Thursday, August 16, 2018

वेदों में शारीरिक स्वास्थ्य


वेदों में शारीरिक स्वास्थ्य
प्राणवायु पर नियन्त्रण (प्राणायाम)
नमस्ते अस्त्वायते नमो अस्तु परायते
नमस्ते प्राण तिष्ठत आसीनायोत ते नम:
अथर्ववेद 11/4/7
    हे प्राण! आते हुए तुझे नमस्कार हो, जाते हुए तुझे नमस्कार हो ठहरे हुए तुझे नमस्कार करता हूँ और बैठे हुए, स्थिर हुए तुझे नमस्कार करता हूँ
          वास्तव में यह प्राणायाम की वास्तविक प्रक्रिया है प्राणवायु या श्वास पर दृष्टि रखने से मनोवृत्ति भी साथसाथ आती जाती है चैबीस घण्टे में श्वास इक्कीस हजार छह सौ बार आतीजाती है
    श्वास को नमस्कार करने अर्थात् उस पर ध्यान लगाने से एक तरह अजपा जप चलने लगता है और वाह्यवृत्ति आभ्यन्तरवृत्ति प्राणायाम के साथ ही कुम्भक भी सिद्ध होने लगता है )
शुद्ध वायु का सेवन
उत वात पितासि उत भ्रातोत नः सखा
     नो   जीवातवे          कृधि ।
सामवेद
    हे वायु! तू हमारा पालक, पिता और सहायक भ्राता है हमारा मित्र हितकर भी है तू हमको जीवन के लिए समर्थ कर अर्थात् शुद्ध वायु का यथाविधि सेवन करने वालों का जीवन सुखद होता है शुद्ध वायु में प्राणायाम आदि करते रहना चाहिए तथा घर भी ऐसा होना चाहिए जिसमें वायु का आवागमन ठीक प्रकार से हो एयरकन्डीश्नर, कूलर आदि कृत्रिम साधनों के प्रयोग से बचना चाहिए
शं नो वात: पवतां शं नस्तपतु सूर्य:
शं : कनिक्रद्देव: पर्जन्यो अभिवर्षतु
यजुर्वेद  36/10
    वायु हमारे लिए सुखकारी रहे सूर्य हमारे लिए सुखकारी तपे गर्जन करता हुआ पर्जन्य देव हमारे लिए सुखद बरसे अर्थात् हम प्रकृति के समीप
रहें प्रकृति के नियमों का पालन करें
    प्राणायाम (प्राण़आयाम) योग का चैथा अंग है चूँकि प्राणायाम से शरीर के श्वसनतंत्र को भी बहुत लाभ होता है, इसलिए बहुत से लोग इसे शरीर को अतिरिक्त ऑक्सीजन प्रदान करने वाला मात्र फेफड़ों का व्यायाम ही समझते
हैं जबकि यह केवल श्वसन व्यायाम ही नहीं है, बल्कि सूक्ष्म रूप से श्वसन के माध्यम से प्राणमय कोष की नाड़ियों, नलिकाओं एवं प्राण के प्रवाह पर प्रभाव डालता है फलस्वरूप प्राणायाम अभ्यासी की शारीरिक सुख के अलावा मानसिक स्थिरता तो बढ़ती ही है, साथ ही मन पर भी अधिकार हो जाता है
    जीवन रहने के लिए वायु की महती आवश्यकता है, इस सत्य से कौन अपरिचित है यही कारण है कि प्रत्येक जीवधारी सोतेजागते––––यहाँ तक कि बेहोशी की अवस्था में भी अविराम गति से श्वास लेते और छोड़ते रहते हैं अन्यथा मृत्यु हो जाए                                       
          स्वाभाविक गति से हमआप ज्यों श्वास लेते और छोड़ते हैं, उससे अपनी जीवनीशक्ति को सामान्य तो बनाए रख सकते हैं लेकिन उसे और विकसित नहीं कर सकते यदि अज्ञानता अथवा किसी कष्ट के कारण श्वास अधूरा ही ले रहे हैं तो जीवनीशक्ति शीघ्र ही क्षीण हो जाती है मुँह से श्वास लेना अथवा अशुद्ध वायु में लिया गया श्वास तो सदा ही हानिकारक होता है
