Monday, August 6, 2018

प्राणायाम और वायुतत्त्व


Image result for प्राणायाम और वायु तत्त्व प्राणायाम (प्राण़आयाम) योग का चौथा अंग है । चूँकि प्राणायाम से शरीर के श्वसनतंत्र को भी बहुत लाभ होता है, इसलिए बहुत से लोग इसे शरीर को अतिरिक्त ऑक्सीजन प्रदान करने वाला मात्र फेफड़ों का व्यायाम ही समझते हैं । जबकि यह केवल श्वसन व्यायाम ही नहीं है, बल्कि सूक्ष्म रूप से श्वसन के माध्यम से प्राणमय कोष की नाड़ियों, नलिकाओं एवं प्राण के प्रवाह पर प्रभाव डालता है । फलस्वरूप प्राणायाम अभ्यासी की शारीरिक सुख के अलावा मानसिक स्थिरता तो बढ़ती ही है, साथ ही मन पर भी अधिकार हो जाता है ।

जीवन रहने के लिए वायु की महती आवश्यकता है,इस सत्य से कौन अपरिचित है । यही कारण है कि प्रत्येक जीवधारी सोते–जागते––––यहाँ तक कि बेहोशी की अवस्था में भी अविराम गति से श्वास लेतेऔर छोड़ते रहते हैं अन्यथा मृत्यु हो जाए । स्वाभाविक गति से हम–आपज्यों श्वास लेते और छोड़ते हैं, उससे अपनी जीवनीशक्ति को सामान्यतो बनाए रख सकते हैं लेकिन उसे और विकसित नहीं कर सकते ।
यदि अज्ञानता अथवा किसी कष्ट के कारण श्वास अधूरा ही ले रहे हैं तो जीवनीशक्ति शीघ्र ही क्षीण हो जाती है । मुँह से श्वास लेनाअथवा अशुद्ध वायु में लिया गया श्वास तो सदा ही हानिकारक होता है ।

