Sunday, April 26, 2020


मानवधर्म
   मैं टैम्पो से लखनऊ में चौ स्थित काली जी के मन्दिर जा रही थी। तभी एक रिक्शा हमारी टैम्पो से टकरा गया। रिक्शे पर बैठी युवती का सिर बुरी तरह फट गया था। गल्ती रिक्शे वाले की ही थी।
   मैंने टैम्पो वाले से कहा–‘इसे अस्पताल ले चलो।
        मैडम! मैं पुलिस केस में फँस जाऊँगा।
        मनुष्यता भी तो कोई चीज़ होती है।कहते हुए उस महिला को कुछ लोगों की मदद से टैम्पो में लिटा दिया और टैम्पो चालक से कहा–‘टैम्पो चलाओ।
   टैम्पो वाला भला आदमी था, किन्तु पुलिस केस से बचना चाह रहा था फिर भी वह––––गाड़ी चलाने लगा और गाड़ी सीधे मेडिकल कॉलेज के इमर्जेन्सी वार्ड में जा कर रुकी।
   इस मध्य मैंने उस महिला से उसके नाम, फोन नं॰, पते आदि की जानकारी प्राप्त कर ली थी।
   किसी प्रकार मैं और टैम्पो चालक उस युवती को उतार कर इमर्जेन्सी वार्ड तक ले गए।
   ऑन ड्यूटी डॉक्टर बोले–‘यह एक्सीडेंट कहाँ हुआ? आप लोग कौन हैं?’
        डॉक्टर साहब! आप पहले इलाज प्रारम्भ करिए मैं सब बताती हूँ।
        बिना शिनाख्त के हम लोग ऐसे केसेज़ में हाथ नहीं लगा सकते हैं।
        तब तक तो मरीज़ मर जाएगा, आपकी शिनाख्त ही चलती रहेगी। कम से कम फर्स्टएड तो दीजिए। साथ में मैं बता भी रही हूँ। क्या आपकी माँ इस जगह होती तो पहले आप शिनाख्त करते। मैं उत्तेजना में बोली।
   खैर! तीर निशाने पर लगा। रेजीडेन्ट डॉक्टर ने फर्स्टएड देनी प्रारम्भ कर दी और मैंने उनके सहयोगी को रिपोर्ट लिखवानी। उस महिला के घर पर पहले ही टेलीफोन कर दिया था।
   मरीज़ का बयान भी हो गया, उसके घरवाले भी गए, महिला की जान बच गई। मैंने और टैम्पो चालक ने चैन की साँस ली।
   बाहर आकर टैम्पोचालक बोला–‘मैडम! यदि यह महिला मर जाती तो हम दोनों पुलिस केस में फँस जाते।
        दो बाते हैं पहली तो यदि हमारा उद्देश्य सही है तो पुलिस केस में नहीं फँसेंगे। सही उद्देश्य हो तो भगवान भी मदद करता है। दूसरी बात-एक्सीडेंट तो किसी का भी हो सकता है। मुसीबत तो किसी के साथ भी सकती है। क्या हमारा एक्सीडेंट हो जाए तो कोई हमारी मदद नहीं करेगा। एक दूसरे  की मदद तो पशु भी करते हैं, फिर हम तो मनुष्य हैं। परोपकार ही सबसे बड़ा मानवधर्म है।
        मैडम! काली जी के मन्दिर चलेंगी। टैम्पोचालक बोला
        रास्ते में काली जी के दर्शन तो हो गए। काली जी ही परीक्षा ले रही थीं कि मेरी मूर्तियों से प्रेम करते हो कि मेरे मानवरूप को भी प्रेम करते हो। भइया! तुमने आज बहुत अच्छा काम किया काली माँ तुम पर कृपा करें। इसी प्रकार मानव धर्म निबाहते रहना।
परोपकार ही सबसे बड़ा मानवधर्म है।
YYYYYY

Monday, January 28, 2019

नर्सरी शिक्षा : क्या, कब, क्यों व कैसे ?- पुस्तक मंगाने हेतु संपर्क - मोबाइल.- 9654135918 e-mail : chilbil.shubh@gmail.com

