोरी का खाना न खाकर हमारी थाली का भोजन जूठा कर देता था। जब हम उसे पकड़ने के लिए दौड़ते थे तब वह ऊपर उड़कर किसी कोने में बैठ जाता था। जब हम थक कर बैठ जाते थे, तब चुपके से हमारे कन्धे पर बैठ जाता था।’
‘हाँ नानी। हम उसे भूल नहीं सकते वह हमारा दोस्त था। दिन भर तो वह हमारे साथ खेलता था। शाम को वह अपने आप अपने पिंजरे में चला जाता था और पिंजरा बन्द करने के लिए आवाज देता था। पिंजरे को वह अपना सोने और खाने का कमरा समझता था।’
इतने में जमादार की आवाज आई। मामा जी ने तोता उसे दे दिया । कोई बच्चा डर के मारे कुछ बोल तो न सका किन्तु सभी बच्चे उदास थे व दिन भर ठीक से कुछ खा पी न सके।
उनका निश्छल मन यह नहीं सोच पा रहा था कि मनुष्यों की भाँति पशु–पक्षियों का भी दाहसंस्कार क्यों नहीं होता है। उनकी मृत्यु पर शोक क्यों नहीं मनाया जाता है?––––क्यों?
प्राणिमात्र पर दया मनुष्य का सहज स्वाभाविक गुण है।
‘हाँ बुआजी! जल्दी आइए वरना तोता जग जाएगा।’
‘बच्चों तोता लेटकर नहीं सोता है।’
‘वही तो हम भी कह रहे हैं, तोता लेट कर नहीं सोता है किन्तु आज लेटा है।’
‘देखो तुम लोग इतना शोर कर रहे हो, यह फिर भी नहीं उठ रहा है न। यह तो––––’
‘हाँ! इसकी तबियत खराब होगी। चलिए इसे डॉक्टर को दिखा देते हैं।’
‘इसे डॉक्टर को दिखाने की जरूरत नहीं है । यह तो––––’
बुआ जी की बात पूरी होने के पहले ही पूजा बोली–‘बुआजी! यहाँ डॉक्टर सक्सेना बहुत अच्छे हैं। हम लोग जब बीमार पड़ते हैं, तब उन्हीं को दिखाते हैं।’
‘बुद्धू! पशु–पक्षियों के डॉक्टर अलग होते हैं। चलो मामा जी से पूछते हैं कि यहाँ पर जानवरों का अस्पताल कहाँ है?’ छुट्टियों में ननिहाल आए हुए नितिन ने ममेरी बहन पूजा से कहा।
तब तक मामा–मामी भी वहाँ आ गए। नानी तख्त पर बैठी हुई सब्जी काट रही थीं और सब तमाशा देख रही थीं। वे बच्चों की नादानी पर मुस्करा रही थीं।
‘अरे मामा जी जल्दी करिए, तोते को पशु–पक्षियों के डॉक्टर के पास ले चलिए, इसकी तबियत बहुत खराब है। देर होने पर मर भी सकता है।’
‘ठीक कहा तुमने नितिन! तोता मर ही चुका है।’
‘क्या?’ सभी बच्चों का मुँह आश्चर्य और दु:ख के साथ खुला रह गया।
‘हाँ! क्योंकि तोता या कोई भी पक्षी लेटकर नहीं सोता है। जब पक्षी मर जाता है तब ही लेटता है।’मामी जी बोलीं।
‘वही तो मैं भी इतनी देर से कहना चाह रही थी।’बुआ जी ने कहा।
बच्चों ने पिंजरा नीचे उतार लिया और सब बच्चे उदास होकर तोते के चारों ओर बैठ गए। अपूर्वा तो रोने लगी।
मामा जी बोले–‘चलो बच्चों उठो, आज तुम लोगों को लखनऊ का चिड़ियाघर दिखाने ले चलेंगे। वहाँ पर तुम्हें बहुत से पशु–पक्षियों के बारे में जानकारी मिल सकेगी। चलो जल्दी तैयार हो जाओ ।’
बच्चों के उत्तर की प्रतीक्षा किए बगैर वह मामी जी से बोले–‘पूड़ी–सब्जी बना दो, साथ ले जाएँगे। हो सकता है देर लगे, बच्चे तब तक भूखे हो जाएँगे।’
पर बच्चे उदास बैठे रहे। सबसे बड़ा गौरव था । वह दार्शनिक अन्दाज़ में बोला–‘पापा! पहले इसके दाहसंस्कार का इंतजाम करिए। ऐसी स्थिति में तो हम भोजन भी नहीं करते। घूमना तो दूर की बात है।’
‘बेवकूफी की बात मत करो अभी जमादार आएगा, तब उसे इसको दे देंगे। वह इसे फेंक देगा।’
‘पापा! क्या मैं मर जाऊँगा तो मुझे भी जमादार को फेंकने के लिए दे देंगे।’
‘बदतमीज!’ कहते हुए मामाजी का एक जोरदार थप्पड़ गौरव के गाल पर पड़ा। हालांकि बाद में वह पछताने लगे।
गौरव की आँखों से आँसू निकलने लगे। अन्य बच्चे भी रोने लगे, उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि गौरव ने क्या गलत कह दिया है।
अब नानी बच्चों के पास आकर प्यार से बोलीं–‘बच्चों चलो उठो! पशु–पक्षियों का दाहसंस्कार नहीं होता है। तुम लोगों के लिए दूसरा तोता खरीद देंगे।’
अब गौरव फफक कर रो उठा–‘दादी! हमें दूसरा तोता नहीं चाहिए। यह कोई मिट्टी का खिलौना नहीं था। यह तोता तो हमारे साथ खेलता था। कभी उड़कर हमारे कन्धे पर बैठ जाता था, कभी अपनी कटोरी का खाना न खाकर हमारी थाली का भोजन जूठा कर देता था। जब हम उसे पकड़ने के लिए दौड़ते थे तब वह ऊपर उड़कर किसी कोने में बैठ जाता था। जब हम थक कर बैठ जाते थे, तब चुपके से हमारे कन्धे पर बैठ जाता था।’
‘हाँ नानी। हम उसे भूल नहीं सकते वह हमारा दोस्त था। दिन भर तो वह हमारे साथ खेलता था। शाम को वह अपने आप अपने पिंजरे में चला जाता था और पिंजरा बन्द करने के लिए आवाज देता था। पिंजरे को वह अपना सोने और खाने का कमरा समझता था।’
इतने में जमादार की आवाज आई। मामा जी ने तोता उसे दे दिया । कोई बच्चा डर के मारे कुछ बोल तो न सका किन्तु सभी बच्चे उदास थे व दिन भर ठीक से कुछ खा पी न सके।
उनका निश्छल मन यह नहीं सोच पा रहा था कि मनुष्यों की भाँति पशु–पक्षियों का भी दाहसंस्कार क्यों नहीं होता है। उनकी मृत्यु पर शोक क्यों नहीं मनाया जाता है?––––क्यों?
प्राणिमात्र पर दया मनुष्य का सहज स्वाभाविक गुण है।
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