पहले हम कुत्ते बाँधते थे, अब कुत्ते हमें बाँधेंगे
गोलू के पिताजी एक व्यापारी थे। उनका घर इलाहाबाद में था। घर काफी बड़ा था। बाहर की तरफ बगीचा था। बगीचे
के एक किनारे पर चिड़ियों के रहने के लिए जाली लगी हुई थी, उसमें कई तरह की रंगबिरंगी चिड़ियाँ रहती थीं।
उन चिड़ियों को अच्छा दाना व पानी दिया जाता
था। लेकिन उन्हें उड़ने की स्वतंत्रता नहीं थी।
चिड़ियाँ जाल में बन्द बाहर
की चिड़ियों को स्वतंत्ररूप से उड़ते
हुए देखती रहती
थीं। वह अपना
मन मसोस कर रह जाती थीं।
बाहर की चिड़ियाँ उनके जाल के पास आतीं तब सोचती कि इन्हें तो बैठे-बिठाए
दाना-पानी मिल जाता है और हमें तो खोजने
जाना पड़ता है, लेकिन स्वतंत्र विचरण का भी तो अपना महत्त्व है।
गोलू अक्सर
चिड़ियों को दाना-पानी देने आता था। गोलू को देखकर चिड़ियाँ बहुत
खुश होती थीं।
कारण गोलू उनसे
बात करने की कोशिश करता था। दोनों ही तरफ से एक दूसरे
की भाषा कोई नहीं समझता था किन्तु स्नेह की अभिव्यक्ति हो जाती
थी।
इसी प्रकार उसके यहाँ एक कुत्ता पला हुआ था। उसे बढ़िया
खाना दिया जाता
था। रोज सुबह-शाम या तो गोलू के पापा
उसे टहलाने के लिए ले जाते
थे या नौकर
ले जाता था। जाड़े के दिनों
में कुत्ते के लिए स्वेटर व बिस्तर की व्यवस्था भी रहती थी।
गोलू का एक सहपाठी विनोद
एक दिन उसके
घर आया। गोलू
ने अपना बगीचा
दिखाया। कई तरह के पेड़ लगे हुए थे। विनोद
को बहुत अच्छा
लगा। गोलू ने चिड़ियों का जाल तथा कुत्ते को भी दिखाया।
विनोद ने कहा- ‘गोलू! तुम्हारा घर और बगीचा मुझे
बहुत अच्छा लगा किन्तु चिड़ियों को जाल में बन्द
रखना और कुत्ते को बाँधना अच्छा
नहीं लगा।’
‘क्यों?’
‘सोचो गोलू!
चिड़ियों और कुत्ते में भी तो हमारी तरह जान है, उनकी भी तो अपनी इच्छाएँ हैं। अगर हमें
भी इनकी तरह बाँध दिया जाए तो कैसा लगेगा?’
गोलू कुछ देर तो चुप रहा, फिर बोला-
‘बात तो ठीक कहते हो। यह एक तरह से जानवरों के साथ अत्याचार है।’
विनोद ने गोलू की पीठ थपथपाते हुए कहा-
‘बिल्कुल ठीक कहा मेरे दोस्त!’
गोलू बोला-
‘क्या करें? मेरा
मन तो कर रहा है कि आज ही इन्हें आजाद कर दें,
लेकिन माँ-पिताजी का डर है।’
विनोद ने कहा- ‘कुछ सोचना पड़ेगा। एक आइडिया है। अगले इतवार
को तुम्हारे घर फिर आऊँगा। तुम्हारे घर में कोई कुत्ता बाँधने वाला
दूसरा पट्टा है?’
‘कुत्ता बाँधने वाला एक नया पट्टा पापा इसके
लिए लाए हैं।
किसलिए चाहिए?’
‘ध्यान से सुनो! हम चार्ट
पेपर पर एक बैनर बनाएँगे। उस पर लिखा होगा-‘पहले हम कुत्ते बाँधते थे, अब कुत्ते हमें बाँधेगे।’ इस बैनर
को लेकर मैं खड़ा रहूँगा। तुम कुत्ता बन जाना।
मैं तुम्हारे गले में पट्टा या मोटी रस्सी बाँधकर इस चार्ट पेपर
को लेकर खड़ा भी रहूँगा और मुँह से भी बोलूँगा।’
‘अरे वाह क्या आइडिया है। जब माँ-पिताजी यह देखेंगे तब उनमें चेतना आएगी,
लेकिन बन्धुवर जब गर्मागर्म डाँट पड़ेगी-तब?’
‘अरे दोस्त!