गाँधी जी कहते हैं,‘हवा शरीर के लिए सबसे जरूरी चीज़ है । इसीलिए ईश्वर ने हवा को सर्वव्यापी बनाया है और वह हमें बिना किसी प्रयत्न के मिल जाती है ।
हवा को हम नाक के द्वारा फेफड़ों में भरते हैं । फेफड़े धौंकनी का काम करते हैं । वे हवा को अन्दर खींचते हैं और बाहर निकालते हैं । बाहर की हवा में प्राणवायु होती है । वह न मिले तो मनुष्य जिन्दा नहीं रह सकता । इसलिए घर ऐसा होना चाहिये, जिसमें हवा अच्छी तरह आ–जा सके और सूर्य–प्रकाश के आने का रास्ता भी हो ।
हवा का काम रक्त की शुद्धि करना है, मगर हमें फेफड़ों में हवा भरना और उसे बाहर निकालना ठीक तरह से नहीं आता । इसलिए हमारे रक्त की शुद्धि भी पूरी तरह नहीं हो पाती । कई लोग मुँह से श्वास लेते हैं । यह बुरी आदत है । नाक में कुदरत ने एक तरह की छलनी रखी है, जिससे हवा छनकर भीतर जाती है, और साथ ही गरम होकर फेफड़ों में पहुँचती है । मुँह से श्वास लेने से हवा न तो साफ होती है और न गरम ही हो पाती है ।–––
चलते, फिरते और सोते वक्त अगर लोग अपना मुँह बन्द रखें, तो नाक अपना काम अपने–आप करेगी ही । सुबह उठकर जैसे हम मुँह साफ करते हैं, वैसे ही हमें नाक भी साफ करनी चाहिये ।––––फेफड़ों में शुद्ध हवा ही भरनी चाहिये । इसलिए रात को आकाश के नीचे या बरामदे में सोने की आदत डालना अच्छा है । हवा से सरदी लग जाएगी, यह डर नहीं रखना चाहिये । ठंड लगे तो हम ज्यादा कपड़े ओढ़ सकते हैं । ओढ़ने का कपड़ा गले से ऊपर नहीं जाना चाहिये । अगर सिर ठंडक को बरदाश्त न कर सके तो उस पर रुमाल बाँध लेना चाहिये । मतलब यह कि नाक को, जो कि हवा लेने का द्वार है, कभी ढकना नही चाहिये ।
सोते समय दिन के कपड़े उतार देने चाहिये । रात को कम कपड़े पहनने चाहिये और वे ढीले होने चाहिये । दिन में भी कपड़े जितने ढीले पहने जायें उतना ही अच्छा है ।
हमारे आसपास की हवा हमेशा शुद्ध ही होती है, ऐसा नहीं होता और न सब जगह की हवा एक सी होती है । प्रदेश के साथ हवा भी बदलती है । प्रदेश का चुनाव हमारे हाथ में नहीं होता । मगर घर का चुनाव थोड़ा–बहुत हमारे हाथ में जरूर रहता हैय और रहना भी चाहिये । सामान्य नियम यह हो सकता है कि घर ऐसी जगह ढूँढ़ा जाए, जहाँ बहुत भीड़ न हो, आसपास गंदगी न हो और हवा और प्रकाश ठीक–ठीक मिल सके ।’
आरोग्य की कुंजी
पृष्ठ 4–6
बापू ने अपने प्रवचनों में बताया,‘आदमी बिना खाये कई हफ्तों तक जी सकता है, लेकिन हवा के बिना तो कुछ ही मिनटों में उसकी देह का अन्त हो सकता है । इसलिए ईश्वर ने हवा को सबके लिए सुलभ बनाया है । अन्न और पानी की तंगी कभी–कभी पैदा हो सकती है, हवा की कभी नहीं । ऐसा होते हुए भी हम बेवकूफों की तरह अपने घरों के अन्दर खिड़की और दरवाजे बन्द करके सोते हैं और ईश्वर की प्रत्यक्ष प्रसादी जैसी ताजी और साफ हवा से फायदा नहीं उठाते । अगर चोरों का डर लगता है तो रात में अपने घरों के दरवाजे और खिड़कियाँ बन्द रखिये, लेकिन खुद अपने को उनमें बन्द रखने की क्या जरूरत है ?
साफ और ताजी हवा पाने के लिए आदमी को खुले में सोना चाहिएय लेकिन खुले में सोकर धूल और गन्दगी से भरी हवा लेने का कोई मतलब नहीं । इसलिए आप जिस जगह सोयें वहाँ धूल और गन्दगी नहीं होनी चाहिए । धूल और सरदी से बचने के लिए कुछ लोग सिर से पैर तक ओढ़ लेने के आदी होते हैं । यह तो बीमारी से भी बदतर इलाज हुआ । दूसरी बुरी आदत मुँह से श्वास लेने की है । नथुनों की राह फेफड़ों में पहुँचने वाली हवा छन कर साफ हो जाती है और उसे जितना गरम होना चाहिए उतनी गरम भी वह हो जाती है ।
जो आदमी जहाँ चाहे वहाँ और जिस तरह चाहे उस पर थूक कर, कूड़ा–करकट डाल कर, गन्दगी फैलाकर या दूसरे तरीकों से हवा गन्दी करता है, 
वह कुदरत का और मनुष्य का अपराध करता है । मनुष्य का शरीर ईश्वर का मंदिर है । उस मंदिर में आने जाने वाली हवा को गन्दी करता है, वह मंदिर को भी बिगाड़ता है । उसका रामनाम लेना व्यर्थ है ।’’
हरिजन सेवक
07–04–46

