
आरोग्य की कुंजी नामक पुस्तक में गाँधीजी द्वारा वर्णित है,‘इस (सूर्य के) प्रकाश का हम पूरा उपयोग नही करते, इसलिए पूर्ण आरोग्य का भी अनुभव नहीं करते । जैसे हम पानी का स्नान करके साफ स्वच्छ होते हैं, वैसे ही सूर्य–स्नान करके भी साफ और तन्दुरुस्त हो सकते हैं । दुर्बल मनुष्य यदि प्रात:काल के सूर्य की किरणें नंगे शरीर पर ले, तो उसके चेहरे का फीकापन और दुर्बलता दूर हो जाएगी और यदि पाचन क्रिया मंद हो गई हो तो वह जाग्रत हो जाएगी । सबेरे जब धूप ज्यादा न चढ़ी हो उस समय यह स्नान करना चाहिए ।––––कई बार फोड़े का घाव भरता ही नहीं है । उसे सूर्य–स्नान दिया जाय तो वह भर जाता है ।”
आरोग्य की कुंजी पृष्ठ 49–50
यह तो स्वत: सिद्ध है कि केवल पचा हुआ भोजन ही शरीर निर्माता है । अपचा भोजन पौष्टिक होने पर भी शरीर में विकार के रूप में जमा होकर सभी रोगों का एकमात्र कारण है ।
इसके लिए आवश्यक है कि हम या तो समय–समय पर पूर्ण उपवास या अर्द्ध–उपवास करके शरीर से विकारों को निकालकर शरीर को रोगमुक्त करें या कोई ऐसी पद्धति हो कि शरीर में कोई नया विकार न बने तथा पुराने विकार (बीमारी) धीरे–धीरे शान्त हो जाएँ ।
यदि हम प्राकृतिक संरचना की ओर ध्यान दें तो रात्रि भोजन का कोई अर्थ नहीं है । सूर्योदय का अर्थ गति अर्थात् कार्य शुरू करना और सूर्यास्त का अर्थ है विश्राम अर्थात् कार्य की समाप्ति । सूर्यास्त के बाद मानवनिर्मित प्रकाश (बिजली) में हमें यूँ तो दैनिक जीवन के बहुत से काम करने ही पड़ते हैं किन्तु सूर्यास्त के बाद भोजन करना तो पूर्णतया अप्राकृतिक, अस्वाभाविक है । हम लोगों ने अपनी आदत डाल ली है अप्राकृतिक तरीके से रहने की, उसी तरह अप्राकृतिक भोजन की । सूर्यास्त के बाद भोजन करके शायद हम अपनी बुद्धिमत्ता दर्शाते हैं कि भगवान आपने सूर्यास्त कर दिया है, अब हम मानवनिर्मित रोशनी (बिजली जला कर) में भोजन बनाएँगे व देर रात में खाएँगे । लगता है महावीर स्वामी पूर्णतया प्रकृति के भक्त थे । शायद इसीलिए उन्होंने कपड़ों तक का परित्याग किया, सूर्यास्त के बाद भोजन का विरोध किया ।
गाँधी जी सन् उन्नीस सौ पन्द्रह में हरिद्वार गए । वहाँ पर उन्होंने दो व्रत लिए । उन्होंने कहा है,‘मैंने आहार की वस्तुओं की मर्यादा बाँधने और अंधेरे से पहले भोजन कर लेने का व्रत लेना निश्चय किया । चैबीस घंटों में पाँच चीज़ों से अधिक कुछ न खाने का और रात्रि भोजन त्याग का व्रत तो मैंने ले ही लिया ।
इन दो व्रतों ने मेरी काफी परीक्षा की है किन्तु जिस प्रकार परीक्षा की है, उसी प्रकार मेरे लिए ढाल भी सिद्ध हुए हैं । इनके कारण मेरा जीवन बढ़ा है और इनकी वजह से मैं अनेक बार बीमारियों से बच निकला हूँ ।’
आत्मकथा पृष्ठ 356–357
सूर्यास्त के पहले भोजन कर लेने से ग्रहण किए हुए भोजन को पाचन का अधिक समय मिल जाता है, हम जानते ही हैं कि वही भोजन हमारे शरीर का निर्माण करता है जो पच जाता है । इसलिए अधिक भोजन करना हमारे लिए लाभप्रद नहीं होगा वरन् वह भोजन लाभप्रद होगा जो पच कर रक्त में मिल
जावे । सूर्यास्त के पूर्व भोजन कर लेने से रात्रि भर हमारी पाचन प्रणाली भोजन को पचा सकेगी और सुबह आराम से पेट साफ हो जाएगा ।
वैसे भी सभी पशु स्वभावत: ही दिन में ही आहार लेते हैं । रात्रि में आहार नहीं लेते हैं । रात्रि में आहार वही पशु लेते हैं जिन्हें हम पाल कर उनकी आदत अपने जैसी डाल देते हैं ।
मनुष्य के बच्चे भी जब माँ का दूध पीना बन्द कर देते हैं, उसके बाद वह दिन में ही खाना पसन्द करते हैं । शाम को जल्दी सो जाते हैं व सुबह जल्दी उठते हैं ।
सूर्योदय के पूर्व उठना और रात्रि को जल्दी सोना स्वस्थ रहने की पहली शर्त है ।
प्रकृति के नियमों का जितना अधिक पालन करेंगे उतना ही अधिक अच्छा रहेगा ।
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