कुछ प्राणी आए नोच खसोट
कर चले गए
पात्र परिचय
बच्चे
आयु 9 से 12 वर्ष के
म/य
उमा
आदर्श
स्मिता
आनन्द
स्त्री पात्र
दादी उमा और आदर्श की दादी आयु लगभग साठ वर्ष
माँ उमा और आदर्श की माँ आयु लगभग पैंतीस वर्ष
पुरुष पात्र
बाबा उमा और आदर्श के
बाबा आयु लगभग साठ वर्ष
पिता जी उमा और आदर्श
के पिता जी आयु लगभग चालीस वर्ष
वेशभूषा
पात्र अभिनय के अनुकूल
वेशभूषा
(पर्दा खुलता है)
(प्रथम दृश्य)
(घर का दृश्य है । बच्चे
माता, पिता, दादी, बाबा सब नाश्ता कर रहे हैं ।)
माँ : बच्चों! तुम लोगों के लिए खुशखबरी है । तुम्हारी
बुआ और उनके बच्चे आनन्द और स्मिता कुछ दिनों के लिए आने वाले हैं ।
उमा :(दोनों हाथ ऊपर उठा कर खुशी से चिल्लाते हुए) भइया!
अब तो दिनभर धमाचैकड़ी होगी । कुछ योजनाएँ बना लो, जिससे समय आनन्द से बीते ।
आदर्श : कल से गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू होने वाली हैं
। आनन्द और स्मिता के आ जाने से छुट्टियों का मजा दुगुना हो जाएगा ।
उमा : तुमने तो मेरे मुँह की बात छीन ली । (धीरे से आदर्श
के कान में) कुछ नई शरारतें सोचनी पड़ेंगी ।
पिताजी :(मुस्कराते हुए) शरारतों की लिस्ट बना लो ।
आदर्श : पिताजी! आप हमें शरारत करने की शिक्षा दे रहे हैं
।
दादी : अरे बच्चों! जो यह खुद करता था, वही तो सिखाएगा
तुम्हें भी ।
(सब लोग हँसते हैं ।)
पिताजी : (कान पकड़ते हुए) माते! मेरे जैसा सीधा बच्चा पाकर
तुम धन्य हो गईं ।
दादी : (मुस्कराते हुए) वह तो मुझे मालूम है, जलेबी की
तरह सीधे हो ।
(सब खिलखिला कर हँस
पड़ते हैं ।)
माँ : (दादी से) माँजी! जरा इनके कान खींचिए तो मजा आए
।
दादी : आ! पहले तेरे कान खींचूँ फिर इसके कान खींचूँगी
।(दादी पहले माँ के कान खींचती हैं, फिर पिताजी के)
(बच्चे खुशी से नाचने
लगते हैं । माँ, बाबा और पिताजी भी खुशी से तालियाँ बजाते हैं ।)
पट–परिवर्तन
(दूसरा दृश्य)
(घर का दृश्य है । दादी,
बाबा और बच्चे बैठे हैं ।)
(नेपथ्य से घंटी की
आवाज आती है ।)
आदर्श : (बाहर की ओर दौड़ते हुए) लगता है बुआजी आ गई हैं
।
(आदर्श के साथ बुआजी
और उनके दोनों बच्चे आते हैं । उनके हाथ में सामान है । वह लोग दादी, बाबा के पैर छूते
हैं ।)
दादी–बाबा : (एक साथ) खुश रहो, सदा सुखी
रहो ।(सब बैठते हैं ।)
बाबा : रास्ते में कोई परेशानी तो नहीं हुई ?
बुआजी : नहीं बड़े आराम से आ गए, बस से दो घंटे का ही तो
सफर है ।
(माँ अन्दर से आ जाती
हैं ।)
माँ : (बुआजी के पैर छूती हैं ।) कैसी हैं दीदी!
बुआजी : (हाथ उठा कर आशीर्वाद देते हुए) खुश रहो! ठीक हूँ
।
बुआजी के बच्चे: (माँ
के पैर छू कर) प्रणाम मामी जी!
माँ : (आशीर्वाद देते हुए) खुश रहो, आनन्द और स्मिता!