बच्चों को पहली कक्षा से पूर्व शिक्षा प्राप्ति के लिए तैयार करने हेतु जो शिक्षा अनौपचारिक रूप से या बिना पाठ्यक्रम निर्धारित किए हुए दी जाती है उसे पूर्व प्राथमिक शिक्षा, शाला पूर्व शिक्षा या स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम या नर्सरी शिक्षा कहते हैं । पूर्व प्राथमिक शिक्षा के लिए नर्सरी और के0 जी0 विद्यालयों की स्थापना बच्चे की विद्यालय के प्रति रुचि जाग्रत करने के लिए हुई थी । उद्देश्य यह था कि इनके माध्यम से स्कूल से ऊबने वाले बच्चों की संख्या में कमी की जाए, किन्तु अब तो इन विद्यालयों में तीन वर्ष की आयु से ही बच्चों को पढ़ना–लिखना सिखाया जाने लगा है, यह गलत है । नर्सरी शिक्षा का उद्देश्य बच्चे को अक्षर ज्ञान करवाना नहीं वरन् उसकी क्षमता का अधिकतम सीमा तक विकास करना और विद्यालय के प्रति रुचि जाग्रत कर उसे पढ़ने के लिए तैयार करना 
है ।
सरकारी विद्यालयों में भी कुछ सप्ताहों के लिए पूर्व प्राथमिक शिक्षा या नर्सरी शिक्षा की बहुत आवश्यकता महसूस की जा रही है ताकि बच्चा विद्यालय के वातावरण से परिचित हो सके तथा प्राथमिक शिक्षा के लिए तैयार हो सके । इसीलिए सन् 1999 में देश के केन्द्रीय विद्यालयों में पहली कक्षा में एडमीशन के बाद छ: सप्ताह का स्कूल रेडीनेस प्रोग्राम प्रारम्भ किया गया । 
बच्चों का बचपन–प्रकृति का अमूल्य उपहार है । जिस प्रकार खेत के तैयार हो जाने पर उसमें बीज डालने पर बहुत अच्छी फसल तैयार होती है, उसी प्रकार बच्चे की पढ़ाई प्रारम्भ होने से पूर्व यह आवश्यक है कि उसकी पढ़ाई के प्रति रुचि जाग्रत की जाए । विद्यालय उसकी सुखद कल्पनाओं की परिपूर्ति का स्थान हो । इस पुस्तक में नर्सरी शिक्षा के उद्देश्य, केन्द्रीय विद्यालय के बच्चोंं पर किया गया प्रायोगिक अनुभव व निष्कर्ष, नर्सरी शिक्षक की प्राथमिक गतिविधियाँ, नर्सरी शिक्षा का कार्यान्वयन, बच्चों के स्वस्थ विकास हेतु कुछ गतिविधियाँ, बच्चों के मानसिक रोग (निदान, कारण और समाधान), बच्चों के संतुलित विकास में शिक्षक व अभिभावकों का योगदान वर्णित है । शिक्षा के माध्यम के रूप में खेल व खेल–सामग्री की उपलब्धता व निर्माण के बारे में भी बताया गया है । 
बच्चों के खेल, कहानियाँ व कुछ लोकप्रचलित पहेलियाँ तथा शिशुगीत भी दिए गए हैं । शिशुगीतों, कहानियों आदि का शिशु मन पर पड़ने वाले सकारात्मक प्रभाव के बारे में भी वर्णन है ।

प्राकृतिक जीवनशैली से सम्पूर्ण स्वास्थ्य की प्राप्ति -पुस्तक मंगाने हेतु संपर्क - मोबाइल.- 9654135918 e-mail : chilbil.shubh@gmail.com

प्राकृतिक जीवनशैली से सम्पूर्ण स्वास्थ्य की प्राप्ति पुस्तक का सार–संक्षेप
इस पुस्तक में शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को अक्षुण्ण रखने के लिए जीवनयापन के तरीके की ओर इंगित किया गया है । यदि प्रकृति के नियमों का पालन किया जाए और मन को शान्त रखा जाए तो बीमार पड़ने की सम्भावना भी समाप्त हो सकती है । प्राकृतिक जीवनशैली का अर्थ है कि अपने शरीर को प्रकृति या कुदरत के ऊपर छोड़ दें । इस बात को हम इस प्रकार अधिक अच्छी तरह समझ सकते हैंµनदी के बहते हुए पानी में स्वत: शुद्धीकरण की क्षमता होती है । जो सामान्य गन्दगी आती है, उसे हमें साफ करने की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है, नदी स्वत: साफ कर लेती है । नदी का जल तब ही प्रदूषित होता है, जब हम आवश्यकता से अधिक कचरा उसमें डालते रहते हैं । यदि गंगा, यमुना आदि नदियों में या किसी भी नदी में आज की तारीख से भी कचरा डालना बन्द कर दिया जाए तो नदी का पानी कुछ समय में स्वयं को शुद्ध कर लेगा । एक तरफ तो नदी में पिछला कचरा पड़ा है, दूसरी तरफ अब भी कचरा डालते रहते हैं तो यह नदी की स्वत: शुद्धीकरण क्षमता की सीमा से अधिक हो जाता है और नदी का जल प्रदूषित हो जाता है ।
इसी प्रकार शरीर में कोई भी बीमारी होती है तो प्राकृतिक चिकित्सा का सिद्धान्त यह मानता है कि शरीर में कोई विकार है तो प्रकृति उस विकार को निकाल कर शरीर को स्वस्थ कर देगी ।
प्राकृतिक जीवनशैली पर कुछ विभूतियों के विचार दिए गए हैं । यौगिक सूक्ष्म व्यायाम एवं सूर्य नमस्कार तथा हस्तमुद्राओं का भी सचित्र वर्णन है । सरल व सहज प्राणायाम के तरीके और अपक्वाहार क्या, कब, क्यों व कैसे करें वर्णित है ।

