Thursday, August 16, 2018

प्रात: जागरण


प्रात: जागरण

पात्रपरिचय
अंशू : लगभग चैबीसपच्चीस वर्षीया युवती
मधु : अंशू की माँ
कल्पना : मधु की सहेली व अंशू की मौसी
विक्रान्त : अंशू के पिता व मधु के पति






(पर्दा खुलता है ।)
(स्टेज पर घर का दृश्य है । एक दुबलीपतली लड़की कुर्सी पर बैठी पढ़ाई कर रही है । उसकी आँखों में चश्मा लगा है । मेज पर टेबललैम्प जल रहा है । बगल में उसकी माँ खड़ी हैं ।)
मधु    : (प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए) अब सो जा          बेटी! रात के बारह बज रहे हैं, सुबह उठकर              पढ़ना ।
अंशू    : माँ! तुम समझती नहीं हो । सुबह मैं जल्दी         उठ     नहीं सकती । इस समय शान्ति से पढ़ाई हो      जाती है ।
मधु    : बेटी!––––
अंशू    : ऊँ हूँ–––माँ! तुम जाओ, मुझे पढ़ने दो ।
(मधु का अन्दर की ओर प्रस्थान)
पटपरिवर्तन
(दूसरा दृश्य)
(सुबह का समय है । मधु और उसके पति बैठे हुए बातें कर रहे हैं ।)
विक्रान्त : क्या किया जाए मधु! सुबह के आठ बज रहे           हैं, अंशू सो रही है ।
मधु    : अभी से उसकी आँखों पर इतना मोटा चश्मा        लग गया है । सेहत भी ठीक नहीं रहती है । पर      रात को दोदो बजे तक पढ़ती है ।
(तभी फोन की घंटी बजती है ।)
मधु    : हैलो! कल्पना! कैसी हो ?
(उधर की आवाज सुनने का अभिनय)
(खुशी से)
मधु    : अच्छा तो तुम आ रही हो, बहुत अच्छा, कब         और किस गाड़ी से । मैं तुम्हें लेने स्टेशन पर          आ जाऊँगी ।
(बात सुनने का अभिनय)
मधु    : यह भी ठीक है, गाड़ी का नाम, नम्बर आदि        मैसेज कर रही हो । (फोन रखते हुए विक्रान्त         से)–विक्रान्त!    कल्पना 25 तारीख को आ रही है ।
विक्रान्त : वही कल्पना न, जो तुम्हारी बचपन की सहेली          है ।
मधु    : हाँ विक्रान्त!
(अंशू का आँखें मलते हुए प्रवेश)
विक्रान्त : आओ बेटी, आओ!
(अंशू आ कर बैठ जाती है ।)
अंशू    : माँ! कौन आने वाला है ?
मधु    : कल्पना मौसी 25 तारीख को आ रही हैं ।
अंशू    : वही कल्पना मौसी, जिनकी तुम अक्सर बातें        करती रहती हो, जो तुम्हारी बचपन की सहेली
        हैं।
मधु    : हाँ अंशू! तुमने तो उन्हें अभी तक देखा भी         नहीं है । पहली कक्षा से ही विश्वविद्यालय तक           की पढ़ाई हमने साथसाथ की। पड़ोस में ही घर          भी था । इसलिए और गहरी दोस्ती थी । अब         तो पच्चीस वर्षों    बाद मिलेंगे ।
अंशू    :चलो माँ! इसी खुशी में आज फ्रिज में                  आइसक्रीम जमाओ ।
मधु    : जरूर––––जरूर बेटी! अच्छा अब फ्रेश हो लो मैं      नाश्ता तैयार कर देती हूँ ।
(अंशू का प्रस्थान)
पटपरिवर्तन
(सुबह का समय है । विक्रान्त और मधु तैयार खड़े हैं । अंशू पलंग पर सो रही है । मधु और विक्रान्त उसे जगा रहे हैं ।)
मधु    : (पलंग पर बैठते हुए) अंशू! उठो बेटी, उठो ।        सवेरा हो गया ।
अंशू    : माँ! सोने भी दो न । (मुँह ढकने लगती है ।)
मधु    : (मुँह खोलते हुए) उठ कर दरवाजा बन्द कर          लो, हम लोग जा रहे हैं ।
अंशू    : (लेटे हुए ही) कहाँ जा रही हो ?