    महात्मा गाँधी जी कहते हैंहवा शरीर के लिए सबसे जरूरी चीज़ है इसीलिए ईश्वर ने हवा को सर्वव्यापी बनाया है और वह हमें बिना किसी प्रयत्न के मिल जाती है
    हवा को हम नाक के द्वारा फेफड़ों में भरते हैं फेफड़े धौंकनी का काम करते हैं वे हवा को अन्दर खींचते हैं और बाहर निकालते हैं बाहर की हवा में प्राणवायु होती है वह मिले तो मनुष्य जिन्दा नहीं रह सकता इसलिए घर ऐसा होना चाहिये, जिसमें हवा अच्छी तरह जा सके और सूर्यप्रकाश के आने का रास्ता भी हो
    हवा का काम रक्त की शुद्धि करना है, मगर हमें फेफड़ों में हवा भरना और उसे बाहर निकालना ठीक तरह से नहीं आता इसलिए हमारे रक्त की शुद्धि भी पूरी तरह नहीं हो पाती कई लोग मुँह से श्वास लेते हैं यह बुरी आदत है नाक में कुदरत ने एक तरह की छलनी रखी है, जिससे हवा छनकर भीतर जाती है, और साथ ही गरम होकर फेफड़ों में पहुँचती है मुँह से श्वास लेने से हवा तो साफ होती है और गरम ही हो पाती है –––
    चलते, फिरते और सोते वक्त अगर लोग अपना मुँह बन्द रखें, तो नाक अपना काम अपनेआप करेगी ही सुबह उठकर जैसे हम मुँह साफ करते हैं, वैसे ही हमें नाक भी साफ करनी चाहिये ––––फेफड़ों में शुद्ध हवा ही भरनी चाहिये इसलिए रात को आकाश के नीचे या बरामदे में सोने की आदत डालना अच्छा है हवा से सरदी लग जाएगी, यह डर नहीं रखना चाहिये ठंड लगे तो हम ज्यादा कपड़े ओढ़ सकते हैं ओढ़ने का कपड़ा गले से ऊपर नहीं जाना चाहिये अगर सिर ठंडक को बरदाश्त कर सके तो उस पर रुमाल बाँध लेना चाहिये मतलब यह कि नाक को, जो कि हवा लेने का द्वार है, कभी ढकना नही चाहिये
    सोते समय दिन के कपड़े उतार देने चाहिये रात को कम कपड़े पहनने चाहिये और वे ढीले होने चाहिये दिन में भी कपड़े जितने ढीले पहने जायें उतना ही अच्छा है
    हमारे आसपास की हवा हमेशा शुद्ध ही होती है, ऐसा नहीं होता और सब जगह की हवा एक सी होती है प्रदेश के साथ हवा भी बदलती है प्रदेश का चुनाव हमारे हाथ में नहीं होता मगर घर का चुनाव थोड़ाबहुत हमारे हाथ में       जरूर रहता हैय और रहना भी चाहिये सामान्य नियम यह हो सकता है कि घर ऐसी जगह ढूँढ़ा जाए, जहाँ बहुत भीड़ हो, आसपास गंदगी हो और हवा और प्रकाश ठीकठीक मिल सके
                                      आरोग्य की कुंजी
                                                          पृष्ठ 4–6
श्वास का रहस्य
    प्राणायाम के सम्बन्ध में कुछ भी जानने से पहले हमें श्वास के रहस्य को जान लेना परम आवश्यक है, क्योंकि हमारा जीवन पूर्णतया श्वास पर ही अवलम्बित है वैसे भी शरीर की समस्त क्रियाओं में से श्वास क्रिया प्रधान है, क्योंकि भोजन के बिना मनुष्य कुछ समय तक जीवित रह सकता है, परन्तु बिना श्वास लिए जीवन कुछ क्षण भी चलना असम्भव है
