मानवधर्म
मैं टैम्पो से लखनऊ में चौक स्थित काली जी के मन्दिर जा रही थी। तभी एक रिक्शा हमारी टैम्पो से टकरा गया। रिक्शे पर बैठी युवती का सिर बुरी तरह फट गया था। गल्ती रिक्शे वाले की ही थी।
मैंने टैम्पो वाले से कहा–‘इसे अस्पताल ले चलो।’
‘मैडम! मैं पुलिस केस में फँस जाऊँगा।’
‘मनुष्यता भी तो कोई चीज़ होती है।’कहते हुए उस महिला को कुछ लोगों की मदद से टैम्पो में लिटा दिया और टैम्पो चालक से कहा–‘टैम्पो चलाओ।’
टैम्पो वाला भला आदमी था, किन्तु पुलिस केस से बचना चाह रहा था फिर भी वह––––गाड़ी चलाने लगा और गाड़ी सीधे मेडिकल कॉलेज के इमर्जेन्सी वार्ड में जा कर रुकी।
इस मध्य मैंने उस महिला से उसके नाम, फोन नं॰, पते आदि की जानकारी प्राप्त कर ली थी।
किसी प्रकार मैं और टैम्पो चालक उस युवती को उतार कर इमर्जेन्सी वार्ड तक ले गए।
ऑन ड्यूटी डॉक्टर बोले–‘यह एक्सीडेंट कहाँ हुआ? आप लोग कौन हैं?’

‘डॉक्टर साहब! आप पहले इलाज प्रारम्भ करिए । मैं सब बताती हूँ।’
‘बिना शिनाख्त के हम लोग ऐसे केसेज़ में हाथ नहीं लगा सकते हैं।’
‘तब तक तो मरीज़ मर जाएगा, आपकी शिनाख्त ही चलती रहेगी। कम से कम फर्स्टएड तो दीजिए। साथ में मैं बता भी रही हूँ। क्या आपकी माँ इस जगह होती तो पहले आप शिनाख्त करते।’ मैं उत्तेजना में बोली।
खैर! तीर निशाने पर लगा। रेजीडेन्ट डॉक्टर ने फर्स्टएड देनी प्रारम्भ कर दी और मैंने उनके सहयोगी को रिपोर्ट लिखवानी। उस महिला के घर पर पहले ही टेलीफोन कर दिया था।
मरीज़ का बयान भी हो गया, उसके घरवाले भी आ गए, महिला की जान बच गई। मैंने और टैम्पो चालक ने चैन की साँस ली।
बाहर आकर टैम्पोचालक बोला–‘मैडम! यदि यह महिला मर जाती तो हम दोनों पुलिस केस में फँस जाते।’
‘दो बाते हैं– पहली तो यदि हमारा उद्देश्य सही है तो पुलिस केस में नहीं फँसेंगे। सही उद्देश्य हो तो भगवान भी मदद करता है। दूसरी बात-एक्सीडेंट तो किसी का भी हो सकता है। मुसीबत तो किसी के साथ भी आ सकती है। क्या हमारा एक्सीडेंट हो जाए तो कोई हमारी मदद नहीं करेगा। एक दूसरे
की मदद तो पशु भी करते हैं, फिर हम तो मनुष्य हैं। परोपकार ही सबसे बड़ा मानवधर्म है।’
‘मैडम! काली जी के मन्दिर चलेंगी।’ टैम्पोचालक बोला ।
‘रास्ते में काली जी के दर्शन तो हो गए। काली जी ही परीक्षा ले रही थीं कि मेरी मूर्तियों से प्रेम करते हो कि मेरे मानवरूप को भी प्रेम करते हो। भइया! तुमने आज बहुत अच्छा काम किया । काली माँ तुम पर कृपा करें। इसी प्रकार मानव धर्म निबाहते रहना।’
परोपकार ही सबसे बड़ा मानवधर्म है।
YYYYYY