मधु    : बताया था न कि आज कल्पना मौसी आएँगी ।      उन्हें लेने स्टेशन जा रहे हैं ।
(अंशू उठ कर बैठ जाती है ।)
मधु    : उठकर दरवाजा बन्द कर लो ।
(अंशू ,मधु और विक्रान्त बाहर की ओर जाते हैं ।)
पटपरिवर्तन
(अंशू उकडू़ँ बैठ कर अखबार पढ़ रही है तभी दरवाजे की घंटी बजती है ।)
अंशू    : (उठते हुए) लगता है कल्पना मौसी आ गईं ।    (बाहर जाती है ।)
(अंशू के साथ मधु, विक्रान्त तथा कल्पना मौसी का प्रवेश)
अंशू    : (सोफे की ओर इशारा करते हुए) आइए मौसी!    बैठिए ।
(सब लोग सोफे पर बैठ जाते हैं ।)
कल्पना : अंशू! आओ मेरे पास बैठो । (अंशू कल्पना के           पास बैठ जाती है ।) तुम्हारे बारे में पत्र से व         फोन पर तो बात होती रहती थी किन्तु तुम्हें           प्रत्यक्ष देखने का अवसर पहली बार मिला है ।         क्या कर रही हो ?
अंशू    : मौसी! इतिहास में पी.एच.डी. कर रही हूँ ।          साथ में आई.ए.एस. की तैयारी भी चल रही है ।
मधु    : कल्पना! तुम्हें गोष्ठी में भी जाना है । इसलिए      पहले तैयार हो जाओ, नाश्ता कर लो, फिर बातें          करना ।
अंशू    : किस गोष्ठी में जाना है मौसी ?
कल्पना : तुम जानती हो न कि मैं एक प्राकृतिक            चिकित्सक हूँ । यहीं अहमदाबाद में प्राकृतिक         चिकित्सा पर एक गोष्ठी है । इसीलिए आई हूँ । (कहते हुए वह उठती हैं, अन्दर की ओर प्रस्थान)
अंशू    : माँ! कल्पना मौसी प्राकृतिक चिकित्सक हैं ।         इन्हीं ने चाय पीने की हानियों के बारे में एक         लम्बा सा पत्र लिखा था न ।
मधु    : हाँ अंशू! उस पत्र के शब्द अभी तक याद हैं ।           ‘गाँधी जी ने लिखा है सामान्यत: जो चाय पी        जाती है, उसमें टेनीन होती है । टेनीन चमड़ा           पकाने के काम आता है । यही काम चाय पीने          से हमारी आँतें कड़ी हो जाती हैं । इसके               कारण कब्ज रहने लगता है और कब्ज सब रोगों     का कारण है ।
अंशू    : माँ! इसीलिए कल्पना मौसी का पत्र आने के        बाद हमारे घर में चाय बननी बन्द हो गई ।
मधु    : हाँ बेटा! (कहकर मधु का अन्दर की ओर              प्रस्थान)
विक्रान्त : जबसे मैंने चाय पीना बन्द किया है, मेरे कब्ज       की शिकायत नहीं रहती है । पहले मेरे कब्ज         रहता था ।
(कल्पना का प्रवेश)
(मधु का भी दोनों हाथों में नाश्ता लिए हुए प्रवेश)
मधु    : चलो सब लोग नाश्ता कर लो ।
(सब नाश्ता करने लगते हैं ।)
कल्पना : अंशू अभी तो मुझे जाना है । शाम को तुमसे           ढेर सारी बातें करेंगे ।
विक्रान्त : मैं आपको आपके गन्तव्यस्थल तक                 छोड़ दूँगा । आपके लिए नया शहर है ।
कल्पना : नहीं मैं चली जाऊँगी । उन्होंने रोडमैप बना        कर भेजा है । (कहते हुए पर्स से कागज निकाल       कर विक्रान्त को दिखाती है ।)
(नाश्ता करने के बाद कल्पना का प्रस्थान । मधु व अंशू उनके साथ बाहर तक जाती हैं । थोड़ी देर में मधु व अंशू का प्रवेश)
पटपरिवर्तन
(पाँचवाँ दृश्य)
(शाम को लगभग सात बजे का समय है । मधु बैठी हुई सब्जी काट रही है । दरवाजे की घंटी बजती है ।)
मधु    : आती हूँ । (कहते हुए बाहर की ओर प्रस्थान)
(मधु के साथ कल्पना व विक्रान्त का प्रवेश)
मधु    : (आते हुए) आप दोनों साथसाथ आ गए ।
विक्रान्त : (हँसते हुए) अब यह तुम्हारी नहीं मेरी बहन          बन गई है ।
कल्पना : मैं जैसे ही ऑटो से उतरी, जीजा जी भी तभी          आ गए ।
(सब सोफे पर बैठ जाते हैं ।)
कल्पना :   अंशू कहाँ है ।
मधु    : अंशू अपने कमरे में पढ़ रही है । हाँ कल्पना!           इस समय तुम क्या खाओगी ?
कल्पना : मधु! मैं सूर्यास्त के बाद कुछ नहीं खाती हूँ ।
मधु : क्यों ?