मातृचेतना: लघु उपन्यास- पुस्तक मंगाने हेतु संपर्क - मोबाइल.- 9654135918 e-mail : chilbil.shubh@gmail.com

मातृचेतना उपन्यास में निहित मूलभाव

इस लघु उपन्यास लिखने का कारण है कि पाठक सहज ही इसे एक या दो बैठकों में पढ़ लें । इससे पढ़ने की रोचकता भी बनी रहती है और उपन्यास का संदेश भी सहज ही ग्राह्य होता है । यह उपन्यास बुजुर्गों के प्रति सहज संवेदनाओं को जागरूक करता है ।
जो बच्चा माँ का पल्लू पकड़ कर पीछे–पीछे घूमता था, वह इतना संवेदनशून्य कैसे हो जाता है कि वृद्धावस्था में उन्हें बृद्धाश्रम का रास्ता दिखा देता है । जिस देश की परम्परा रही है कि यहाँ पर मृतकों तक को तर्पण दिया जाता है, श्राद्ध किया जाता है । उस देश में उन्हें जीवित अवस्था में वृद्धाश्रम में भेज देना उचित नहीं है ।
इस उपन्यास में वृद्धाश्रमों में रह रहे बुजुर्गों की दशा, वृद्धाश्रम में आने के कारण और उनके निवारण की तरफ संकेत किया गया है । बुजुर्ग हो गए लोगों को महत्त्वहीन समझना हमारी भूल है । वह कुछ न भी करें तो उनके अन्तर से निकला हुआ आशीर्वाद ही हमारे लिए काफी है । कई बार बुजुर्ग लोगों की भी बच्चों से बहुत अधिक अपेक्षाएँ होती हैं । सामञ्जस्य दोनों तरफ से आवश्यक
है । 
मातृचेतना तो हर प्राणी में जन्म के साथ ही सहज स्वाभाविक होती है । इस संसार में उसे लाने वाले उसके माता–पिता ही तो होते हैं । शिशु का प्रथम परिचय अपनी माता से ही होता है । 
प्रश्न है कि बड़े होते–होते कहाँ चली जाती है यह सहज स्वाभाविक चेतना । इस लघु उपन्यास को लिखने का उद्देश्य ही यह है कि लोगों की सहज संवेदनाएँ उनके मन में स्थिर रहें । सर्वत्र मातृ देवो भव, पितृ देवो भव की ध्वनि गुञ्जायमान हो । 


डॉ– शोभा अग्रवाल ‘चिलबिल’
मो॰ – 09654135918 09335924979
ई मेल–chilbil.shubh@gmail.com

पर्यावरण संरक्षण सम्बन्धी बाल नाटक -पुस्तक मंगाने हेतु संपर्क - मोबाइल.- 9654135918 e-mail : chilbil.shubh@gmail.com

आज तो धरती का अस्तित्व ही खतरे में है। प्रदूषण और अन्य पर्यावरणीय समस्या हमारे सिर पर काल की तरह मंडरा रही हैं। इस समय हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता है- हमारे अपने अस्तित्व की रक्षा।
मानव की ही अनेक क्रियाएँ पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ती हैं। उदाहरण के लिए नदी के जल में अपने को स्वच्छ करने की प्राकृतिक क्षमता होती है। हम इसमें घरेलू और कारखानों से निकलने वाला कूड़ा-कचरा, प्लास्टिक आदि इतनी ज़्यादा मात्रा में डाल देते हैं कि जल स्वयं को स्वच्छ नहीं कर पाता और हम इस अस्वच्छ जल को प्रदूषित जल का नाम देते हैं। पेयजल का संकट सभी विकसित और विकासशील देशों के बीच चर्चा का मुख्य विषय है।
औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, भू प्रदूषण तथा ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा है। जो हमारे स्वास्थ्य के लिए गम्भीर रूप से हानिकारक है। ऐसे ही पानी के अत्यधिक दोहन के कारण पृथ्वी का भूजल स्तर नीचे जा रहा है, जो चिन्ता का विषय है। देखें कि कैसे हम छोटे-छोटे उपायों द्वारा समस्याओं को दूर करके धरती को स्वर्ग बना सकते हैं।
बचपन में हम भी तुम्हारी तरह माँ के हाथ की बनी गुझिया, मिठाइयाँ वगैरह खूब खाया करते थे। खूब शरारत करते, खेलते, पढ़ते और मौजमस्ती करते। बड़े लोग जो कहते मान लेते और खुद चिन्तामुक्त रह कर मजे करते रहते। चलो आज अपनी दादी के हाथ की अनोखी मिठाइयों (नाटकों) का आनन्द लो। इन नाटकों की यह भी विशेषता है कि कोई नाटक किसी भी समय व किसी भी अवसर पर खेला जा सकता है। यह नाटक नुक्कड़ नाटक के रूप में भी खेले जा सकते हैं।
दादी 
चिलबिल