श्वास लेने की उपयुक्त विधि
    स्वस्थ एवं दीर्घ जीवन के लिए श्वासप्रश्वास का सही तरीका जानना आवश्यक है क्योंकि अनियन्त्रित, उल्टा अथवा अधूरा श्वास लेने से फेफड़ों की शक्ति शीघ्र ही क्षीण होने लगती है फलस्वरूप शरीर में नाना प्रकार के रोग उत्पन्न होने लगते हैं जैसे- सर्दी, जुकाम, खाँसी, दमा इत्यादि अर्थात् अपूर्ण श्वास लेने से मनुष्य सदा बीमार रहता है
श्वास नाक से लीजिए, मुँह से नहीं
    श्वास सदैव नाक से लें यदि मुँह से श्वास लेने की आदत पड़ गई होे तो इसे छोड़ने का प्रयत्न करें मुँह केवल बोलने एवं भोजन करने के लिए है मुँह से श्वास लेने से अनेक संक्रामक व्याधियाँ हो जाती हैं जुकाम और सर्दी का प्राय% यही कारण है, क्योंकि श्वास लेने वाले अंग नाक में ही प्रकृति ने ऐसी व्यवस्था की है कि,
          1–     शरीर तापक्रम से कम या अधिक वायु को शरीर के तापक्रम के अनुकूल बनाकर अन्दर जाने दें
          2–     वायु के साथ रहे धूल कणों को नाक में ही रोक लें
          3–     वातावरण के रोगउत्पादक कीटाणुओं को नष्ट कर दें
     चूँकि मुँह में ऐसा कोई प्रबन्ध नहीं है, इसलिए ठंडी या गरम वायु, धूल के कण एवं कीटाणु मुँह द्वारा फेफड़ों में पहुँच जाते हैं
    अतएव जिन लोगों को मुँह से श्वास लेने की आदत है, उन्हें चाहिए कि नाक द्वारा श्वास लेने का अभ्यास करें
नोट :  यदि घर में कोई सोते या जागते समय मुँह खुला रखता है तो उन्हें नाक से श्वास लेना बताएँ अन्यथा स्नोफीलिया, ब्राँकाइटिस या दमा के रोगी हो सकते
 हैं
श्वास ही उल्टा
    किसीकिसी को ऐसा भी अनुभव होता है कि श्वास अन्दर लेते समय तो पेट अन्दर जाता है एवं जब श्वास बाहर फेंकते हैं तो पेट बाहर आता है ऐसे लोग सदा बीमार रहते हैं क्योंकि उनकी श्वास क्रिया ही उल्टी है यदि ऐसा हो तो पहले श्वास सीधा कीजिए इसके लिए कुछ दिन लगातार शवासन में लेटकर श्वास सीधा करने की क्रिया करने का प्रयास करना होगा दिन में कई बार ध्यान देना होगा, तब कहीं जाकर यह आदत सुधरेगी
पूरा श्वास लीजिए
    कभी सोते हुए बच्चे को ध्यान से देखिए श्वास अन्दर आने के साथ उसका पेट काफी बाहर तक आता है और श्वास के बाहर जाने के साथ उसका पेट काफी अन्दर तक जाता है यदि आप शान्ति से अपने पेट के अन्दरबाहर होने की क्रिया पर ध्यान दे तो स्वस्थ बच्चे की अपेक्षा आप अपने पेट को बाहरअन्दर जाते हुए बहुत कम पाएँगे इस निरीक्षण से आपको समझ जाना चाहिए कि अपूर्ण श्वास क्या है
    अपूर्ण या अधूरा श्वास लेने से हमारे शरीर एवं मस्तिष्क में पोषण की कमी हो जाती हैय जो अनेक बीमारियों का कारण बनता है चुस्त कपड़े दीर्घ श्वास क्रिया में बाधक होते हैं चूँकि पूर्ण श्वास लिए बिना दीर्घ श्वास एवं स्वस्थ जीवन प्राप्त नहीं किया जा सकता अत: आइए सीखें कि पूरा एवं गहरा श्वास कैसे लिया जाता है ?