बैठो अभी नाश्ता लाती हूँ ।
बुआजी : अरे भाभी! रास्ता ही दो घंटे का है । घर से सुबह
नाश्ता करके चले थे ।
आनन्द : (शरारत से) मामी जी! अगर कोई तर माल है तो अवश्य
ग्रहण करेंगे ।
(सब हँसते हैं ।)
माँ : (बच्चों से) आओ मेरे साथ रसोई में ।
(सब बच्चे माँ के साथ
अन्दर जाते हैं ।)
पट–परिवर्तन
(तीसरा दृश्य)
(घर के कमरे का दृश्य
है । जमीन पर बिस्तर लगा है । सब बच्चे बिस्तर पर बैठे हैं । माँ और बुआजी खड़ी हैं
।)
बुआजी : शरारती बच्चों! तुम लोगों के लिए जमीन पर बिस्तर
इसलिए लगा दिया है ताकि तुम लोग बिस्तर पर आराम से खेल सको, उछल–कूद सको ।
उमा : बुआजी! हम लोग तो बहुत सीधे हैं ।
बुआजी : (उमा के कान पकड़ते हुए) हाँ बिटिया! इतने सीधे
बच्चे तो होते ही नहीं है ।
(सब हँस पड़े)
(माँ का कमरे में मच्छरदानी
ले कर प्रवेश)
माँ : उठो बिस्तर से, मच्छरदानी लगा दें ।
आदर्श : (हाथ लहराते हुए) माते! घीदानी में घी रहता है,
तब मच्छरदानी में भी तो मच्छर ही रहेंगे न । इसलिए हम लोग मच्छरदानी नहीं लगाएँगे ।
माँ : (मुस्कराते हुए) अच्छा बच्चू! रोज तो मच्छरदानी
लगाते हो, तब मच्छर नहीं बनते हो ।
स्मिता : असल में इसका नाम मच्छरदानी नहीं मच्छरबचानी होना
चाहिए, कयोंकि यह मच्छरों से बचाती है ।
माँ : बात तो ठीक है । घीदानी में घी होता है, साबुनदानी
में साबुन तो मच्छरदानी में भी मच्छर ही रहने चाहिए । यह मच्छरों से बचाती है, इसलिए
यह मच्छरबचानी है ।
(सब बच्चे ताली बजाते
हैं ।)
स्मिता : मामी जी! इसीलिए तो कहते हैं कि बच्चों की बात
माननी चाहिए ।
(सब हँसते हैं ।)
माँ : चलो, मच्छरबचानी लगा दें ।
आदर्श : (खडे़़ होकर नाटकीय तरीके से) माते! अभी तो
हम लोग खेलेंगे, रात में भी पंखा चलेगा, इसलिए मच्छर नहीं काटेंगे । प्लीज माँ! मच्छरबचानी
मत लगाइए ।
(माँ चली जाती हैं ।
बच्चे कैरमबोर्ड खेलने लगते हैं । जब आनन्द को जम्हाई आने लगती है तब सब बच्चे सो जाते
हैं ।)
आनन्द : (उठकर बिस्तर पर बैठे हुए ही मच्छर भगाते हुए) हट
यहाँ से ।
स्मिता : (उठकर आँख मलती है ।) अरे यहाँ तो बहुत मच्छर हैं
।
(आदर्श और उमा भी उठ
जाते हैं ।)
आदर्श : आज तो रात भर मच्छरों ने खूब परेशान किया ।
आनन्द : मच्छरों ने तो परेशान किया, लेकिन शरारत का एक अच्छा
आइडिया आया है ।
सब बच्चे : क्या ?
आनन्द : (धीरे से) सब लोग पास आओ, कोई सुन न
ले ।
(सब बच्चे आनन्द के
पास आते हैं ।)
(आनन्द धीरे–धीरे अपनी योजना बताता है ।)
आदर्श : अरे वाह क्या आइडिया है ।
(बच्चों की आवाज सुनकर
बाबा कमरे में आते हैं ।)
बाबा : अरे बच्चों!
बड़े सवेरे उठ गए । आओ मेरे साथ सैर करने चलो ।
आनन्द : (उठते हुए) क्या बताएँ नानाजी! हम बहुत परेशान हैं
।
(तब तक माँ, पिताजी
और दादी भी कमरे में आ गए ।)
माँ : क्या बात है, क्यों परेशान हो बेटा?
आनन्द : क्या बताएँ मामीजी! रात को कुछ प्राणी कमरे में
आए और हमें नोच–खसोट कर चले गए ।
सब बड़े लोग : (एक साथ) क्या?
(सब बच्चों के पास ही
बैठ जाते हैं और उनको सहलाने लगते हैं ।)
माँ : (कुछ गुस्से में) यह अब बता रहे हो, कौन आया था
रात को घर में? तभी क्यों नहीं चिल्लाए?
आनन्द : आप लोग परेशान न हों । वह नोचने–खसोटने वाले प्राणी मच्छर थे ।
माँ : (गुस्से में) मच्छरों ने काटा, तुम तो कह रहे थे
कि कुछ लोग अन्दर आकर नोच–खसोट कर चले गए ।
आदर्श : (माँ से लिपटते हुए) प्यारी माँ! आनन्द के शब्द
थे– ‘आज हमारे कमरे में कुछ प्राणी आए और नोच–खसोट कर चले गए । मच्छर
भी तो प्राणी ही हैं न ।
(माँ के साथ ही सब हँस
पड़े)
माँ : (आनन्द के कान खींचते हुए) शरारती बच्चे! हम लोग
तो घबरा ही गए थे ।
आनन्द : (माँ के पैर छूते हुए) धन्यवाद मामी जी! आपने मुझे
शरारती कहा, बहुत अच्छा लगा । आशीर्वाद दीजिए, हम लोग इसी प्रकार शरारत करते रहें ।
माँ : (आनन्द के सिर पर हाथ फेरते हुए) स्वस्थ रहो, सानन्द
रहो ।
सब बच्चे : शरारती बच्चों की जय हो ।
बाबा : (दोनों हाथ उठा कर) शरारती बच्चों की जय हो ।
(सब हँस पड़े)
बाबा : बच्चों! इसी खुशी में आज तुम लोगों को चिड़ियाघर
ले चलेंगे ।
सब बच्चे : (खुशी से) अरे वाह ।
(पटाक्षेप)
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