प्रातः जागरण
अंशू पी.एच.डी. कर रही थी। साथ में आई.ए.एस. की तैयारी कर रही थी। पढ़ाई
में अच्छी थी किन्तु उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता
था। आँखें भी कमजोर हो चुकी
थीं।
अंशू की माँ उसके खान-पान का पूरा
ध्यान रखती थीं।
एक दिन अंशू
की माँ मधु की बचपन की मित्र कल्पना मौसी आईं।
मधु और कल्पना दोनों विद्यालय स्तर से विश्वविद्यालय स्तर तक साथ-साथ पढ़ी थीं। पढ़ाई के समय से दोनों
में गहरी मित्रता थी।
पढ़ाई के बाद दोनों का विवाह हुआ। मधु की ससुराल अहमदाबाद में थी और कल्पना की रायबरेली में। पत्र द्वारा तो दोनों का सम्पर्क होता रहता था किन्तु पिछले पच्चीस वर्षों से उनका
सम्पर्क नहीं हो पाया था।
यूँ तो दोनों का मायका
लखनऊ में था किन्तु मधु अपने
माता-पिता की अकेली सन्तान थी। अतः मधु की शादी के बाद उसके माता-पिता
भी मकान बेच कर अहमदाबाद चले गए थे। इसलिए
कल्पना जब अपने
मायके लखनऊ आती,
तब भी उसकी
मधु से मुलाकात होने का प्रश्न नहीं उठता था।
कल्पना एक प्राकृतिक चिकित्सक थी। एक बार उसे प्राकृतिक चिकित्सा से सम्बन्धित एक गोष्ठी में अहमदाबाद आने का अवसर प्राप्त हुआ। कल्पना ने जब फोन द्वारा मधु को बताया,
तब वह बहुत
खुश हुई। उसने
कल्पना से कहा-
‘कल्पना! गोष्ठी के अलावा भी कुछ दिन मेरे पास अवश्य ठहरना।’
कल्पना ने कहा- ‘मधु! यह भी कोई कहने
की बात है। अब मेरे ऊपर जिम्मेदारी भी कौन सी है। तुम तो जानती हो कि एक ही तो बेटी है। वह भी आई.आई.टी. रुड़की
में हाॅस्टल में रह कर पढ़ रही है। मैं रुकूँगी और खूब बातें करेंगे।
नियत दिन मधु और उसके
पति दोनों ही कल्पना को लेने
के लिए स्टेशन पहुँचे। इतने दिनों
में दोनों के रंग-रूप में भी बहुत परिवर्तन आ चुका था। जब वह मिलीं
तो दोनों के नेत्र खुशी के आँसू
से भर गए।
रास्ते में कल्पना ने कहा-
‘मधु! अभी तो मैं तुम्हारे घर में नहा-धोकर
गोष्ठी में चली जाऊँगी। शाम को वापस आऊँगी। तब खूब बातें होंगी।’
‘ठीक है कल्पना! वर्षों की बातें हैं।’
कल्पना मधु के घर पर नहा-धोकर नाश्ता करके गोष्ठी में जाने लगी। तब मधु के पति ने कहा- ‘चलिए
मैं छोड़ देता
हूँ।’
‘नहीं आप रास्ता बता दीजिए,
मैं चली जाऊँगी। शाम को वापस
भी तो आऊँगी। अन्य लोग तो वहीं पर रुकेंगे किन्तु मैं तो यहीं आऊँगी।’
कल्पना शाम को मधु के घर पर लौटकर
आई। मधु ने कहा- ‘कल्पना तुम कपड़े
बदल लो, फिर खाना लगा दूँ।’
‘मधु! मैं सूर्यास्त के बाद कुछ नहीं खाती
हूँ।’
‘क्यों?’
‘बैठकर बताऊँगी।’
जब कल्पना कपड़े बदल कर आयी तब मेज पर दूध का बड़ा-सा गिलास
रखा था।
मधु ने कहा- ‘कल्पना! खाना नहीं
खाओगी तो दूध तो पी लो। मुझे पता है कि चाय तो तुम पीती नहीं
हो। एक बार तुमने चाय के नुकसान के बारे
में लम्बा-चैड़ा
पत्रलिखा था, तबसे
हम लोगों ने भी चाय पीना
बन्द कर दिया।’
कल्पना खुश होते हुए बोली-
‘यह तो तुमने
बहुत अच्छा काम किया। हाँ! दूध मैं नहीं पिऊँगी क्योंकि दूध भी तो आहार ही है। मैं सूर्यास्त के बाद कुछ भी खाती-पीती
नहीं हूँ। अगर प्यास लगी तो पानी पी लेती
हूँ।’
‘क्यों?’
‘हाँ, बताती
हूँ। जीजा जी और अंशू को भी आ जाने
दो, तब बताऊँगी।’
मधु बोली-
‘अंशू तो घर पर ही है, अपने कमरे में पढ़ रही होगी
और....’