    उदर द्वारा श्वसन की अनुभूति बैठकर या चित लेटकर एक हाथ को नाभि पर रखकर उदर द्वारा श्वसन की अनुभूति स्वयं करिए अब दीर्घ पूरक कीजिए, आप देखेंगे कि पूरक के साथ उदर फूल जाता है तथा हाथ ऊपर आता है जितना उदर प्रदेश फूलेगा, उतना श्वास का प्रवेश फेफड़ों में होगा दीर्घ रेचक कीजिए, आप देखेगे कि दीर्घ रेचक के साथ उदर प्रदेश अन्दर की ओर संकुचित हो रहा है जितना पेट अन्दर जाएगा उतना ही फेफड़ों से अधिकतम मात्रा में वायु का निष्कासन होगा
    छाती द्वारा श्वसन की अनुभूति: इस विधि का अभ्यास बैठकर या चित लेटकर ही करते हैं छाती और पसलियों का विस्तार करते हुए पूरक कीजिए आप अनुभव करेंगे कि इस क्रिया से पसलियाँ ऊपर, बाहर की ओर उठ जाती हैं अब रेचक कीजिए, आप अनुभव करेंगे कि इस क्रिया से पसलियों में उतार सकता है
यौगिक श्वसन
    फेफड़ों में पूरक द्वारा अधिकतम मात्रा में वायु का प्रवेश करवाना रेचक द्वारा अधिकतम वायु का निष्कासन ही पूर्ण या यौगिक श्वसन कहलाता है इस प्रकार की श्वसन क्रिया ही प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपयोगी है, इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को इसी विधि से श्वासप्रश्वास की क्रिया करनी चाहिए पहले उदर, फिर छाती का धीरेधीरे विस्तार करते हुए जितना सम्भव हो सके फेफड़ों में अधिकसेअधिक वायु का प्रवेश कीजिए, फिर क्रमश: पहले छाती, फिर उदर को शिथिल करते हुए रेचक कीजिए ताकि फेफड़ों से अधिकसेअधिक वायु का निष्कासन हो जाए
    यौगिक श्वसन कब करें:  यौगिक श्वसन प्रारम्भ में योगासन या प्राणायाम के पहले कुछ मिनट चेतनापूर्वक करें धीरेधीरे अभ्यास से स्वाभाविक रूप से पूरे दिन का अभ्यास किया जा सकता है
सावधान : उदर से छाती, छाती से उदर तक श्वसनगति सहज हो, झटके से
नहीं
यौगिक श्वसन के लाभ
          1–     यौगिक श्वसन के अभ्यास से थकान का अनुभव नहीं होगा
          2–     चिन्तन शक्ति का विकास होगा
          3–     चिन्ता, भय, तनाव एवं निराशा का प्रभाव नहीं पड़ेगा
          4–     सर्दी, जुकाम, खाँसी, टी॰बी॰, दमा, प्ल्यूरिसी इत्यादि कष्ट नहीं
                   होंगे
          5–     पाचन प्रणाली एवं निष्कासनतंत्र स्वस्थ होंगे
          6–     जीवन दीर्घ एवं स्वस्थ होगा
नाड़ी शोधन प्राणायाम
    हमारे देश के प्राचीन ऋषिमुनियों ने जहाँ मानवजीवन को उन्नतिशील बनाने हेतु ज्ञानविज्ञान सम्बन्धी अनेक विधाओं की खोजें की हैं, वहीं जीवनी शक्तिवर्धक अनेक प्रकार के प्राणायामों का अविष्कार भी किया है यहाँ पर जिस प्राणायाम की चर्चा कर रहे हैं, उसे अनुलोमविलोम प्राणायाम या सहज प्राणायाम अथवा गहरा श्वास के नाम से पुकारते हैं इसे स्काई जूस भी कह सकते हैं, क्योंकि इस क्रिया के द्वारा शुद्ध वायु में बैठकर आकाश तत्त्व से प्राण खींचकर शरीर एवं मन को स्वस्थ, सक्रिय एवं शक्तिशाली बनाते हैं इस प्राणायाम को शास्त्रों में नाड़ी शोधन प्राणायाम कहा जाता है
विधि :
