सारे घर के कपड़े मैं धोती
हूँ
सुपर्णा की मौसी जी आई थीं, वह उसी शहर में रहती
थीं। इसलिए सुबह
आतीं व शाम को वापस चली जाती थीं, रुकती
नहीं थीं।
रविवार का दिन था। सुपर्णा भी घर पर ही थी। सुपर्णा की माँ व मौसी दोनों बहनें
बैठी हुई बातें
कर रही थीं।
सुपर्णा व उसका
छोटा भाई भी पास में बैठे
थे।
माँ ने मौसी से कहा-
‘दीदी! सुपर्णा को समझाइए। अठारह वर्ष
की हो गई है। कुछ घर का काम-काज भी सीखे। मैं मानती हूँ कि पढ़ाई में अच्छी
है, लेकिन घर का काम भी तो थोड़ा-बहुत
आना चाहिए।’
मौसी बोलीं-
‘तुम ठीक कहती
हो, लेकिन आजकल
बच्चों को पढ़ाई
से समय तो मिलता नहीं है।’
माँ बोलीं-‘दीदी!
आपकी बात सही है लेकिन कोई चैबीसों घंटे पढ़ता
तो रहता नहीं
है। कभी जब पढ़ाई से मन ऊबे, तब दस-पन्द्रह मिनट कोई काम कर ले। इस तरह धीरे-धीरे घर का काम आ जाएगा।’
मौसी ने कहा- ‘सुपर्णा! माँ ठीक कहती हैं, जब मन हो थोड़ा-थोड़ा घर का काम सीख लो।’
माँ ने कहा- ‘दीदी! मैं अभी आती हूँ।’ माँ मौसी
के लिए नाश्ता लेने चली गईं।
माँ के जाने के बाद सुपर्णा ने मौसी
से कहा- ‘मौसी!
सारे घर के कपड़े तो मैं ही धोती हूँ।’
मौसी बोलीं- ‘सबके
कपड़े तुम धोती
हो?’
‘हाँ मौसी!
माँ बाथरूम में कपड़े डाल देती
हैं व सुखा
देती हैं। मैं धो देती हूँ।
सबके कपड़ों के साथ ही घर की चादरें व पर्दे आदि भी मैं ही धोती
हूँ।’
‘अरे ऐसा तो नीलम को नहीं करना चाहिए। देखो अभी समझाऊँगी उसे।’ मौसी
दुःख के साथ बोलीं।
जब माँ नाश्ता लेकर आईं,
तब मौसी ने गुस्से के साथ कहा- ‘नीलम! तुम इतनी छोटी-सी लड़की से सारे
घर के कपड़े
धुलवाती हो, चादरें व पर्दे तक धुलवाती हो।’
माँ हँसने
लगीं।
अब मौसी
को गुस्सा आ गया। वह बोलीं-
‘नहीं करना है मुझे नाश्ता-वाश्ता। एक तरफ कहती
हो कि सुपर्णा कुछ काम नहीं
करती। दूसरी तरफ सारे घर के कपड़े धुलवाती हो। तुम्हें शर्म नहीं
आती है।’
माँ ने मौसी के कन्धे
पर हाथ रख कर कहा- ‘दीदी!
हमने फुली-आटोमेटिक वाशिंग मशीन खरीद
ली है। मैं उसमें कपड़े डाल देती हूँ। सुपर्णा डिटर्जेंट डाल कर स्विच-आॅन कर देती है। जब कपड़े धुल जाते
हैं, तब मशीन
आवाज दे देती
है। मैं कपड़े
सुखा देती हूँ।’
‘अच्छा तो ये बात है।’ कहते
हुए मौसी भी हँस पड़ीं। बोलीं-‘सुपर्णा!....’ लेकिन सुपर्णा तब तक कमरे से बाहर चली गई थी।
No comments:
Post a Comment