इतने में मधु के पति आ जाते हैं।
कल्पना ने कहा- ‘आइए जीजा जी! आपकी ही चर्चा चल रही थी। आप फ्रेश
हो लीजिए, फिर आपसे भी बहुत
सी बातें करनी
हैं।’
‘ठीक है’ हँसते हुए उन्होंने कहा। थोड़ी
देर बाद वह भी आकर बैठ जाते हैं। मधु अंशू को आवाज
देती है। अंशू
भी आ जाती
है।
कल्पना मौसी
कहती हैं- ‘आओ अंशू मेरे पास बैठो।’
अंशू कल्पना मौसी के पास बैठ जाती है। कल्पना मौसी कहती
हैं- ‘अभी तुम लोगों के आने के पहले मधु ने मुझसे खाने
के लिए कहा।
मैंने कहा कि मैं सूर्यास्त के बाद कुछ नहीं
खाती हूँ तब वह दूध ले आयी। मैंने कहा,
दूध भी तो आहार ही है। इसलिए मैं दूध भी नहीं लूँगी।’
अंशू ने पूछा- ‘मौसी! सूर्यास्त के बाद खाने में क्या बुराई है?’
कल्पना मौसी
बोलीं- ‘अंशू! एक बात बताओ, किसी
भी पशु-पक्षी
को तुमने सूर्यास्त के बाद खाते-पीते देखा है?’
‘हाँ! सामने
वाली आँटी के यहाँ जब सब लोग रात का भोजन करते हैं,
तभी वह अपने
कुत्ते को भी खाना देती हैं।
वह खाता
है।’-अंशू
ने कहा।
कल्पना मौसी
बोलीं- ‘बेटी! जो पाले हुए पशु-पक्षी हैं, उनकी
आदत हम अपने
जैसी डाल देते
हैं। वह हमारे
ही अनुसार चलने
लगते हैं।’
तुम कभी भी देखो, शाम होते ही पक्षी
उड़ कर अपने
बसेरों में चले जाते हैं और सुबह तीन-चार बजे ही उठ कर चहचहाने लगते
हैं। सड़क के कुत्ता-बिल्ली आदि को भी यदि दिन में भरपेट
भोजन मिल जाता
है तब वह रात में नहीं
खाते हैं।’
अंशू बोली-
‘मौसी! आप कह तो सही रही हैं, लेकिन वह तो पशु-पक्षी
हैं। पक्षी रात में भोजन ढूँढने कहाँ जाएँगे? उन्हें तो शाम तक अपने बसेरों में आना ही है। हम तो रात में बना-खा सकते हैं न।’
कल्पना मौसी
ने हँसते हुए कहा- ‘अंशू! बहुत खूब। भगवान ने सूर्यास्त कर दिया
किन्तु हम मानव-निर्मित बिजली जला कर भोजन बनाएँगे व खाएँगे। बेटा!
हम प्रकृति के नियमों का पालन
करें तो सदा स्वस्थ रह सकते
हैं। तुमने अंग्रेजी की वह कहावत
तो पढ़ी ही होगी-
'Early to bed and early to rise, makes a man healthy, wealthy and
wise.
‘हाँ मौसी!
पढ़ी तो है किन्तु अगर रात को जल्दी सो जाएँगे तो पढ़ाई
कब करेंगे?’
‘तुम कितने
बजे सोती हो?’
मधु बोली-
‘इसका बस चले तो रात भर पढ़ती रहे, हम लोग तो दस बजे तक सो जाते हैं। लगभग
एक बजे लघुशंका आदि के लिए उठते हैं, इसके
कमरे की बत्ती
बन्द करते हैं,
तब यह सोती
है।’
कल्पना ने कहा- ‘अंशू! उठती कितने बजे हो?’
‘लगभग आठ बजे।’ अंशू
ने कहा।
‘रात को एक बजे सोयीं
और आठ बजे उठीं। इस प्रकार कुल कितने घंटे
सोयीं?’ कल्पना ने पूछा।
‘सात घंटे।’अंशू बोली।
कल्पना ने कहा- ‘अगर तुम रात को नौ बजे सो जाओ और सुबह चार बजे उठ जाओ।
तब कितने घंटे
होंगे?’
अंशू बोली-
‘सात घंटे होंगे,
मौसी! लेकिन अगर रात को अगर नौ बजे सो जाएँगे, तब पढ़ेंगे कब?’
कल्पना ने हँसते हुए कहा-
‘वही बता रही हूँ। तुम नौ बजे न सो कर रात को एक बजे सोयीं। नौ बजे से रात को एक बजे तक चार घंटे अतिरिक्त पढ़ाई हुई न।’
‘हाँ मौसी!’