    दरी या चटाई बिछाकर सिद्धासन, वज्रासन, सुखासन या पद्मासन लगाकर बैठ जाइए कमर, पीठ तथा गर्दन को सीधा कर लीजिए कुछ देर आँखें बन्द करके शान्त भाव से बैठे रहिए दाएँ हाथ के अँगूठे से दाएँ नथुने को बन्द करके बाएँ नथुने से धीरेधीरे श्वास को अन्दर भरिए (पूरक)
    पूरा श्वास अन्दर भर जाने पर दाएँ हाथ की अनामिका मध्यमा उंगली से बाएँ नथुने को दबाकर बंद कर दीजिए और दाएँ नथुने को खोलकर सारा श्वास धीरेधीरे बाहर निकाल दीजिए (रेचक)
          पूरा श्वास बाहर निकल जाने पर पुन:  दाएँ नथुने से ही श्वास को अन्दर
भरिए (पूरक)
          श्वास अन्दर भर जाने पर पुन:  दाएँ हाथ के अँगूठे से दाएँ नथुने को दबाकर बन्द कर लीजिए और पुन:  बाएँ नथुने को खोलकर श्वास को धीरेधीरे बाहर निकाल दें (रेचक)
          इस प्रकार गहरे श्वास का यह एक चक्र पूरा हुआ इसे संक्षेप में निम्न प्रकार से समझें:
          1– दाएँ नथुने से पूरक कीजिए  4 गिनती में (श्वास भरें)
          2– बाएँ नथुने से रेचक कीजिए 8 गिनती में (श्वास निकालें)
          3– बाएँ नथुने से पुन: पूरक कीजिए   4 गिनती में (श्वास भरें)
          4– दाएँ नथुने से पुन: रेचक कीजिए   8 गिनती में (श्वास निकालें)
(यह एक चक्र हुआ)
    इस प्रकार लगभग दो मिनट से प्रारम्भ करें, फिर धीरेधीरे पाँच मिनट से दस मिनट तक बढ़ाएँ
सावधानियाँ :
    श्वास को धीरेधीरे अन्दर लें और धीरेधीरे ही बाहर निकालें अर्थात् श्वास लेते और छोड़ते समय अपने कानों को भी श्वास की आवाज सुनाई पड़े
लाभ :
    गहरे श्वास के नियमित अभ्यास से नाड़ियाँ शुद्ध एवं लचीली हो जाती हैं, जिससे व्यक्ति स्वस्थ एवं दीर्घायु होता है
    जिन्हें बारबार सर्दी, जुकामखाँसी हो जाता हो, उन्हें इसके अभ्यास से छुटकारा मिल जाता है
    जिन्हें गन्ध का अनुभव होना बन्द हो गया है, उन्हें इसके अभ्यास से गन्ध का अनुभव होने लगता है
    मन को शान्ति मिलती है, सिरदर्द नहीं होता तथा दिन भर चुस्ती बनी रहती है  
सूर्य की स्तुति
सखाय आनिषीदत सवितास्तोभ्यो नु :
दाता      राधांसि शुंभति
ऋग्वेद 1/22/8
    हे सखा लोग! चारों ओर बैठ जाओ हमें शीघ्र ही सूर्य की स्तुति करनी होगी धन प्रदाता सूर्य सुशोभित हो रहे हैं अर्थात् हम सूर्योदय के पूर्व उठ जावें दैनिक कृत्यों से निवृत्त हो कर सूर्य की आराधना करें   
विश्वदेवं सत्पतिं सूक्तैरद्या वृणीमहै
सत्यसवं    सवितारं
ऋग्वेद 5/82/7
    आज सबके उपास्यदेव सत्य के पक्षपाती जगत के उत्पादक प्रभु को सुन्दर स्तुति वचनों से भजते हैं सूर्य को स्तुति वचनों से भजने का अर्थ है कि हम प्रात:कालीन उदित होते हुए सूर्य के दर्शन करें सूर्य के अनमोल प्रकाश का सेवन करें   
अष्टौ व्यख्यत्ककुभ: पृथिव्यास्त्रीधन्व योजना सप्त सिन्धून्।
हिरण्याक्षा: सविता देव आगा त् दधत् रत्ना दाशुषे वार्याणि
यजुर्वेद 34/24
    सुनहली किरणों वाला सूर्य पृथ्वी से सम्बन्धित आठों दिशाओं को, तीनों अन्तरिक्षों को अर्थात् तीनों लोकों को, योजनों दूर प्रदेशों को तथा सात विशाल सागरों को प्रकाशित करता है यजमान के लिए सवितादेव रत्न के समान जीवन प्रदाता है अत: वह वरणीय है

