प्राकृतिक जीवनशैली का अर्थ है कि अपने शरीर को प्रकृति या कुदरत के ऊपर छोड़ दें । शरीर में कोई व्याधि होती है तो भी उसके लिए कोई औषधि न लें । प्रकृति शरीर को स्वयं ठीक कर देगी ।
इसी प्रकार यदि किसी की हड्डी टूट जाए तो शरीर में यह क्षमता होती है कि वह स्वयं जुड़ जाती है । प्लास्टर चढ़वाना केवल इसलिए आवश्यक है कि हड्डी सीधी जुड़े ।
इसी प्रकार शरीर में कोई भी बीमारी होती है तो प्राकृतिक चिकित्सा का सिद्धान्त यह मानता है कि शरीर में कोई विकार है, यदि उसके लिए कोई दवा न दें तो प्रकृति उस विकार को निकाल कर शरीर को स्वस्थ कर देगी । कहा भी गया है–
‘आहारं पचति शिखि, दोषान् आहारवर्जित: ।’
‘अर्थात् जठराग्नि आहार को पचाती है और आहार के अभाव में दोषों को पचाती है ।’ तात्पर्य यह है कि यदि शरीर को बीमारी की अवस्था में आहार न दिया जाए तो शरीर में स्थित जठराग्नि को आहार पचाने के कार्य से छुट्टी मिल जाएगी और वह शरीरस्थ विकारों को पचा कर शरीर को रोगमुक्त कर देगी ।
इसी के साथ यदि शरीर को बीमारी की अवस्था मेंे आराम भी दिया जाए तो शरीर और जल्दी स्वस्थ हो जाता है ।
प्राकृतिक चिकित्सा के सिद्धान्त को निम्न बिन्दुओं से समझा जा सकता है,
* प्रकृति में स्वयं रोगनिवारक क्षमता होती है ।
* रोग इस बात का संकेत करते हैं कि शरीर में विकार हैं ।
प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार रोग शत्रु नहीं मित्र हैं। प्रकृति द्वारा विकार बाहर निकालने का उपक्रम मात्र रोग हैं । जब तीव्र रोग होता है तो इसका अर्थ है,शरीर में विकार की मात्रा काफी अधिक है ।
Suaritma-cihazlari su arıtma sistemleri
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