श्वास का रहस्य
प्राणायाम के सम्बन्ध में कुछ भी जानने से पहले हमें श्वास के रहस्य को जान लेना परम आवश्यक है, क्योंकि हमारा जीवन पूर्णतया श्वास पर ही अवलम्बित है । वैसे भी शरीर की समस्त क्रियाओं में से श्वास क्रिया प्रधान है, क्योंकि भोजन के बिना मनुष्य कुछ समय तक जीवित रह सकता है, परन्तु बिना श्वास लिए जीवन कुछ क्षण भी चलना असम्भव है ।

श्वास लेने की उपयुक्त विधि
स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन के लिए श्वास–प्रश्वास का सही तरीका जानना आवश्यक है क्योंकि अनियन्त्रित, उल्टा अथवा अधूरा श्वास लेने से फेफड़ों की शक्ति शीघ्र ही क्षीण होने लगती है । फलस्वरूप शरीर में नाना प्रकार के रोग उत्पन्न होने लगते हैं । जैसे,सर्दी, जुकाम, खाँसी, दमा इत्यादि अर्थात् अपूर्ण श्वास लेने से मनुष्य सदा बीमार रहता है ।

श्वास नाक से लीजिए, मुँह से नहीं
श्वास सदैव नाक से लें । यदि मुँह से श्वास लेने की आदत पड़ गई होे तो इसे छोड़ने का प्रयत्न करें । मुँह केवल बोलने एवं भोजन करने के लिए है । मुँह से श्वास लेने से अनेक संक्रामक व्याधियाँ हो जाती हैं । जुकाम और सर्दी का प्राय: यही कारण है, क्योंकि श्वास लेने वाले अंग नाक में ही प्रकृति ने ऐसी व्यवस्था की है कि,
1– शरीर तापक्रम से कम या अधिक वायु को शरीर के तापक्रम के अनुकूल बनाकर अन्दर जाने दें ।
2– वायु के साथ आ रहे धूल कणों को नाक में ही रोक लें ।
3– वातावरण के रोग–उत्पादक कीटाणुओं को नष्ट कर दें ।
चूँकि मुँह में ऐसा कोई प्रबन्ध नहीं है, इसलिए ठंडी या गरम वायु, धूल के कण एवं कीटाणु मुँह द्वारा फेफड़ों में पहुँच जाते हैं ।
अतएव जिन लोगों को मुँह से श्वास लेने की आदत है, उन्हें चाहिए कि नाक द्वारा श्वास लेने का अभ्यास करें ।
नोट : यदि घर में कोई सोते या जागते समय मुँह खुला रखता है तो उन्हें नाक से श्वास लेना बताएँ अन्यथा स्नोफीलिया, ब्राँकाइटिस या दमा के रोगी हो सकते 
हैं ।
श्वास ही उल्टा
किसी–किसी को ऐसा भी अनुभव होता है कि श्वास अन्दर लेते समय तो पेट अन्दर जाता है एवं जब श्वास बाहर फेंकते हैं तो पेट बाहर आता है । ऐसे लोग सदा बीमार रहते हैं क्योंकि उनकी श्वास क्रिया ही उल्टी है । यदि ऐसा हो तो पहले श्वास सीधा कीजिए । इसके लिए कुछ दिन लगातार शवासन में लेटकर श्वास सीधा करने की क्रिया करने का प्रयास करना होगा । दिन में कई बार ध्यान देना होगा, तब कहीं जाकर यह आदत सुधरेगी ।
पूरा श्वास लीजिए
कभी सोते हुए बच्चे को ध्यान से देखिए । श्वास अन्दर आने के साथ उसका पेट काफी बाहर तक आता है और श्वास के बाहर जाने के साथ उसका पेट काफी अन्दर तक जाता है । यदि आप शान्ति से अपने पेट के अन्दर–बाहर होने की क्रिया पर ध्यान दें तो स्वस्थ बच्चे की अपेक्षा आप अपने पेट को बाहर–अन्दर जाते हुए बहुत कम पाएँगे । इस निरीक्षण से आपको समझ जाना चाहिए कि अपूर्ण श्वास क्या है ।
