गुझिया कैसे खाएँ
आज होली जलनी
है और कल होली खेली जाने
वाली है। इसलिए
आज बच्चों की छुट्टी है। जब अंकित और प्रिया सोकर उठे, तब देखा कि माँ और दादी गुझिया बनाने में जुटी
हैं। बच्चे बहुत
खुश हुए। दोनों
बच्चे लैट्रीन और मंजन करके आ गए।
अंकित बोला-
‘माँ! गुझिया खाने
को दो।’
माँ बोलीं-
‘गुझिया शाम को होलिका पर चढ़ाने
के बाद ही मिलेगी।’
‘माँ! हम लोग दो-चार गुझिया खा भी लेंगे तो होलिका देवी को क्या
कमी पड़ जाएगी?’
अंकित शरारत से बोला।
दादी मुस्कराने लगीं। माँ ने कुछ गुस्से में कहा- ‘जाओ जाकर नहा लो, दिमाग
मत चाटो।’
अंकित मुस्कराते हुए बोला- ‘हम आपका दिमाग कैसे
चाट सकते हैं।
हम आपसे इतना
दूर खड़े हैं,
हमारी तो जबान
भी इतनी लम्बी
नहीं है कि आप तक पहुँच
सके।’
माँ के कुछ बोलने से पहले ही दादी
हँसते हुए बोलीं-
‘जाओ! पहले नहा कर आओ।’
प्रिया ने अंकित के कान में धीरे से कहा- ‘चलो, चलकर नहा लेते हैं,
तब तो गुझिया खाने को मिल ही जाएगी।’
दोनों बच्चे
नहाने चले जाते
हैं। थोड़ी देर बाद बच्चे नहा कर और बाल काढ़ कर आते हैं। पास में बिछी चटाई पर बैठ जाते हैं।
माँ दोनों को दूध व पराँठा देती हैं। दोनों
बच्चों के मुँह
से एक साथ निकला- ‘माँ! यह क्या दे रही हो, गुझिया दो न।’
दादी बोलीं-
‘बच्चों! ध्यान से सुनो। गुझिया बनने
के बाद सबसे
पहले होलिका पर चढ़ाई जाती है, उसके बाद ही कोई खा सकता
है। ऐसा हर साल ही तो होता है, तुम लोग भूल जाते
हो।’
बच्चे चुपचाप दूध-पराँठा खाने
लगते हैं। उनके
मन में गुझिया खाने की इच्छा
बनी हुई थी।
माँ और दादी ने गुझिया बनाकर दोपहर को टाँड़ पर रख दीं, जिससे बच्चे
उस तक न पहुँच सकें। वह लोग थकी होने
के कारण सो गईं। पापा और बाबा भी कहीं
पर काम से निकल गए थे।
अब अंकित
और प्रिया टाँड़
की ओर देखते
हुए गुझिया खाने
की योजना बनाने
लगे।
प्रिया टाँड़
की ओर देखती
हुई बोली- ‘अंकित!