कल्पना : (उठते हुए) जरा कपड़े बदल आऊँ, फिर आराम        से बैठकर सब बताती हूँ ।
(कल्पना का अन्दर प्रस्थान)
विक्रान्त : मधु! कल्पना जी कुछ खाएँगी नहीं तो उन्हें          दूध ही दे दो ।
मधु    : ठीक कहते हो ।
(मधु का भी अन्दर की ओर प्रस्थान)
(मधु का दूध का बड़ा सा गिलास लिए हुए प्रवेश । उसके पीछे कल्पना का भी गाउन पहने हुए प्रवेश)
(मधु दूध का गिलास मेज पर रख देती है ।)
मधु    : (कल्पना से) आओ कल्पना आओ! तुम कुछ           खाओगी नहीं तो दूध ही पी लो ।
कल्पना : मैं दूध नहीं पिऊँगी क्योंकि दूध भी तो आहार          ही है । मैं सूर्यास्त के बाद कुछ भी खाती पीती           नहीं हूँ ।
विक्रान्त : क्यों?
कल्पना : अंशू को भी बुला लो, तब बताऊँगी ।
कल्पना : (आवाज देते हुए) अंशू आओ, तुम्हें मौसी बुला       रही है ।
(अंशू का प्रवेश । अंशू आ कर बैठ जाती है ।)
कल्पना : अंशू! अभी तुम्हारे आने के पहले मधु ने मुझसे       खाने के लिए कहा । मैंने कहा कि मैं सूर्यास्त         के बाद कुछ नहीं खाती हूँ तब वह दूध ले आईं ।     मैंने कहा दूध भी तो आहार ही है । इसलिए मैं     दूध भी नहीं पिऊँगी ।
अंशू    : मौसी! सूर्यास्त के बाद खाने में क्या बुराई है ?
कल्पना : अंशू! एक बात बताओ । किसी भी पशुपक्षी         को तुमने सूर्यास्त के बाद खातेपीते देखा है ?
अंशू    : हाँ! सामने वाली आँटी के यहाँ जब सब लोग         रात को भोजन करते हैं, तभी वह अपने कुत्ते          को भी    खाना देती हैं । वह खाता है ।
कल्पना : वह उनका पाला हुआ कुत्ता है ?
अंशू    : हाँ मौसी!
कल्पना : जो पाले हुए पशुपक्षी हैं हम उनकी आदतें         अपने जैसी डाल देते हैं । वह हमारे ही अनुसार           चलने लगते हैं ।
          तुम कभी भी देखो, शाम होते ही पक्षी              उड़कर अपने बसेरों में चले जाते हैं और सुबह         तीनचार बजे ही उठ कर चहचहाने लगते हैं ।         सड़क के कुत्ताबिल्ली आदि को भी यदि दिन में       भरपेट भोजन मिल जाता है, तब वह रात में        नहीं खाते हैं ।
अंशू    : मौसी! आप कह तो सही रही हैं, लेकिन वह तो      पशुपक्षी हैं । पक्षी रात में भोजन ढूँढ़ने कहाँ         जाएँगे? उन्हें तो शाम तक अपने बसेरों में आना       ही है । हम    तो रात में खाना बनाकर खा सकते       हैं न ।
कल्पना : (हँसते हुए) बहुत खूब अंशू! भगवान ने सूर्यास्त     कर दिया किन्तु हम मानवनिर्मित बिजली    जला कर भोजन बनाएँगे व खाएँगे । बेटा! हम    प्रकृति के नियमों का पालन करें तो सदा स्वस्थ रह सकते हैं । तुमने अंग्रेजी की वह कहावत तो    सुनी ही होगी &'Early to bed and  early to rise, makes      a man healthy, wealthy and wise.'
अंशू    : ‘हाँ मौसी! पढ़ी तो है किन्तु अगर रात को          जल्दी सो जाएँगे तो पढ़ाई कब करेंगे ?’ पशु       पक्षियों को पढ़ना तो होता नहीं है । इसलिए वह        तो जल्दी सो सकते हैं ।
(सब लोग हँसने लगे)
कल्पना : तुम कितने बजे सोती हो ?
मधु    : इसका बस चले तो रात भर पढ़ती रहे, हम         लोग तो दस बजे तक सो जाते हैं । लगभग एक      बजे लघुशंका आदि के लिए उठते हैं, इसके कमरे       की बत्ती बन्द करते हैं, तब यह सोती है ।
कल्पना : ‘अशू! तुम उठती कितने बजे हो ?’
अंशू    : लगभग आठ बजे ।
कल्पना : रात को एक बजे सोयीं और आठ बजे उठीं ।           इस प्रकार कुल कितने घंटे सोयी ?