अपूर्ण या अधूरा श्वास लेने से हमारे शरीर एवं मस्तिष्क में पोषण की कमी हो जाती है, जो अनेक बीमारियों का कारण बनता है । चुस्त कपड़े दीर्घ श्वास क्रिया में बाधक होते हैं । चूँकि पूर्ण श्वास लिए बिना दीर्घ श्वास एवं स्वस्थ जीवन प्राप्त नहीं किया जा सकता । अत: आइए सीखें कि पूरा एवं गहरा श्वास कैसे लिया जाता है ?
उदर द्वारा श्वसन की अनुभूति,बैठकर या चित लेटकर एक हाथ को नाभि पर रखकर उदर द्वारा श्वसन की अनुभूति स्वयं करिए । अब दीर्घ पूरक कीजिए, आप देखेंगे कि पूरक के साथ उदर फूल जाता है तथा हाथ ऊपर आता है । जितना उदर प्रदेश फूलेगा, उतना श्वास का प्रवेश फेफड़ों में होगा । दीर्घ रेचक कीजिए, आप देखेंगे कि दीर्घ रेचक के साथ उदर प्रदेश अन्दर की ओर संकुचित हो रहा है । जितना पेट अन्दर जाएगा उतना ही फेफड़ों से अधिकतम मात्रा में वायु का निष्कासन होगा ।
छाती द्वारा श्वसन की अनुभूति,इस विधि का अभ्यास बैठकर या चित लेटकर ही करते हैं । छाती और पसलियों का विस्तार करते हुए पूरक कीजिए । आप अनुभव करेंगे कि इस क्रिया से पसलियाँ ऊपर, बाहर की ओर उठ जाती हैं । अब रेचक कीजिए, आप अनुभव करेंगे कि इस क्रिया से पसलियों में उतार आ सकता है ।
यौगिक श्वसन
फेफड़ों में पूरक द्वारा अधिकतम मात्रा में वायु का प्रवेश करवाना व रेचक द्वारा अधिकतम वायु का निष्कासन ही पूर्ण या यौगिक श्वसन कहलाता है । इस प्रकार की श्वसन क्रिया ही प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपयोगी है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को इसी विधि से श्वास–प्रश्वास की क्रिया करनी चाहिए । पहले उदर, फिर छाती का धीरे–धीरे विस्तार करते हुए जितना सम्भव हो सके फेफड़ों में अधिक–से–अधिक वायु का प्रवेश कीजिए, फिर क्रमश: पहले छाती, फिर उदर को शिथिल करते हुए रेचक कीजिए ताकि फेफड़ों से अधिक–से–अधिक वायु का निष्कासन हो जाए ।
यौगिक श्वसन कब करें : 
यौगिक श्वसन प्रारम्भ में योगासन या प्राणायाम के पहले कुछ मिनट चेतनापूर्वक करें । धीरे–धीरे अभ्यास से स्वाभाविक रूप से पूरे दिन का अभ्यास किया जा सकता है ।
सावधान : उदर से छाती, छाती से उदर तक श्वसनगति सहज हो, झटके से
 नहीं ।
यौगिक श्वसन के लाभ
1– यौगिक श्वसन के अभ्यास से थकान का अनुभव नहीं होगा ।
2– चिन्तन शक्ति का विकास होगा ।
3– चिन्ता, भय, तनाव एवं निराशा का प्रभाव नहीं पड़ेगा ।
4– सर्दी, जुकाम, खाँसी, टी॰बी॰, दमा, प्ल्यूरिसी इत्यादि कष्ट नहीं होंगे ।
5– पाचन प्रणाली एवं निष्कासनतंत्र स्वस्थ होंगे ।