उस डाँट का भी तो एक आनन्द है। अच्छा
अब मैं चलूँ,
अगले रविवार को आऊँगा।’ विनोद
बोला।
‘नहीं चलो,
कुछ नाश्ता कर लो, अगले रविवार को तो पता नहीं नाश्ता मिलेगा या मार।’
दोनो हँसने
लगे, तभी अन्दर
से माँ की आवाज आई- ‘बच्चों! चलो नाश्ता कर लो, बाद में खेलना।’
‘अच्छा माँ!’
गोलू बोला।
दोनों अन्दर
गए। गर्मागर्म पकौड़े बनाए थे माँ ने। दोनों के मुँह से निकला-
‘अरे वाह!’ और खाने लगे पकौड़े।
गोलू ने कहा- ‘माँ! अगले रविवार को गोलू
फिर आएगा, तब क्या खिलाएँगी?’
माँ ने हँसते हुए थप्पड़
दिखाते हुए कहा-
‘मार।’
दोनों बच्चे
एक-दूसरे का मुँह देखने लगे।
गोलू बोला- ‘माँ!
आपने हमारी बातें
सुन लीं क्या?’
‘नहीं मैं तो रसोई में काम में लगी हुई थी, मैंने
तो नहीं सुनीं,
लेकिन तुम लोगों
ने शरारत की कोई नई योजना
बनाई है क्या?’
माँ ने पूछा।
‘नहीं चाची
जी! हम लोग तो बहुत सीधे
बच्चे हैं।’ -विनोद
मासूमियत से बोला।
पिताजी हँसते
हुए बोले- ‘वह तो हमें मालूम
है, जलेबी की तरह सीधे हो।’
सब हँसते हैं।
॰ ॰ ॰
अगले इतवार
को गोलू के घर विनोद आता है। पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार गोलू ने चार्ट
पेपर के एक टुकड़े पर बड़ा-बड़ा लिख लिया
था- ‘पहले हम कुत्ते बाँधते थे, अब कुत्ते हमें
बाँधेंगे।’
दोनों बच्चे
बगीचे में चले गए। सुबह का समय था, धूप अच्छी थी। गोलू
के माता-पिता
व दादा जी बगीचे में बैठे
धूप सेक रहे थे।
विनोद बोला-
‘मौका अच्छा है, तू जल्दी से लिखा हुआ बैनर
और गले में बाँधने का पट्टा
ले आ।’ गोलू
अन्दर की ओर जाने लगा तब विनोद भी पीछे
आ गया।
विनोद ने गोलू के गले में पट्टा बाँधा
और अपने हाथ में बैनर लिया।
गोलू कुत्ते की तरह चैपाया बन गया।
विनोद गोलू
को लेकर बगीचे
में आ गया और हाथ में बैनर लेकर नारे
लगाने लगा- ‘पहले
हम कुत्ते बाँधते थे, अब कुत्ते हमें बाँधेंगे।’
पिताजी बोले-‘यह क्या तमाशा
हो रहा है?’
कुत्ता बना हुआ गोलू बोला-‘भौं-भौं।’
सब हँस पड़े।
विनोद ने कहा- ‘चाचा जी! अगर हम कुत्ते बाँधेंगे तो यही हमारा भविष्य होगा।’
पिताजी बोले-
‘इस बात को तुम सीधे-सीधे
भी तो कह सकते थे।’
गोलू फिर बोला- ‘भौं-भौं।’
अब दादाजी बोले- ‘बात तो ठीक है। हमें
कुत्ते बाँधकर नहीं
रखने चाहिए। उन्हें भी स्वतंत्रता का अधिकार है।’
गोलू उठ खड़ा हुआ। उसने
अपना पट्टा खोल दिया और बोला-
‘और चिड़ियों को भी स्वतंत्ररूप से उड़ने का।’
माँ ने कहा-
‘वह तो ठीक है, लेकिन कुत्ते को यह स्वतंत्राता होगी कि जब चाहे जाए, जब चाहे आ जाए।
इसी प्रकार चिड़ियों का जाल तो खुला रहेगा किन्तु अभी चिड़ियों की आदत स्वतंत्ररूप से उड़ने की नहीं
है, इसलिए वह जब चाहें उड़ें,
जब चाहें पिंजरे में आ जाएँ।
उनके लिए दाना-पानी पिंजरे में पहले की तरह रखा जाएगा। जब वह अच्छी तरह उड़ना सीख जाएँगी, तब स्वयं चली जाएँगी। और हाँ!
पिंजरा टाँड़ पर रखा जाएगा ताकि
बिल्ली-कुत्ता आकर उन्हें न नोचें।’
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