प्रकृति का स्वागत
राजू कक्षा दस में पढ़ता है। वह रात को बारह बजे तक पढ़ता है। सुबह
सात बजे अलसाया सा उठता है। जल्दी-जल्दी तैयार
होकर आठ बजे विद्यालय भागता है, ठीक से नाश्ता भी नहीं कर पाता है। कभी शौच होता है, कभी नहीं, स्वास्थ्य खराब रहता है। एक दिन उसके
मामाजी बाराबंकी से उसके घर आए, रात को रुके।
राजू की माँ ने उन्हें बताया
कि राजू का स्वास्थ्य खराब रहता
है।
मामाजी रात को नौ बजे सो गए और सुबह तीन बजे उनकी नींद खुल गई। वह उठकर
दैनिक कार्यों व व्यायाम आदि से निवृत्त हो गए। उन्होंने राजू को जगाया और कहा-
‘‘सैर करने चलोगे?’’
राजू खुशी-खुशी तैयार हो गया, उस समय सुबह के पाँच
बजे थे। प्रातःकाल ठण्डी-ठण्डी हवा चल रही थी। पक्षियों की चहचहाट सुनाई पड़ रही थी। राजू बहुत
खुश हुआ, उसने
कहा- ‘मामाजी! कितना सुहावना मौसम है।’
मामाजी ने उसे समझाया- ‘बेटा!
प्रकृति की ओर लौटो, पक्षियों से सीखो। शाम को झुंड के झुंड
पक्षी अपने बसेरों में लौटते हुए दिखाई पड़ जाएँगे। सूर्यास्त के बाद पक्षियों की आवाजें सुनाई नहीं पड़ती
हैं। प्रातःकाल चार बजे उठो तब पक्षी चहचहाते हुए सुनाई पड़ जाएँगे।’
‘प्रातःकाल चार बजे उठना तो बहुत मुश्किल है।’ राजू बोला।
‘बेटा! तुम रात को बारह
बजे से सुबह
सात बजे तक कुल सात घंटा
सोए, फिर अलसाए
हुए से उठे।
इससे अच्छा तो यह है कि रात में आठ बजे सो जाओ,
तब सुबह चार बजे अपने आप नींद खुल जाएगी। सुबह थकान रहित
मस्तिष्क से पढ़ाई
होगी, स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। रात को बल्ब की रोशनी में पढ़ना
पड़ता है। सुबह
पढ़ना आँखों के लिए भी लाभदायक है। ताजी हवा मिलेगी। प्रकृति का स्वागत करो। सूर्योदय गति का सूचक
है, सूर्यास्त विश्राम का।’
‘ठीक है मामाजी! आपकी बात समझ में आ गई। अब मैं भी रात को जल्दी
सोऊँगा और सुबह
चार बजे उठने
का प्रयास करूँगा।
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