प्रात: जागरण
पात्र–परिचय
अंशू : लगभग चैबीस–पच्चीस वर्षीया
युवती
मधु : अंशू की माँ
कल्पना : मधु की सहेली व अंशू की मौसी
विक्रान्त : अंशू के पिता व मधु के पति
(पर्दा खुलता
है ।)
(स्टेज पर
घर का दृश्य है । एक दुबली–पतली लड़की कुर्सी पर बैठी पढ़ाई कर
रही है । उसकी आँखों में चश्मा लगा है । मेज पर टेबल–लैम्प जल रहा है । बगल में उसकी माँ खड़ी हैं ।)
मधु : (प्यार
से सिर पर हाथ फेरते हुए) अब सो जा बेटी! रात के बारह बज रहे हैं, सुबह उठकर पढ़ना
।
अंशू : माँ! तुम
समझती नहीं हो । सुबह मैं जल्दी उठ नहीं
सकती । इस समय शान्ति से पढ़ाई हो जाती है ।
मधु : बेटी!––––
अंशू : ऊँ हूँ–––माँ! तुम जाओ, मुझे पढ़ने दो ।
(मधु का अन्दर
की ओर प्रस्थान)
पट–परिवर्तन
(दूसरा दृश्य)
(सुबह का
समय है । मधु और उसके पति बैठे हुए बातें कर रहे हैं ।)
विक्रान्त : क्या किया जाए मधु! सुबह के आठ बज रहे हैं,
अंशू सो रही है ।
मधु : अभी से
उसकी आँखों पर इतना मोटा चश्मा लग गया है । सेहत भी ठीक नहीं रहती है । पर रात को दो–दो बजे तक पढ़ती है ।
(तभी फोन
की घंटी बजती है ।)
मधु : हैलो!
कल्पना! कैसी हो ?
(उधर की आवाज
सुनने का अभिनय)
(खुशी से)
मधु : अच्छा
तो तुम आ रही हो, बहुत अच्छा, कब और किस गाड़ी से । मैं तुम्हें लेने स्टेशन पर आ
जाऊँगी ।
(बात सुनने
का अभिनय)
मधु : यह भी
ठीक है, गाड़ी का नाम, नम्बर आदि मैसेज कर रही हो । (फोन रखते हुए विक्रान्त से)–विक्रान्त! कल्पना 25 तारीख को आ रही है ।
विक्रान्त : वही कल्पना न, जो तुम्हारी बचपन की सहेली है
।
मधु : हाँ विक्रान्त!
(अंशू का
आँखें मलते हुए प्रवेश)
विक्रान्त : आओ बेटी, आओ!
(अंशू आ कर
बैठ जाती है ।)
अंशू : माँ! कौन
आने वाला है ?
मधु : कल्पना
मौसी 25 तारीख को आ रही हैं ।
अंशू : वही कल्पना
मौसी, जिनकी तुम अक्सर बातें करती रहती हो, जो तुम्हारी बचपन की सहेली
हैं।
मधु : हाँ अंशू!
तुमने तो उन्हें अभी तक देखा भी नहीं है । पहली कक्षा से ही विश्वविद्यालय तक की पढ़ाई हमने साथ–साथ की। पड़ोस में ही घर भी
था । इसलिए और गहरी दोस्ती थी । अब तो
पच्चीस वर्षों बाद मिलेंगे ।
अंशू :चलो माँ!
इसी खुशी में आज फ्रिज में आइसक्रीम जमाओ ।
मधु : जरूर––––जरूर बेटी! अच्छा अब फ्रेश हो लो मैं नाश्ता तैयार कर देती हूँ ।
(अंशू का
प्रस्थान)
पट–परिवर्तन
(सुबह का
समय है । विक्रान्त और मधु तैयार खड़े हैं । अंशू पलंग पर सो रही है । मधु और विक्रान्त
उसे जगा रहे हैं ।)
मधु : (पलंग
पर बैठते हुए) अंशू! उठो बेटी, उठो । सवेरा हो गया ।
अंशू : माँ! सोने
भी दो न । (मुँह ढकने लगती है ।)
मधु : (मुँह
खोलते हुए) उठ कर दरवाजा बन्द कर लो, हम लोग जा रहे हैं ।
अंशू : (लेटे
हुए ही) कहाँ जा रही हो ?