टाँड़ इतनी ऊँची
है कि हम लोग उस तक पहुँच नहीं सकते
हैं। इसलिए सोचना
बेकार है, शाम का इन्तजार करो।
पूजा के बाद तो गुझिया मिल ही जाएगी।’
अंकित ने कहा- ‘रुको दीदी! पड़ोस से वीरेश,
लोकेश और वंदना
को बुला लाते
हैं। उन्हें भी तो अभी गुझिया खाने को नहीं
मिली होगी। हम एक दूसरे पर चढ़ कर तो टाँड़ तक पहुँच
ही जाएँगे न।’
‘आइडिया तो अच्छा है।’
और वह लोग पड़ोस से वीरेश, लोकेश और वंदना को बुला
लाते हैं। सब बातें करने लगते
हैं।
अंकित ने कहा- ‘धीरे-धीरे बात करो। माँ और दादी सो रही हैं। अगर जाग गईं तो सब कबाड़ा हो जाएगा।’
बच्चे धीरे-धीरे बातें करने
लगे। लोकेश ने कहा- ‘हम लोगों में वीरेश सबसे
तगड़ा है वह खड़ा रहेगा। इसके
ऊपर मैं बैठ जाऊँगा, फिर वंदना। वंदना टाँड़ पर चली जाएगी। अब प्रिया मेरे ऊपर बैठ जाएगी। इस प्रकार वंदना टाँड़
से गुझिया देती
जाएगी और अंकित
नीचे रखे अखबार
पर इकट्ठा करता
जाएगा। उसके बाद सब लोग नीचे
बैठ कर गुझिया का आनन्द लेंगे।’
इस योजना
पर अमल किया
गया। वंदना ने गुझिया प्रिया को पकड़ाई। प्रिया ने लोकेश को, लोकेश
गुझिया खाने लगा।
वंदना बोली-
‘अभी गुझिया मत खाओ। नीचे उतर कर सब लोग खाएँगे।’
गुझिया खाते
हुए लोकेश बोला-
‘दूसरी गुझिया दो, वह नीचे पहुँचाऊँगा।’
वन्दना ने दूसरी गुझिया प्रिया को पकड़ाई, प्रिया ने लोकेश को, लोकेश ने वीरेश
को। वीरेश गुझिया जल्दी-जल्दी खाने
लगा।
प्रिया ने कहा- ‘अभी कोई गुझिया मत खाओ।
गुझिया इकट्ठी कर लेने दो, फिर सब लोग खाएँगे।’
जल्दी-जल्दी
गुझिया खाने के चक्कर में वीरेश
को खाँसी आ गई और सब गिर पड़े। प्रिया का सिर फट गया। उसके सिर से खून निकलने लगा। सब बच्चे
परेशान होकर चिल्लाने लगे। टाँड़ पर बैठी वन्दना भी रोने लगी।
लोकेश ने अपनी कमीज उतारकर प्रिया के सिर पर लगा दी। वीरेश और अंकित
माँ और दादी
को बुलाने जा ही रहे थे कि बच्चों का शोर सुनकर वह स्वयं ही दौड़ी
हुई आ गईं।
प्रिया का सिर फटा देख कर माँ दौड़ी
हुई अन्दर र्गइं
और फस्र्ट-एड बॉक्सलाकर प्रिया को एड दी।
इस बीच दादी ने लोकेश
से कहा- ‘जाकर
पड़ोस से हरीश
चाचा को बुला
लाओ। वह इस समय घर पर होंगे। वह प्रिया को अस्पताल ले जाएँगे।’
लोकेश जाकर
हरीश चाचा को बुला लाया। उन्होंने आकर वस्तुस्थिति जाननी चाहिए।
दादी बोलीं-
‘सारी बात बाद में बताऊँगी। अभी तो तू प्रिया को लेकर अस्पताल जा और टाँड़
पर बैठी वन्दना को उतार दे।’
हरीश चाचा
अपने दोनों हाथ ऊपर करते हैं और वन्दना को टाँड़ से उतार
देते हैं, फिर प्रिया को लेकर
अस्पताल चले जाते
हैं।
अब माँ और दादी बच्चों की खबर लेती
हैं- ‘हाँ! अब बताओ क्या कर रहे थे?’
अंकित ने डरते हुए कहा-‘दादी! हम लोग गुझिया खाना चाहते
थे। इसलिए पड़ोस
से वीरेश, लोकेश
और वन्दना को भी बुला लाए।
एक-दूसरे पर चढ़कर वन्दना टाँड़
पर पहुँच गई। वन्दना ने प्रिया को गुझिया को दी, प्रिया ने लोकेश को, लोकेश
ने वीरेश को। वीरेश सबसे नीचे
खड़ा था। वह गुझिया जल्दी-जल्दी
भरने लगा। उसे खाँसी आ गई। सब भड़भड़ा कर गिर पड़े।’
‘और इसी चक्कर में प्रिया का सिर फट गया।’ -माँ बोलीं।
लोकेश, वीरेश
और वन्दना ने डरते हुए कहा-‘हम लोग घर जाएँ।’
‘हाँ! घर जाओ! शाम को गुझिया खाने आना।’ दादी उनके
कन्धे पर हाथ रखते हुए प्यार
से बोलीं।
बच्चों का डर कुछ कम हुआ। वह घर चले गए। थोड़ी
देर बाद पापा
और बाबा भी आ गए।
पापा बोले-
‘अगर बच्चों को पहले ही गुझिया दे दी जाती
तो यह सब क्यों होता।’
दादी बोलीं-
‘तुझे मालूम नहीं
है क्या? होलिका पर चढ़ाने के बाद ही गुझिया खाई जाती है।’
पापा हँसते
हुए बोलीं- ‘होलिका की अग्नि में तो गुझिया जल कर नष्ट हो जाती है। उससे
अच्छा तो है कि गरीबों को ही गुझिया खिला
दी जाए।’
पापा को डाँटते हुए दादी
बोलीं- ‘अमर! तू नास्तिकों जैसी बात करता है।’
अब बाबा
हँसते हुए बोले-
‘अमर की माँ!
