Monday, August 6, 2018

प्रकृति का दोहन और स्वास्थ्य पर प्रभाव


Related imageमानव की ही अनेक क्रियाएँ पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ती हैं और इसको नुकसान पहुँचाती हैं । उदाहरण के लिए नदी के जल में अपने को स्वच्छ करने की प्राकृतिक क्षमता होती है । हम इसमें घरेलू और कारखानों से निकलने वाला कूड़ा–कचरा, प्लास्टिक आदि इतनी ज़्यादा मात्रा में डाल देते हैं कि जल स्वयं को स्वच्छ नहीं कर पाता और हम इस अस्वच्छ जल को प्रदूषित जल का नाम देते हैं । पेयजल का संकट सभी विकसित और विकासशील देशों के बीच चर्चा का मुख्य विषय है ।

पर्यावरण संबंधी समस्याएँ इतनी विकट हो चुकी हैं कि हमारे अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है । ओजोन परत के छेद के बारे में आप में से बहुतों को पता होगा,ओजोन परत में छेद हो गया है जो प्रतिवर्ष बड़ा होता जा रहा है । ओजोन है क्या और हम इसके छेद के बारे में इतना चिंतित क्यों हैं ? ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं (Atom) से ओजोन का एक अणु (Molecule) बनता है । यह एक वायुमंडलीय गैस है और पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच का काम करती है । मान लो कि एक पतला कम्बल पृथ्वी को लपेटे हुए इसकी रक्षा कर रहा है । जहाँ सूर्य की अन्य किरणें हमारे जीवन के लिए अनिवार्य हैं, वहीं उसकी पराबैंगनी (Ultraviolet)  किरणें हमारे लिए बहुत हानिकारक हैं । ओजोन सूर्य की पराबैंगनी (Ultraviolet)किरणों को अवशोषित (Absorb) कर लेती है और हम तक नहीं पहुँचने देती ।
ओजोन को नुकसान पहुँचाने में कई रसायन और मुख्य रूप से क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स CFCsउत्तरदायी हैं । क्लोरोफ्लोरोकार्बन का उपयोग फ्रिज, वातानुकूलन व अन्य शीतल यंत्रों को ठंडा करने में तथा अग्निशामक यंत्रों में उपयोग होता है । ओजोन परत ज्यों–ज्यों पतली होती जाएगी, सूर्य की पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर और ज़्यादा आएँगी । ये किरणें त्वचा की अनेक बीमारियों जैसे त्वचा कैंसर की संभावना को बढ़ाती हैं और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता घटाती हैं, जिससे अनेक बीमारियाँ पनपती हैं ।
पृथ्वी का औसत तापमान प्रतिवर्ष बढ़ता जा रहा है । इसे हम ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं । ग्लोबल वार्मिंग को इस तरह समझा जा सकता है,अति ठंडे प्रदेशों में वनस्पतियाँ उगाने के लिए ग्रीनहाउसों का उपयोग किया जाता है । ये काँच के घर होते हैं जिनमें सूर्य का ताप अंदर तो आ जाता है पर बाहर नहीं जा पाता । इस तरह अंदर की गर्मी धीरे–धीरे बढ़ती रहती है और पौधे उगाने के लिए उपयुक्त तापमान मिल जाता है ।
कुछ ऐसा ही प्रभाव कार्बनडाईऑक्साइड जैसी गैसों का हमारी पृथ्वी पर होता है । वे सूर्य के ताप को पृथ्वी की सतह पर आने तो देती हैं पर इस गर्मी को वायुमंडल के बाहर नहीं निकलने देतीं । इन गैसों को ग्रीनहाउस गैसें कहा जाता
 है ।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण अनेक ग्लेशियर पिघल रहें हैं और ध्रुवीय बर्फ भी पिघल रही है, जिसके कारण समुद्र का जल–स्तर बढ़ रहा है । यदि ऐसा ही होता रहा तो एक दिन सारी पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी । अत्यधिक तापमान बढ़ने के कारण जीवों और वनस्पतियों की अनेक प्रजातियाँ भी लुप्त हो रही हैं । बढ़ती हुई जनसंख्या, औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण जल–प्रदूषण, वायु–प्रदूषण, भू–प्रदूषण तथा ध्वनि–प्रदूषण बढ़ रहा है । जो हमारे स्वास्थ्य के लिए गम्भीर रूप से हानिकारक है । ऐसे ही पानी के अत्यधिक दोहन के कारण पृथ्वी का भूजल स्तर नीचे जा रहा है, जो चिन्ता का विषय है ।
पर्यावरणीय समस्याओं को लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.)  तथा विश्व की सरकारें काफी चिन्तित हैं । स्थानीय, प्रादेशिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सरकारें, स्वैच्छिक संस्थायें तथा व्यक्तिगत स्तर पर लोग पर्यावरण गुणवत्ता को बनाए रखने की दिशा में अनेक सम्मेलन कर रहे हैं किन्तु विकास व भौतिक सुविधाओं को मद्देनजर रखते हुए कोई सार्थक कदम नहीं उठ पा रहे हैं।
अभी तक तो हमने समस्याओं का संक्षिप्त विवेचन किया, जिनके कारण हमारे अस्तित्व को, हमारी शाँति, स्वास्थ्य को खतरा उत्पन्न हो गया है । अब देखें कि कैसे हम छोटे–छोटे उपायों द्वारा समस्याओं को दूर करके धरती को स्वर्ग बना सकते हैं ।

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