‘सिर दर्द के मारे फटा जा रहा है। समझ में नही आ रहा है कि क्या करूँ?’
‘करोगे क्या? कुछ झाड़–फूँक करवाओ या देवी का अनुष्ठान करो, लगता है, देवी नाराज़ हो गई हैं।’ पत्नी निर्णायक स्वर में बोली।
‘देवी तो नाराज़ है किन्तु मैं कैसे कह दूँ कि घर के किसी एक सदस्य का सर्वनाश कर दो।’ व्यथित होते हुए रामकिशन बोले।
बात यह थी कि आज प्रात: पूजा करते समय उन्हें लगा था कि देवी कह रही हैं कि ‘मैं तुमसे नाराज़ हूँ। घर के किसी एक सदस्य पर विपत्ति आएगी। तुम बता दो कि किस पर विपत्ति आए कल तक का समय देती हूँ।’ तबसे ही पूरा घर परेशान था।
नवविवाहिता पुत्रवधू ने कहा–‘पिताजी मैं एक सलाह
दूँ।’
रामकिशन पुत्रवधू से कुछ बोल तो नहीं पाए किन्तु उन्हें बहुत बुरा लगा कि उनसे आधी उम्र की बहू प्रिया क्या सलाह देगी, फिर भी बोले–‘बताओ क्या बता रही हो, तुम्हारी भी सुन लूँ।’
‘आप देवी जी से कह दीजिए कि आप चाहे घर के जिस सदस्य पर विपत्ति लावें, केवल घर में परस्पर सुमति रहे।’
‘क्यों।’
‘पिता जी! आप देवी जी से इतना कहिए, हमारे ऊपर विपत्ति नहीं आएगी क्योंकि जहाँ पर सुमति होती है, वहीं पर आनन्द होता है।’ बहू विनती के स्वर में बोली।
खैर––––दूसरा दिन आया। देवी जी आयीं, अन्य कोई विकल्प न देखकर रामकिशन जी ने देवी जी को प्रणाम करके कहा–‘भगवती! आप इतना आशीर्वाद दीजिए कि घर के सदस्यों में परस्पर सुमति बनी रहे। अब आपकी इच्छा है, यदि आवश्यक ही है किसी पर विपत्ति आना तो घर के किसी भी एक सदस्य पर विपत्ति आ जावे।’
देवी जी ने मुस्कराते हुए कहा– ‘रामकिशन!
जहाँ सुमति तहँ सम्पति नाना ।
जहाँ कुमति तहँ विपति निदाना ॥
अत: मैं तुम्हें आशीर्वाद देती हूँ कि तुम्हारा परिवार सदा सुख समृद्धि से भरा रहेगा। तुमने सुमति की कामना की है। अत: तुम्हारे परिवार में कभी विपत्ति आ ही नहीं सकती, क्योंकि सुमति होने पर एक व्यक्ति के ऊपर विपत्ति आने पर पूरा परिवार मिलजुल कर उस समस्या को सुलझा लेता है।’
सुमति से ही समृद्धि मिलती है।
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