मधु : बताया
था न कि आज कल्पना मौसी आएँगी । उन्हें लेने स्टेशन जा रहे हैं ।
(अंशू उठ
कर बैठ जाती है ।)
मधु : उठकर दरवाजा
बन्द कर लो ।
(अंशू ,मधु
और विक्रान्त बाहर की ओर जाते हैं ।)
पट–परिवर्तन
(अंशू उकडू़ँ
बैठ कर अखबार पढ़ रही है तभी दरवाजे की घंटी बजती है ।)
अंशू : (उठते
हुए) लगता है कल्पना मौसी आ गईं । (बाहर जाती
है ।)
(अंशू के
साथ मधु, विक्रान्त तथा कल्पना मौसी का प्रवेश)
अंशू : (सोफे
की ओर इशारा करते हुए) आइए मौसी! बैठिए ।
(सब लोग सोफे
पर बैठ जाते हैं ।)
कल्पना : अंशू! आओ मेरे पास बैठो । (अंशू कल्पना के पास
बैठ जाती है ।) तुम्हारे बारे में पत्र से व फोन
पर तो बात होती रहती थी किन्तु तुम्हें प्रत्यक्ष
देखने का अवसर पहली बार मिला है । क्या
कर रही हो ?
अंशू : मौसी!
इतिहास में पी.एच.डी. कर रही हूँ । साथ में आई.ए.एस.
की तैयारी भी चल रही है ।
मधु : कल्पना!
तुम्हें गोष्ठी में भी जाना है । इसलिए पहले तैयार हो जाओ, नाश्ता कर लो, फिर बातें करना
।
अंशू : किस गोष्ठी
में जाना है मौसी ?
कल्पना : तुम जानती हो न कि मैं एक प्राकृतिक चिकित्सक
हूँ । यहीं अहमदाबाद में प्राकृतिक चिकित्सा पर एक गोष्ठी है । इसीलिए आई हूँ । (कहते
हुए वह उठती हैं, अन्दर की ओर प्रस्थान)
अंशू : माँ! कल्पना
मौसी प्राकृतिक चिकित्सक हैं । इन्हीं ने चाय पीने की हानियों के बारे में एक लम्बा सा पत्र लिखा था न ।
मधु : हाँ अंशू!
उस पत्र के शब्द अभी तक याद हैं । ‘गाँधी
जी ने लिखा है सामान्यत: जो चाय पी जाती
है, उसमें टेनीन होती है । टेनीन चमड़ा पकाने
के काम आता है । यही काम चाय पीने से
हमारी आँतें कड़ी हो जाती हैं । इसके कारण
कब्ज रहने लगता है और कब्ज सब रोगों का कारण
है ।’
अंशू : माँ! इसीलिए
कल्पना मौसी का पत्र आने के बाद हमारे घर में चाय बननी बन्द हो गई ।
मधु : हाँ बेटा!
(कहकर मधु का अन्दर की ओर प्रस्थान)
विक्रान्त : जबसे मैंने चाय पीना बन्द किया है, मेरे कब्ज की शिकायत नहीं रहती है । पहले मेरे कब्ज रहता था ।
(कल्पना का
प्रवेश)
(मधु का भी
दोनों हाथों में नाश्ता लिए हुए प्रवेश)
मधु : चलो सब
लोग नाश्ता कर लो ।
(सब नाश्ता
करने लगते हैं ।)
कल्पना : अंशू अभी तो मुझे जाना है । शाम को तुमसे ढेर
सारी बातें करेंगे ।
विक्रान्त
: मैं आपको आपके गन्तव्य–स्थल तक छोड़ दूँगा । आपके
लिए नया शहर है ।
कल्पना : नहीं मैं चली जाऊँगी । उन्होंने रोड–मैप बना कर भेजा है । (कहते हुए पर्स से कागज निकाल कर विक्रान्त को दिखाती है ।)
(नाश्ता करने
के बाद कल्पना का प्रस्थान । मधु व अंशू उनके साथ बाहर तक जाती हैं । थोड़ी देर में
मधु व अंशू का प्रवेश)
पट–परिवर्तन
(पाँचवाँ
दृश्य)
(शाम को लगभग
सात बजे का समय है । मधु बैठी हुई सब्जी काट रही है । दरवाजे की घंटी बजती है ।)
मधु : आती हूँ
। (कहते हुए बाहर की ओर प्रस्थान)
(मधु के साथ
कल्पना व विक्रान्त का प्रवेश)
मधु : (आते हुए)
आप दोनों साथ–साथ आ गए ।
विक्रान्त : (हँसते हुए) अब यह तुम्हारी नहीं मेरी बहन बन
गई है ।
कल्पना : मैं जैसे ही ऑटो से उतरी, जीजा जी भी तभी आ गए
।
(सब सोफे
पर बैठ जाते हैं ।)
कल्पना : अंशू कहाँ
है ।
मधु : अंशू अपने
कमरे में पढ़ रही है । हाँ कल्पना! इस समय तुम क्या खाओगी ?
कल्पना : मधु! मैं सूर्यास्त के बाद कुछ नहीं खाती हूँ ।
मधु : क्यों ?