नास्तिकों जैसी बात कहाँ? तुम ही तो कहती हो कि बच्चे भगवान
का रूप होते
हैं। इसलिए अगर बच्चे खाएँगे तो भगवान को अपने
आप मिल जाएगा।’
सबकी बातचीत सुनकर प्रिया उठ गई। वह अपनी
चोट का दर्द
भूलकर बोली- ‘दादी!
होलिका की पूजा
हो गई क्या?
अब गुझिया मिलेगी?’
अब बाबा
उठकर कहते हैं-
‘इसका भोलापन देखकर
मुझसे नहीं रहा जाता है।’ कहते
हुए वह अन्दर
जाकर गुझिया का एक डिब्बा उठा लाते हैं व उसमें से एक गुझिया निकाल कर प्रिया को देते
हैं।
प्रिया गुझिया खाने लगती है। बाबा गुझिया का डिब्बा खोल कर रख देते हैं।
अंकित और प्रिया से कहते हैं-
‘लो बच्चों! जितनी
गुझिया चाहो, खाओ।’
अंकित कहता
है- ‘लोकेश, वीरेश और वन्दना को भी बुला लाऊँ?’
बाबा कहते
हैं- ‘हाँ, बुला लाओ।’
अंकित गुझिया खाता हुआ जाता
है और बच्चों को बुला लाता
है।
सब बच्चे
गुझिया निकाल-निकाल
कर खाने लगे।
उन्हें देखकर दादी
बोलीं- ‘अमर के बाबू जी! तुम ठीक कहते हो। बाल-भगवान की सच्ची मूर्तियाँ तो यही हैं। जब बच्चे खुश रहेंगे तो भगवान भी खुश रहेंगे।’
पापा ताली
बजाते हैं। बच्चे
भी ताली बजाते
हैं। पापा कहते
हैं- ‘माँ! एक बात कहना चाहता
हूँ। हमारे देश में लगभग तीस करोड़ परिवार हैं।
यदि हर परिवार से एक गुझिया भी होलिका पर चढ़ाई गई तो तीस करोड़ गुझिया तो होलिका में जलकर ही नष्ट
हो जाती हैं।....’
दादी बीच में बात काटते
हुए बोलीं- ‘इससे
अच्छा तो यह है कि वह गुझिया गरीबों को ही खिला दी जाएँ।’
पापा उत्साह से बोले- ‘वाह क्या बात है।’
अंकित बोला-
‘आप लोगों की बात हमारे मन में बैठ गई है। अब हर साल हम सब बच्चे अपने-अपने
हिस्से की कम से कम एक-एक गुझिया गरीबों को अवश्य खिलाएँगे।’
सब बच्चे
बोलते हैं- ‘हम सब भी वादा
करते हैं कि अपने हिस्से की कम से कम एक-एक गुझिया गरीबों को अवश्य
खिलाएँगे।’
बाबा चुटकी
लेते हुए बोलते
हैं- ‘बोलो! दादी महारानी की जय।’
सब लोग बोलते हैं-‘दादी
महारानी की जय।’
प्रिया कहती
है-‘इस समय बाबा की वजह से ही गुझिया खाने को मिली
है। ‘बोलो बाबा
महाराज की जय।’
सब लोग कहते
हैं-‘बाबा महाराज की जय।
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