हिरण्यपाणि: सविता विचर्षणिरुभे द्यावापृथिवी अन्तरीयते
अपामीवां बाधते वेति सूर्यमभि कृष्णेन रजसा द्यामृणोति
यजुर्वेद 34/25
    सुनहली किरणों वाला और विभिन्न रूप से प्रजाओं को देखने वाला सवितादेव द्यावापृथिवी दोनों के अन्दर गति करता है उदय हो कर रोगों को हरता है अर्थात् सूर्य की जीवनदायिनी किरणें शरीर, मन बुद्धि सबके लिए उत्तम हैं अत: प्रात:काल सूर्य के प्रकाश का सेवन करें आरोग्य के लिए सूर्य के प्रकाश में ही काम करें
    जब सूर्य डूबता है, तब अपने कृष्ण प्रकाश से रिक्ति सी बना देता है
हिरण्यहस्तो असुर: सुनीथ: सुमृडीका: स्ववां यातु  अर्वाङ्
अपसेधन्रक्षसो यातुधानान् अस्थात् देव: प्रतिदोषं गृणान:
यजुर्वेद 34/26
    सुनहली किरणों रूपी हाथों वाला, प्राणवान, कल्याण स्तुति, सुखदाता और तेजवान सूर्य हमारे अभिमुख होवे राक्षस यातुधानों को अपसिद्ध करते हुए प्रतिदिन सूर्यदेव उदित होते हैं
ये ते पन्था: सवित: पूर्व्यासोऽरेणव: सुकृता अन्तरिक्षे
तेभिर्नो अद्य पथिभि: सुगेभि रक्षा नो अधि ब्रूहि देव॥
यजुर्वेद 34/27
    हे सवितादेव! तुम्हारे जो धूलिरहित और साधु सम्पादित मार्ग पहले से ही विधाता द्वारा अन्तरिक्ष में बनाए गए हैं, उन्हीं सुगम्य मार्गों द्वारा हे देव! तुम हमारी रक्षा करो हमें स्थापित करो, हमें अपनाओ और यश को प्राप्त कराओ अर्थात् सूर्योदय के पूर्व जागरण, सूर्यदर्शन वन्दन से मनुष्य स्वस्थ, धनवान बुद्धिमान बन सकता है
सविता  पश्चात्तात  सविता पुरस्तात्
सवितोत्तरात्तात्  सविताधरात्तात।।
सविता : सुवतु सर्वताति सविता
नो    रासतां    दीर्घमायु:
ऋग्वेद 10/36/14
    क्या पश्चिम, क्या पूर्व, क्या उत्तर और क्या दक्षिण सूर्यदेव हम सबको सर्वत्र श्रीवृद्धि दें हमें दीर्घायु प्रदान करें सूर्य की किरणों में आरोग्य की शक्ति है, यदि हम सूर्योदय के पूर्व उठ जावें और यथासम्भव अधिक से अधिक कार्य सूर्य के प्रकाश में करें तो हमें निरोगी काया और दीर्घायु प्राप्त होगी
अपामीवामप स्त्रिधपम सेधत दुर्मतिम्
आदित्यासो युयोतना नो अंहस:
 सामवेद
    सूर्य की किरणें रोग को दूर करती हैं बाधक दस्यु, चोरादि को दूर करती
हैं कामादि विकारों से बुद्धि को वर्जित करती हैं हमको पाप से दूर करती हैं सूर्य के प्रकाश से केवल शरीर ही निरोगी नहीं रहता है वरन् मन, बुद्धि भी विकाररहित हो जाता है
आदित्यैरिन्द्र: सगणो मरुद्भिरस्मभ्यं भेषजा करत्
 सामवेद
    हे परमेश्वर! सूर्य की किरणों और विविध वायुओं के गणसहित हमारे लिए औषधियाँ उत्पन्न करें अर्थात् सूर्य का प्रकाश हमारे ऊपर पड़े सूर्य के प्रकाश में ही हम कार्य करें यह स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम है  
यदद्य सूर उदितोऽनागा मित्रो अर्यमा
सुवाति      सविता     भग:
सामवेद
    जो कुछ प्रात:काल सूर्य उदय होने पर आकाशस्थ वायुभेद देवविशेष उत्पन्न करे, वह हमें प्राप्त हो  
    अर्थात् मनुष्यों को चाहिए कि वह ब्रह्ममुहूर्त में उठ कर निर्दोष प्राणवायु का सेवन करें, प्राणायाम करें ईश प्रार्थना करें
तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि यो धियो : प्रचोदयात्
 सामवेद
    हम उपासक लोग उस सर्वोत्पादक प्रकाशमान ज्योतिस्वरूप सूर्य का वरण करते हैं, ध्यान करते हैं वह हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे इस मन्त्र में मूल भाव है कि हम ब्रह्ममुहूर्त में उठें सविता की उपासना करें
    प्रात:काल उगते हुए सूर्य के दर्शन से शरीर, मन, बुद्धि सभी स्वस्थ रहते

 हैं
या    सुनीथे   शौचद्रथे   व्यौच्छो  दुहितर्दिव:
सा व्युच्छ सहीयसि सत्य श्रवसि वाय्ये सुजाते अश्वसूनृते
 सामवेद
    हे सुन्दर प्राप्ति वाली! प्रकाशक रथ रमणीय रूप वाली! अत्यन्त बलवती! सच्चे यशवाली! व्यापक प्यारे शब्दों वाली! द्युलोक या सूर्य की पुत्री उषा! तू पूर्व की भाँति अन्धकार का निवारण कर
    अर्थात् इस मन्त्र के माध्यम से मनुष्यों को उपदेश है कि जो लोग उषाकाल में उठते हैं, वह सदा ही आनन्द में रहते हैं
वाममद्य सवितर्वाममु श्वो दिवे दिवे वाममस्मभ्यंसावी  :
वामस्य हि क्षयस्य देव भूरेरया धिया वामभाज: स्याम
यजुर्वेद  8/6
    हे सवितादेव! हमें आज वन्इनीय प्राप्त होवे वह स्पृहणीय  धन कल भी हमें प्राप्त होवे हे सवितादेव! तुम हमें दिन प्रतिदिन वननीय धन ही प्रसूत करते रहो हे सवितादेव! और अधिक क्या कहें, हम अत्यधिक धन के स्वामी होवें हे देव! हम अपनी इस स्तुति द्वारा धनवान होवें  
युक्तेन मनसावयं देवस्य सवितु: सवे स्वमर्याय शत्तया
यजुर्वेद  11/2
    उसी प्रथम सर्वप्रेरक सवितादेव के सम्प्रेरण में विद्यमान हम यज्ञकर्ता ब्राह्मण भी अपने मन में यज्ञकर्म को धारण करके स्वशक्ति भर, स्वर्ग जाने की कामना से, वेदिका का चयन करते हैं
यहाँ पर यज्ञकर्ता ब्राह्मण से अर्थ जातिसूचक नहीं है, कर्म से है वेदों में सत्कार्यों को करने वाले को ही ब्राह्मण कहा गया है        
यस्य प्रयाणमन्वन्य इद्ययुर्देवा देवस्य महिमानमोजसा
:   पार्थिवानि   विममे     एतशो tkaसि
देव:          सविता         महित्वना
यजुर्वेद  11/6
    जिस सवितादेव के गमन से अन्य सब देवता अनुसूत करते हैं और जिस देव की महती महिमा को अपने ओज तेज से सब देव अनुगमित करते हैं, जिसने सब पार्थिव पदार्थों को बनाया है वही सवितादेव सर्वत्र व्याप्त हो रहा है
देव सवित: प्रसुव यज्ञं प्रसुव यज्ञपतिं भगाय
दिव्यो     गन्धर्व:       केतपू:
केतं :  पुनातु वाचस्पतिर्वाचं : स्वदतु
यजुर्वेद  11/7
    हे देव सविता! तुम यज्ञ को प्रेरित करो और यज्ञकर्ता यजमान के भी परम सौभाग्य (स्वर्गादि फल) को प्रेरित करो स्वर्गस्थ ज्ञान को पवित्र करने वाला और देवगणों को धारण करने वाला यह सवितादेव हमारे ज्ञान को पवित्र करे वाणी का स्वामी वह प्रजापति हमारी स्तुतिवाणी को ग्रहण करे
उदपप्तदसौ   सूर्य:  पुरुविश्वानि  जूर्वन्
आदित्य:  पर्वतेभ्योविश्वदृष्टो  अदृष्टहा
ऋग्वेद  191/9
          सूर्य बड़ी संख्या में विषों का विनाश करते हुए उदित होते हैं सर्वदर्शी और अदृश्यों के विनाशक आदित्य जीवों के मंगल के लिए उदित होते हैं