कल्पना : (उठते हुए) जरा कपड़े बदल आऊँ, फिर आराम से बैठकर
सब बताती हूँ ।
(कल्पना का
अन्दर प्रस्थान)
विक्रान्त : मधु! कल्पना जी कुछ खाएँगी नहीं तो उन्हें दूध
ही दे दो ।
मधु : ठीक कहते
हो ।
(मधु का भी
अन्दर की ओर प्रस्थान)
(मधु का दूध
का बड़ा सा गिलास लिए हुए प्रवेश । उसके पीछे कल्पना का भी गाउन पहने हुए प्रवेश)
(मधु दूध
का गिलास मेज पर रख देती है ।)
मधु : (कल्पना
से) आओ कल्पना आओ! तुम कुछ खाओगी नहीं तो दूध ही पी लो ।
कल्पना : मैं दूध नहीं पिऊँगी क्योंकि दूध भी तो आहार ही
है । मैं सूर्यास्त के बाद कुछ भी खाती पीती नहीं हूँ ।
विक्रान्त : क्यों?
कल्पना : अंशू को भी बुला लो, तब बताऊँगी ।
कल्पना : (आवाज देते हुए) अंशू आओ, तुम्हें मौसी बुला रही है
।
(अंशू का
प्रवेश । अंशू आ कर बैठ जाती है ।)
कल्पना : अंशू! अभी तुम्हारे आने के पहले मधु ने मुझसे खाने
के लिए कहा । मैंने कहा कि मैं सूर्यास्त के
बाद कुछ नहीं खाती हूँ तब वह दूध ले आईं । मैंने
कहा– दूध भी तो आहार ही है । इसलिए मैं दूध भी नहीं पिऊँगी ।
अंशू : मौसी!
सूर्यास्त के बाद खाने में क्या बुराई है ?
कल्पना : अंशू! एक बात बताओ । किसी भी पशु–पक्षी को तुमने सूर्यास्त
के बाद खाते–पीते देखा है ?
अंशू : हाँ! सामने
वाली आँटी के यहाँ जब सब लोग रात को भोजन करते हैं, तभी वह अपने कुत्ते को
भी खाना देती हैं । वह खाता है ।
कल्पना : वह उनका पाला हुआ कुत्ता है ?
अंशू : हाँ मौसी!
कल्पना : जो पाले हुए पशु–पक्षी हैं
हम उनकी आदतें अपने जैसी डाल देते हैं । वह हमारे ही अनुसार चलने
लगते हैं ।
तुम कभी भी देखो, शाम होते ही पक्षी उड़कर
अपने बसेरों में चले जाते हैं और सुबह तीन–चार बजे ही उठ कर चहचहाने लगते हैं । सड़क के कुत्ता–बिल्ली आदि
को भी यदि दिन में भरपेट भोजन मिल जाता
है, तब वह रात में नहीं खाते हैं ।
अंशू : मौसी!
आप कह तो सही रही हैं, लेकिन वह तो पशु–पक्षी हैं
। पक्षी रात में भोजन ढूँढ़ने कहाँ जाएँगे? उन्हें तो शाम तक अपने बसेरों में आना ही है । हम तो रात में खाना बनाकर खा सकते हैं
न ।
कल्पना : (हँसते हुए) बहुत खूब अंशू! भगवान ने सूर्यास्त
कर
दिया किन्तु हम मानव–निर्मित
बिजली जला
कर भोजन बनाएँगे व खाएँगे । बेटा! हम प्रकृति
के नियमों का पालन करें तो सदा स्वस्थ रह सकते हैं । तुमने अंग्रेजी की वह कहावत तो सुनी ही होगी &'Early to bed
and early to rise, makes a man healthy, wealthy and wise.'
अंशू : ‘हाँ मौसी!
पढ़ी तो है किन्तु अगर रात को जल्दी सो जाएँगे तो पढ़ाई कब करेंगे ?’ पशु– पक्षियों को पढ़ना तो होता नहीं है । इसलिए वह तो जल्दी
सो सकते हैं ।
(सब लोग हँसने
लगे)
कल्पना : तुम कितने बजे सोती हो ?
मधु : इसका बस
चले तो रात भर पढ़ती रहे, हम लोग तो दस बजे तक सो जाते हैं । लगभग एक बजे लघुशंका आदि के लिए उठते हैं, इसके कमरे की बत्ती
बन्द करते हैं, तब यह सोती है ।’
कल्पना : ‘अशू! तुम उठती कितने बजे हो ?’
अंशू : लगभग आठ
बजे ।
कल्पना : रात को एक बजे सोयीं और आठ बजे उठीं । इस
प्रकार कुल कितने घंटे सोयी ?