6– जीवन दीर्घ एवं स्वस्थ होगा ।
नाड़ी शोधन प्राणायाम
हमारे देश के प्राचीन ऋषि–मुनियों ने जहाँ मानव–जीवन को उन्नतिशील बनाने हेतु ज्ञान–विज्ञान सम्बन्धी अनेक विधाओं की खोजें की हैं, वहीं जीवनी शक्तिवर्धक अनेक प्रकार के प्राणायामों का अविष्कार भी किया है । यहाँ पर जिस प्राणायाम की चर्चा कर रहे हैं, उसे अनुलोम–विलोम प्राणायाम या सहज प्राणायाम अथवा गहरा श्वास के नाम से पुकारते हैं । इसे स्काई जूस भी कह सकते हैं, क्योंकि इस क्रिया के द्वारा शुद्ध वायु में बैठकर आकाश तत्त्व से प्राण खींचकर शरीर एवं मन को स्वस्थ, सक्रिय एवं शक्तिशाली बनाते हैं । इस प्राणायाम को शास्त्रों में नाड़ी शोधन प्राणायाम कहा जाता है ।
विधि :
दरी या चटाई बिछाकर सिद्धासन, वज्रासन, सुखासन या पद्मासन लगाकर बैठ जाइए । कमर, पीठ तथा गर्दन को सीधा कर लीजिए । कुछ देर आँखें बन्द करके शान्त भाव से बैठे रहिए । दाएँ हाथ के अँगूठे से दाएँ नथुने को बन्द करके बाएँ नथुने से धीरे–धीरे श्वास को अन्दर भरिए (पूरक) ।
पूरा श्वास अन्दर भर जाने पर दाएँ हाथ की अनामिका व मध्यमा उंगली से बाएँ नथुने को दबाकर बंद कर दीजिए और दाएँ नथुने को खोलकर सारा श्वास धीरे–धीरे बाहर निकाल दीजिए (रेचक) । 
पूरा श्वास बाहर निकल जाने पर पुन: दाएँ नथुने से ही श्वास को अन्दर भरिए (पूरक) । 
श्वास अन्दर भर जाने पर पुन: दाएँ हाथ के अँगूठे से दाएँ नथुने को दबाकर बन्द कर लीजिए और पुन: बाएँ नथुने को खोलकर श्वास को धीरे–धीरे बाहर निकाल दें (रेचक) । इस प्रकार गहरे श्वास का यह एक चक्र पूरा हुआ । इसे संक्षेप में निम्न प्रकार से समझें:
1– दाएँ नथुने से पूरक कीजिए 4 गिनती में (श्वास भरें)
2– बाएँ नथुने से रेचक कीजिए 8 गिनती में (श्वास निकालें)
3– बाएँ नथुने से पुन: पूरक कीजिए 4 गिनती में (श्वास भरें)
4– दाएँ नथुने से पुन: रेचक कीजिए 8 गिनती में (श्वास निकालें)
(यह एक चक्र हुआ)
इस प्रकार लगभग दो मिनट से प्रारम्भ करें, फिर धीरे–धीरे पाँच मिनट से दस मिनट तक बढ़ाएँ ।
सावधानियाँ :
श्वास को धीरे–धीरे अन्दर लें और धीरे–धीरे ही बाहर निकालें अर्थात् श्वास लेते और छोड़ते समय अपने कानों को भी श्वास की आवाज सुनाई न पड़े ।
लाभ :
गहरे श्वास के नियमित अभ्यास से नाड़ियाँ शुद्ध एवं लचीली हो जाती हैं, जिससे व्यक्ति स्वस्थ एवं दीर्घायु होता है ।
जिन्हें बार–बार सर्दी, जुकाम–खाँसी हो जाता हो, उन्हें इसके अभ्यास से छुटकारा मिल जाता है ।
जिन्हें गन्ध का अनुभव होना बन्द हो गया है, उन्हें इसके अभ्यास से गन्ध का अनुभव होने लगता है ।
मन को शान्ति मिलती है, सिर–दर्द नहीं होता तथा दिन भर चुस्ती बनी रहती है ।

No comments:

Post a Comment