    इन सभी मन्त्रों में यह स्पष्ट किया गया है कि सूर्य की जीवनदायिनी किरणों का सेवन हमारे सुखद अस्तित्व के लिए आवश्यक है अत: हमें सूर्योदय के पूर्व उठना चाहिए हमारे घरों का निर्माण भी इस प्रकार हो कि उनमें सूर्य का प्रकाश पर्याप्त मात्रा में आवे      
सूर्यास्त से पूर्व भोजन 
उदुस्त्रिया: सृजते सूर्य: सचा उद्यन्नक्षत्रमर्चिवत्
तवेदुषो व्युषि सूर्यस्य सं भक्तेन गमेमहि
 सामवेद
    सूर्यलोक सदा उदित नक्षत्र और किरणों वाला है और एक साथ ही किरणों को ऊपर छोड़ता है हम प्रभातवेला और सूर्य के प्रकाश में ही अन्न ग्रहण करें
अनुहवं  परिहवं   परिवादं  परिक्षवम्
सर्वेर्मे रिक्तकुम्भान् परा तान्त्सवित: सुव
अथर्ववेद19/8/4
    हे सूर्यदेव! आपकी उपासना से अर्थात् सूर्योदय के पूर्व जागरण से मेरे मन के विवाद, बकवाद, अपवाद आदि दोष दूर हों नाक की फुरफुराहट आदि शारीरिक दोष भी दूर हों इस मन्त्र का सीधासीधा भाव है कि सूर्योदय के पूर्व उठने से शरीर, मन,बुद्धि सभी कुछ स्वस्थ संतुलित रहेगा अत: जीवन में आनन्द ही आनन्द होगा
महात्मा गाँधी जी के अनुसार
जैसे आकाश, हवा, पानी आदि तत्त्वों के बिना मनुष्य का निर्वाह नहीं हो सकता, वैसे ही तेज अर्थात् प्रकाश के बिना भी उसका निर्वाह नहीं हो सकता प्रकाश मात्र सूर्य से मिलता है सूर्य हो तो हमें गर्मी मिल सके, प्रकाश इस प्रकाश का हम पूरा उपयोग नहीं करते, इसलिए पूर्ण आरोग्य का अनुभव नहीं करते जैसे हम पानी का स्नान करके साफस्वच्छ होते हैं, वैसे ही सूर्यस्नान करके भी साफ और तन्दुरुस्त हो सकते हैं दुर्बल मनुष्य यदि प्रात%काल के सूर्य की किरणें नंगे शरीर पर ले, तो उसके चेहरे का फीकापन और दुर्बलता दूर हो जाएगी और यदि पाचनक्रिया मंद हो गई हो तो वह जाग्रत हो जाएगी सवेरे जब धूप ज्यादा चढ़ी हो, उस समय यह स्नान करना चाहिए जिसे नंगे शरीर से लेटने या बैठने में सर्दी लगे, वह आवश्यक कपड़े ओढ़कर लेटे या बैठे और जैसेजेसे शरीर सहन करता जाए, वैसेवैसे शरीर पर से कपड़े हटाता जाय नंगे बदन हम धूप में टहल भी सकते हैं कोई देख सके ऐसी जगह ढूँढ़ कर यह क्रिया की जा सकती है अगर ऐसी सहूलियत पैदा करने के लिए दूर जाना पड़े और इतना समय हो, तो बारीक लंगोटी से गुह्य भागों को ढक कर सूर्यस्नान लिया जा सकता है
    इस प्रकार सूर्यस्नान लेने से बहुत लोगों को लाभ हुआ है क्षयरोग में इसका खूब उपयोग होता है
    कई बार फोड़े का घाव भरता ही नहीं है उसे सूर्य स्नान दिया जाए तो वह भर जाता है पसीना लाने के लिए मैंने रोगियों को ग्यारह बजे की जलती धूप में सुलाया है इससे रोगी पसीने से तरबतर हो जाता है इतनी तेज धूप में सुलाने के लिए रोगी के सिर पर मिट्टी की पट्टी रखनी चाहिए उस पर केले के या दूसरे बड़े पत्ते रखने चाहिए, जिससे सिर ठंडा और सुरक्षित रहे सिर पर तेज धूप कभी नहीं लेनी चाहिए
आरोग्य की कुंजी
पृष्ठ 49–50
    महिलाएँ  भी हल्के कपड़े पहन कर सूर्य स्नान लें तो बहुत लाभ होगा  
औषधियों की औषधी बह्म्र 
आदङ्गा कुविदङ्गा शतं या भेषजानि ते
तेषामसि तवमुत्तममनास्त्रावमरोगणम्



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