अंशू : सात घंटे
।
कल्पना : अगर तुम रात को नौ बजे सो जाओ और सुबह
चार बजे उठ जाओ । तब कितने घंटे होंगे?’
अंशू : सात घंटे होंगे, मौसी! लेकिन अगर रात को अगर
नौ बजे सो जाएँगे, तब पढ़ेंगे कब?
कल्पना : (हँसते हुए) वही बता रही हूँ । तुम नौ बजे न सो
कर रात को एक बजे सोयीं । नौ बजे से रात को
एक बजे तक चार घंटे अतिरिक्त पढ़ाई हुई न
।
अंशू : हाँ मौसी!
कल्पना : इसी पकार तुम रात को नौ बजे सो गयीं व चार बजे
उठीं । तब भी सुबह चार बजे से आठ बजे तक चार घंटे पढ़ाई हुई । तुम दोनों ही दशाओं
में सात घंटे सोओगी । तुम तब भी सात घंटे
सो रही थीं, अब भी ।
अंशू : (बात काटते
हुए) फायदा क्या हुआ? पढ़ाई तो उतनी ही हुई न ।
कल्पना : पहले पूरी बात सुनो । पढ़ाई उतनी नहीं,अधिक होगी । तुमने रात को नौ बजे तक बिना थके हुए मस्तिष्क से पढ़ाई की, फिर सो गईं । सुबह
तरोताजा उठीं, और सुबह भी थकान रहित
मस्तिष्क से पढ़ाई की । इस प्रकार
पढ़ाई अधिक होगी न ।’
अंशू : ‘लेकिन
मौसी, पहली बात तो रात को देर तक जागने की आदत पड़ गई है । कभी–कभी पापा रात को दस बजे ही लाइट बन्द कर देते हैं–कहते हैं सो जाओ । तब
भी मेरी नींद सुबह आठ बजे ही खुलती है ।
कल्पना : ‘बेटी! यह तो तुम्हारी आदत पड़ गई है । कुछ दिन रात
में जल्दी सोने का अभ्यास करोगी, तब धीरे–धीरे नींद
भी सुबह जल्दी खुलने लगेगी । शरीर
को अनुकूल बनने में अधिक से अधिक आठ दिन
का समय लगेगा ।
अंशू : ठीक है मौसी!
विक्रान्त : मौसी की बात मानो तो तुम्हारा स्वास्थ्य भी ठीक
हो जाए । कल्पना जी! देख नहीं रही हैं, इसकी आँखों के नचे गड्ढे पड़ गए हैं ।
कल्पना : जीजा जी! अभी उसको एक–एक बात समझने दीजिए ।
बहुत सारी बातें एक साथ बता दी जाएँगी, तो गड़बड़ हो जाएगा ।
मधु : ठीक कह
रही हो कल्पना!
पट–परिवर्तन
(नेपथ्य से
आवाज आती है ।)
(अंशू ने
कल्पना मौसी की बात मानी । वह जल्दी सोने और जल्दी उठने लगी । कल्पना मौसी तो वापस
जा चुकी थीं, किन्तु अंशू का स्वास्थ्य भी अब ठीक रहने लगा था और पढ़ाई भी पहले से अधिक होने लगी थी । और एक दिन––––अंशू आई.ए.एस. परीक्षा में चयनित हो गई ।)
(छठा दृश्य)
अंशू : (मोबाइल
पर बात करते हुए) मौसी नमस्ते!
(दूसरी तरफ
की बात सुनने का अभिनय)
अंशू : मौसी!
मेरा चयन आई.ए.एस. में हो गया ।
(दूसरी तरफ
की बात सुनने का अभिनय)
अंशू : मौसी!
पिछली बार जब मैंने आपको फोन किया था तब बताया था न कि मेरी पी.एच.डी. की थीसिस जमा हो गई है ।
यह सब आपकी वजह से हुआ है ।
(दूसरी तरफ
की बात सुनने का अभिनय)
अंशू : मौसी!
मैंने आपके जाने के कुछ दिन बाद ही फोन पर बताया था न कि मैं रात को नौ बजे सोती
हूँ और सुबह चार बजे अपने आप नींद खुल जाती है ।
अब मेरा स्वास्थ्य भी ठीक रहता है और मन भी
। परीक्षा का परिणाम तो आप देख ही रही
हैं । हाँ मौसी! अहमदाबाद कब आ रही हैं?
(दूसरी तरफ
की बात सुनने का अभिनय)
अंशू : (फोन रखते
हुए खुशी से चिल्लाते हुए) माँ! कल्पना मौसी आने वाली है । कह रही हैं यदि कल
की फ्लाइट का टिकट मिल गया तो वह और मौसा जी दोनों लोग आएँगे ।
(पटाक्षेप)
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