‘इसी प्रकार तुम रात को नौ बजे सो गयीं व चार बजे उठीं। तब भी सुबह चार बजे से आठ बजे तक चार घंटे पढ़ाई हुई।
तुम तब भी सात घंटे सो रही थीं, अब भी।’
‘तो, फायदा
क्या हुआ? पढ़ाई
तो उतनी ही हुई न।’ बीच में बात काटते
हुए अंशू ने कहा।
पढ़ाई उतनी
नहीं, अधिक होगी।
तुमने रात को नौ बजे तक बिना थके हुए मस्तिष्क से पढ़ाई
की, फिर सो गईं। सुबह तरोताजा उठीं, और सुबह
भी थकान रहित
मस्तिष्क से पढ़ाई
की। इस प्रकार पढ़ाई अधिक होगी
न।’
‘लेकिन मौसी,
पहली बात तो रात को देर तक जागने की आदत पड़ गई है। कभी-कभी पापा रात को दस बजे ही लाइट बन्द कर देते हैं- ‘कहते
हैं सो जाओ।
तब भी मेरी
नींद सुबह आठ बजे ही खुलती
है।’ अंशू
ने कहा।
‘बेटी! यह तो तुम्हारी आदत पड़ गई है। कुछ दिन रात में जल्दी सोने
का अभ्यास करोगी,
तब धीरे-धीरे
नींद भी सुबह
जल्दी खुलने लगेगी। शरीर को अनुकूल बनने में अधिक
से अधिक आठ दिन का समय लगेगा।’
अंशू ने कल्पना मौसी की बात मानी। वह जल्दी सोने और जल्दी उठने लगी।
कल्पना मौसी तो वापस जा चुकी
थीं, किन्तु अंशू
का स्वास्थ्य भी अब ठीक रहने
लगा था और पढ़ाई भी पहले
से अधिक होने
लगी थी। और एक दिन....अंशू
आई.ए.एस. परीक्षा में चयनित
हो गई।
उसने कल्पना मौसी को फोन किया- ‘मौसी! मैं आई.ए.एस. परीक्षा में चयनित
हो गई।’
कल्पना ने कहा- ‘बेटी! बहुत-बहुत बधाई हो।’
‘मौसी! अब मैं स्वस्थ भी रहती हूँ। यह आपकी शिक्षा का परिणाम है। आपने
रात को जल्दी
सोने और सुबह
उठने के लाभ बताए थे। मैं रात को नौ बजे तक सो जाती हूँ, सुबह
तीन-चार बजे नींद खुल जाती
है। परिणाम सुखद
है, मेरा स्वास्थ्य भी ठीक रहता
है और मन भी। पढ़ाई भी अधिक होती है। आपको यह जानकर
और भी खुशी
होगी कि मेरी
पी.एच.डी. की थीसिस भी जमा हो गई है।’
‘यह तो दोहरी खुशी की बात है।’कल्पना मौसी
ने कहा।
अंशू ने कहा- ‘मौसी! यहाँ कब आएँगी।’
‘बेटी! मैं तो अभी नहीं
आ पाऊँगी। तुम्हारे पास समय हो तो तुम आओ।’
कल्पना बोली-
‘मौसी! ठीक है, अभी तो प्रशिक्षण के लिए बुलाए
जाने में समय लगेगा। माँ-पिता
जी से पूछकर
बताऊँगी।’
‘ठीक है बेटी!’ कल्पना ने कहा।
समय कम था इसलिए अंशू
हवाई-जहाज से लखनऊ आ गई। लखनऊ एयरपोर्ट पर कल्पना और उसके
पति आ गए थे। वह लोग उसे वहाँ से रायबरेली ले गए।
अंशू को बहुत अच्छा लग रहा था। सुबह
उठकर अंशू ने देखा कि मौसी
और मौसा जी दोनों व्यायाम और प्राणायाम कर रहे हैं। अंशू को भी मौसी ने व्यायाम और प्राणायाम सिखाया। नहाने-धोने
के बाद सबने
नाश्ता किया।
कल्पना ने कहा- ‘बेटी! दो बातें तुमको और बताना चाहती हूँ।
एक तो यह कि प्राणायाम सदा शुद्ध वायु में प्रातःकाल करो। दूसरा
नहाने के बाद ही कुछ खाओ।
इससे जठराग्नि प्रज्ज्वलित हो जाती है, तब भोजन का पाचन
अच्छी तरह होता
है। खाने के बाद नहाने से शरीर में गया हुआ भोजन ठीक से पच नहीं
पाता है।’
कल्पना के पति बोले- ‘बेटी!
तुम्हारे पास कितने
दिन का समय है? घूमने का कार्यक्रम बना लें।’
‘मौसा जी! तीन-चार दिन तो रुक ही सकती हूँ।’
‘तब रायबरेली, इलाहाबाद, बनारस व लखनऊ का कार्यक्रम ठीक रहेगा। आखिरी
में लखनऊ जाएँगे। वहीं पर हवाई-जहाज पर बैठा
देंगे।
‘ठीक है मौसा
जी! सुबह तो मैं उठने ही लगी हूँ। अब रोज सुबह ताजी
हवा में व्यायाम और प्राणायाम करूँगी और नहाने के बाद ही कुछ खाऊँगी। माँ-पिताजी व अन्य लोगों
को भी बताऊँगी।
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