अंशू    : सात घंटे ।
कल्पना : अगर तुम रात को नौ बजे सो जाओ और              सुबह चार बजे उठ जाओ । तब कितने घंटे              होंगे?’
अंशू    : सात घंटे होंगे, मौसी! लेकिन अगर रात को         अगर नौ बजे सो जाएँगे, तब पढ़ेंगे कब?
कल्पना : (हँसते हुए) वही बता रही हूँ । तुम नौ बजे न          सो कर रात को एक बजे सोयीं । नौ बजे से रात      को एक बजे तक चार घंटे अतिरिक्त पढ़ाई हुई           न ।
अंशू    : हाँ मौसी!
कल्पना : इसी पकार तुम रात को नौ बजे सो गयीं व        चार बजे उठीं । तब भी सुबह चार बजे से आठ          बजे तक चार घंटे पढ़ाई हुई । तुम दोनों ही             दशाओं में सात घंटे सोओगी । तुम तब भी सात       घंटे सो रही थीं, अब भी ।
अंशू    : (बात काटते हुए) फायदा क्या हुआ? पढ़ाई तो           उतनी ही हुई न ।
कल्पना : पहले पूरी बात सुनो । पढ़ाई उतनी नहीं,अधि     होगी । तुमने रात को नौ बजे तक बिना थके         हुए मस्तिष्क से पढ़ाई की, फिर सो गईं । सुबह          तरोताजा उठीं, और सुबह भी थकान रहित            मस्तिष्क से पढ़ाई की । इस प्रकार पढ़ाई अधि       होगी न ।
अंशू    : ‘लेकिन मौसी, पहली बात तो रात को देर तक       जागने की आदत पड़ गई है । कभीकभी पापा           रात को दस बजे ही लाइट बन्द कर देते हैंकहते      हैं सो जाओ । तब भी मेरी नींद सुबह आठ बजे         ही खुलती   है ।
कल्पना : ‘बेटी! यह तो तुम्हारी आदत पड़ गई है । कुछ      दिन रात में जल्दी सोने का अभ्यास करोगी, तब      धीरेधीरे नींद भी सुबह जल्दी खुलने लगेगी ।            शरीर को अनुकूल बनने में अधिक से             धिक आठ दिन का समय लगेगा ।
अंशू    : ठीक है मौसी!
विक्रान्त : मौसी की बात मानो तो तुम्हारा स्वास्थ्य भी         ठीक हो जाए । कल्पना जी! देख नहीं रही हैं,          इसकी आँखों के नचे गड्ढे पड़ गए हैं ।
कल्पना : जीजा जी! अभी उसको एकएक बात समझने           दीजिए । बहुत सारी बातें एक साथ बता दी           जाएँगी, तो गड़बड़ हो जाएगा ।
मधु    : ठीक कह रही हो कल्पना!
पटपरिवर्तन
(नेपथ्य से आवाज आती है ।)
(अंशू ने कल्पना मौसी की बात मानी । वह जल्दी सोने और जल्दी उठने लगी । कल्पना मौसी तो वापस जा चुकी थीं, किन्तु अंशू का स्वास्थ्य भी अब ठीक रहने लगा था और पढ़ाई भी पहले से अधिक होने लगी थी । और एक दिन––––अंशू आई.ए.एस. परीक्षा में चयनित हो गई ।)
(छठा दृश्य)
अंशू    : (मोबाइल पर बात करते हुए) मौसी नमस्ते!
(दूसरी तरफ की बात सुनने का अभिनय)
अंशू    : मौसी! मेरा चयन आई.ए.एस. में हो गया ।
(दूसरी तरफ की बात सुनने का अभिनय)
अंशू    : मौसी! पिछली बार जब मैंने आपको फोन              किया था तब बताया था न कि मेरी पी.एच.डी.        की थीसिस जमा हो गई है ।
       यह सब आपकी वजह से हुआ है ।
(दूसरी तरफ की बात सुनने का अभिनय)
अंशू    : मौसी! मैंने आपके जाने के कुछ दिन बाद ही        फोन पर बताया था न कि मैं रात को नौ बजे        सोती हूँ और सुबह चार बजे अपने आप नींद          खुल जाती है ।
          अब मेरा स्वास्थ्य भी ठीक रहता है और         मन भी । परीक्षा का परिणाम तो आप देख ही        रही हैं । हाँ मौसी! अहमदाबाद कब आ रही हैं?
(दूसरी तरफ की बात सुनने का अभिनय)
अंशू    : (फोन रखते हुए खुशी से चिल्लाते हुए) माँ!          कल्पना मौसी आने वाली है । कह रही हैं यदि         कल की फ्लाइट का टिकट मिल गया तो             वह और मौसा जी दोनों लोग आएँगे ।
(पटाक्षेप)


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