Thursday, August 16, 2018

पिताजी दादी से पिटे


पिताजी दादी से पिटे
   दादी ने अपने कमरे में ही छोटा-सा मंदिर बनाया हुआ था। वह जो भी खाती-पीतीं, भगवान का भोग लगा कर ही खाती थीं। वह भगवान को भोग लगाने के लिए तथा प्रसाद बाँटने के लिए लड्डू-पेड़े भी बना कर रखती थीं।
   हम सब घर के तथा पड़ोस के बच्चे सुबह-शाम आरती के समय अवश्य उपस्थित होते थे। आरती के बाद हम लोगों को लड्डू-पेड़े का प्रसाद मिलता था। हम लोगों को सुबह विद्यालय जाना होता था, इसलिए दादी उसके पहले ही आरती कर लेती थीं। तैयार होने की जल्दी में कई बार हम लोग पूरी आरती में शामिल नहीं हो पाते थे, फिर भी हमें प्रसाद तो मिल ही जाता था। शाम को सब बच्चे आरती के समय अवश्य उपस्थित होते थे।
   हमारे पिताजी मूर्ति पूजा का खण्डन करते थे। वह प्रायः हम लोगों को दादी के मन्दिर की आरती में शामिल होने से मना करते थे। हम लोग भला आरती में जाना कैसे छोड़ सकते थे। अगर आरती में जाते तो हमें लड्डू-पेड़े कहाँ से मिलते। वैसे दादी भक्तिपूर्वक आरती करती थीं। हम लोग भी भजन गाते थे, उसमें भी आनन्द आता था।
   खैर जब पिताजी ने बहुत तंग करना प्रारम्भ कर दिया, तब एक दिन हम लोगों ने योजना बनाई कि पिताजी की शिकायत दादी से की जाए। आखिर दादी पिताजी की माँ है। वह उन्हें डाँट सकती हैं।
   और एक दिन हम लोगों ने पिताजी की शिकायत दादी से की। दादी ने कहा-‘अच्छा आने दो उसे, मैं बताती हूँ।
   जब शाम को पिताजी घर आए तब दादी ने उन्हें बुलाया और कहा-‘बेटा! तू खाना खाकर मेरे पास जाना, तुझसे कुछ जरूरी बातें करनी हैं।
   पिताजी के आने से पहले ही दादी ने हम बच्चों को बुला लिया। उन्होंने हम लोगों को भी प्रसाद दिया और पिताजी को भी। सबने प्रसाद खाया। फिर दादी ने कहा- ‘तू तो मूर्ति पूजा का खण्डन करता है, तूने प्रसाद क्यों खाया?’ पिताजी कुछ बोल पाए।
   हम लोग समझ गए कि अब कुछ गड़बड़ होने वाला है। हम लोग डर कर दादी के पीछे छिप गए। दादी ने उन्हें एक थप्पड़ मारा, हम लोग और सहम गए।
   मैंने धीरे से दादी के कान में कहा- ‘अब हम लोगों को पिताजी पीटेंगे।
   दादी ने पिताजी से कहा- ‘देख हरीश! तू बच्चों से कुछ नहीं कहेगा। अगर तूने बच्चों से पूजा या प्रसाद के लिए मना किया तो मुझे बहुत दुःख होगा। ये बच्चे डर रहे हैं कि इनके कमरे के बाहर जाने पर तू इन्हें मारे-डाँटेगा।
   पिताजी ने कान पकड़ते हुए कहा- ‘अम्मा! मैं वादा करता हूँ कि अब मैं इनसे पूजा के लिए कुछ नहीं कहूँगा। कहकर वह कमरे के बाहर चले गए।
   एक ओर तो हमारे अन्दर पिताजी का डर था। दूसरी ओर प्रसन्नता कि जिन पिताजी से हम डरते हैं, उन्हीं पिताजी ने हमारे ही सामने दादी से मार खाई और कान पकड़े।

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