अंग्रेजों की आजादी
सुमित के दिमाग में नए-नए विचार जन्म लेते थे। उसने पढ़ा था कि हमें 15 अगस्त, 1947 को आजादी मिली। अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए और हम आजाद हो गए।
छुट्टी का दिन था। चिड़िया और तोता बेचने वाले ने आवाज लगाई- ‘चिड़िया ले लो, तोता ले लो।’
सुमित ने घर से बाहर आकर देखा। बड़ी सुन्दर-सुन्दर चिड़िया और तोते थे। उसकी दादी बरामदे में बैठी धूप सेंक रही थीं।
सुमित ने दादी से कहा- ‘दादी! बाहर तोता और चिड़िया बेचने वाला आया है। चलकर देखिए। अपने घर के लिए भी ले लीजिए।’
दादी बोलीं- ‘बेटा! किसी भी पक्षी को पिंजरे में बन्द रखना उसके साथ क्रूरता है।
तुम एक काम कर सकते हो। मैं तुम्हें पैसे दूँगी। तुम किसी भी पक्षी का एक जोड़ा खरीद कर पिंजरे से मुक्त कर दो, उड़ा दो, आजाद कर दो।’
सुमित बोला- ‘आपका मतलब है, हम पक्षी बेचने वाले से एक जोड़ा पक्षी खरीदें और उसी के सामने उसे पिंजरा खोल कर उड़ा दें।’
दादी ने कहा- ‘हाँ बेटा!’
अब दादी व सुमित घर के बाहर आए। दादी ने एक जोड़ा तोते का मूल्य पूछा। उन्होंने कहा- ‘हमें पिंजरा नहीं चाहिए, केवल तोते का मूल्य बताओ?’
पक्षी वाला बोला- ‘पिंजरा है क्या आपके पास तो ले आइए। उसी में तोते रख देंगे।’
‘नहीं हमें इन्हें पिंजरे में नहीं रखना है। हम आपसे खरीद कर इन्हें यहीं पर उड़ा देंगे, आजाद कर देंगे।’ सुमित ने कहा।
पक्षी वाले ने कहा- ‘जैसी तेरी इच्छा बेटे! उसने एक जोड़ा तोते एक छोटे पिंजरे में रख दिए।’
और दादी ने पक्षी वाले को एक जोड़ा तोते का मूल्य चुका कर सुमित से कहा- ‘बेटा! अब पिंजरा खोलकर उन्हें आजाद कर दो।’
सुमित ने ऐसा ही किया। पिंजरा खुलते ही पक्षी आकाश की ओर उड़ चले।
दादी और सुमित के साथ ही आसपास खड़े हुए लोग भी बहुत खुश हुए, सबने तालियाँ बजाईं। सुमित ने कहा- ‘पिंजरे में बन्द पक्षी आजाद हो गए।’
एकाएक उसके दिमाग में एक विचार कौंधा। घर आकर उसने कहा- ‘दादी! कहा जाता है कि 1947 में हम आजाद हुए। भारतीय तो यहीं रहे, हाँ! अंग्रेज जरूर बाहर चले गए। इसलिए अंग्रेज आजाद हुए। हम भारतीयों ने उन्हें आजाद कर दिया।’
दादी हँसने लगीं। बोलीं- ‘तेरा जवाब नहीं।’
जब वह पार्क में खेलने गया, तब उसने अपने दोस्तों से पूरे घटनाक्रम का जिक्र किया। उसके सभी मित्रागण उसकी बात से सहमत हुए।
बसन्ती बोली- ‘इस बार पन्द्रह अगस्त के दिन हम लोग एक बैनर बनाएँगे और उस पर लिखेंगे-‘अंग्रेज आजाद हुए हैं, हम नहीं।’
‘ठीक कहती हो बसन्ती।’इसी बात को इस तरह भी लिख सकते हैं-
‘आज अंग्रेजों के स्वतंत्रता दिवस पर उन्हें बधाई।’ - -
सबने तालियाँ बजाईं और कहा-‘बहुत बढ़िया।’
‘अब बैनर का इन्तजाम करना है। सुमित बोला।
‘चिन्ता मत करो। यहाँ पर या स्कूल के पार्क से हम एक डण्डी ढूँढ़ लेंगे। तख्ती मेरे पास है। सफेद चार्ट पेपर उस पर चिपका कर लिख देंगे।’कृष्णा बोली।
‘मेरे दिमाग में एक आइडिया और आ रहा है। कल हम लोग अपने अध्यापक से बात करेंगे। अगर विद्यालय में यह कार्यक्रम हो सके तो और भी अच्छा है।’
‘अगर अध्यापक जी तैयार हो जाते हैं तब हम लोग यह कार्यक्रम विद्यालय में भी करेंगे और विद्यालय से लौटने पर पार्क में भी।’अमित ने कहा।
‘ठीक कहते हो।’सुमित बोला।
दूसरे दिन बच्चों ने विद्यालय में अध्यापक से पूरी बात बताई। अध्यापक बात सुनकर मुस्करा दिए।
उन्होंने कहा- ‘मुझे प्राचार्य जी से अनुमति लेनी होगी।’
और दूसरे दिन उन्होंने बच्चों को बताया- ‘प्राचार्य जी की अनुमति मिल गई है। तुम लोग बैनर बना लो।’
बच्चों ने बैनर बनाया। बैनर पर ऊपर मोटा-मोटा लिखा था-
अंग्रेजों के स्वतंत्रता दिवस पर उन्हें बधाई
कुछ अंग्रेज अपना देश छोड़कर भारतरूपी सोने के पिंजरे में कैद हो गए थे। हमने उन्हें 15 अगस्त 1947 को इस पिंजरे की कैद से मुक्त कर दिया।
पन्द्रह अगस्त के दिन बच्चों ने विद्यालय की तरफ से रैली निकाली, उसमें बच्चे यह बैनर लेकर भी चले रहे थे। दर्शक लोग खूब हँसे।
घर आने पर शाम को पार्क में व पूरे मोहल्ले में भी रैली निकाली।
माँ ने सब बच्चों के लिए लड्डू बनाए थे। उन्होंने मोहल्ले की रैली के बाद सब बच्चों को घर पर बुलाया था।
सब बच्चे आए। माँ, दादी व पिता जी ने सब बच्चों के मुँह में अपने हाथ से लड्डू डाला।
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