Thursday, August 16, 2018

पहले हम कुत्ते बाँधते थे अब कुत्ते हमें बाँधेगे


पहले हम कुत्ते बाँधते थे अब कुत्ते हमें बाँधेगे

पात्र परिचय
बच्चे
गोलू लगभग चौदह वर्षीय लड़का
विनोदगोलू का दोस्त लगभग चौदह वर्षीय लड़का
स्त्री पात्र
माँगोलू की माँ आयु लगभग चालीस वर्ष
पुरुष पात्र
दादाजीगोलू के दादाजी आयु लगभग साठ वर्ष
पिताजीगोलू के पिताजी आयु लगभग चालीस वर्ष
वेशभूषा
पात्र अभिनय के अनुकूल वेशभूषा
जानवर
कुत्ता
पक्षी
पिंजरे के पक्षी









(पर्दा खुलता है)
(दृश्य)
(स्टेज पर घर के बगीचे का दृश्य है । पीछे की ओर पर्दे लगे हैं, उन पर पेड़ पौधों तथा हरियाली के चित्र हैं । दादी, बाबा और बच्चे बैठे हैं । एक ओर कुत्ता को बँधा है, उसके गले में पट्टा है, वह रस्सी से बँधा है । एक ओर चिड़ियों का बड़ा सा पिंजरा है । उसमें कई चिड़ियाँ हैं । उनके लिए कटोरियों में दाना और पानी रखा है । दो बच्चे खड़े हुए आपस में बातें कर रहे हैं ।)
गोलू    : विनोद! अच्छा हुआ आज तुम मेरे घर आ
       गए । आज खूब मौज मस्ती करेंगे ।
विनोद  : गोलू! तुम्हारा घर और बगीचा मुझे बहुत              अच्छा लगा किन्तु एक ही चीज अच्छी नहीं          लगी ।
गोलू    : क्या?
विनोद  : चिड़ियों को जाल में बन्द रखना और कुत्ते को      बाँधना ।
गोलू    : क्यों?
विनोद  : सोचो गोलू! चिड़ियों और कुत्ते में भी तो              हमारी तरह जान है, उनकी भी तो अपनी इच्छाएँ      हैं । अगर हमें भी इनकी तरह बाँध दिया जाए         तो कैसा लगेगा ?
गोलू    : (कुछ देर चुप रहता है फिर बोलता है) बात तो      ठीक कहते हो । यह एक तरह से जानवरों के         साथ अत्याचार है ।
विनोद  : (गोलू की पीठ थपथपाते हुए) बिल्कुल ठीक         कहा मेरे दोस्त!
गोलू    : क्या करें? मेरा मन तो कर रहा है कि आज ही       इन्हें आजाद कर दें, लेकिन माँपिताजी का डर         है ।
विनोद  : कुछ सोचना पड़ेगा । एक आइडिया है । अगले      इतवार को तुम्हारे घर फिर आऊँगा । तुम्हारे घर      में कोई कुत्ता बाँधने वाला दूसरा पट्टा है ?
गोलू    : कुत्ता बाँधने वाला एक नया पट्टा पापा इसके        लिए लाए हैं । किसलिए चाहिए ?
विनोद  : ध्यान से सुनो! हम चार्ट पेपर पर एक बैनर        बनाएँगे । उस पर लिखा होगा,पहले हम कुत्ते       बाँधते थे, अब कुत्ते हमें बाँधेगे ।इस बैनर को     लेकर मैं खड़ा रहूँगा । तुम कुत्ता बन जाना । मैं     तुम्हारे गले में पट्टा बाँधकर इस चार्ट पेपर को          लेकर खड़ा भी रहूँगा और मुँह से भी बोलूँगा ।
विनोद  : अरे वाह क्या आइडिया है । जब माँपिताजी        यह देखेंगे तब उनमें चेतना आएगी, लेकिन              बन्धुवर जब गर्मागर्म डाँट पड़ेगी, तब ?
विनोद  : अरे दोस्त! उस डाँट का भी तो एक आनन्द
       है । अच्छा अब मैं चलूँ, अगले रविवार को              आऊँगा ।
विनोद  : नहीं चलो, कुछ नाश्ता कर लो, अगले रविवार          को तो पता नहीं नाश्ता मिलेगा या मार ।
(अन्दर से माँ की आवाज आई, बच्चों! चलो नाश्ता कर लो, बाद में खेलना । बच्चे अन्दर जाते हैं ।)
पटपरिवर्तन
(दूसरा दृश्य)
(घर का दृश्य है, मेज पर नाश्ता लगा है ।)
दोनों बच्चे : (एक साथ) अरे वाह पकौड़े ।
(दोनों कुर्सियों पर बैठते हैं ।)
माँ       : अरे हाथ तो धो लो 
गोलू       : हम लोग बगीचे के नल से हाथ धो कर            आए हैं ।
(दोनों खाने लगते हैं ।)
गोलू       : माँ! अगले रविवार को विनोद फिर आएगा,         तब    क्या खिलाएँगी ?
माँ         : (हँसते हुए थप्पड़ दिखाते हुए) मार!
(दोनों बच्चे एकदूसरे का मुँह देखने लगे ।)
गोलू       : माँ! आपने हमारी बातें सुन लीं क्या ?
माँ         : नहीं मैं तो रसोई में काम में लगी हुई थी,         मैंने तो नहीं सुनीं, लेकिन तुम लोगों ने              शरारत की कोई नई    योजना बनाई है
          क्या ?
विनोद     : नहीं चाची जी! हम लोग तो बहुत सीधे            बच्चे हैं ।
पिताजी    : (हँसते हुए) वह तो हमें मालूम है, जलेबी               की तरह सीधे हो । मैं भी बचपन में बहुत              सीधा था । इतना सीधा कि मेरी शरारतों से          सब परेशान हो जाते थे ।
(सब लोग हँस पड़े)
पटपरिवर्तन
(तीसरा दृश्य)
(गोलू के घर का दृश्य है । सुबह का समय है । गोलू के मातापिता व दादा जी बगीचे में बैठे धूप सेक रहे हैं । गोलू चिड़ियों के पिंजरे के पास बैठा हुआ उनसे बात कर रहा है ।)
(विनोद का प्रवेश)
गोलू    : (विनोद को देखते ही खुशी से) अरे वाह            विनोद! तू आ गया, अच्छा हुआ ।
विनोद  : (दादाजी और गोलू के माता, पिता के पैर              छूते हुए) प्रणाम ।
(सब आशीर्वाद देते हैं ।)
विनोद  : (धीरे से गोलू के कान में) मौका अच्छा है, सब      बाहर बैठे हैं । तू जल्दी से लिखा हुआ बैनर और      गले में बाँधने का पट्टा ले आ ।
गोलू    : चलो विनोद अन्दर चलो ।
(दोनों अन्दर जाते हैं ।)
(कुछ देर बाद विनोद और गोलू का प्रवेश । गोलू के गले में पट्टा बँधा है । गोलू कुत्ते की तरह चैपाया बना है । विनोद के एक हाथ में पट्टे की रस्सी है, दूसरे हाथ में बैनर है ।)
विनोद  : पहले हम कुत्ते बाँधते थे, अब कुत्ते हमें              बाँधेंगे ।
पिताजी : यह क्या तमाशा हो रहा है ?
गोलू    : भौंभौं ।
(सब लोग हँसते हैं ।)
विनोद  : चाचा जी! अगर हम कुत्ते बाँधेंगे तो यही              हमारा भविष्य होगा ।
पिताजी : क्या ?
गोलू    : भौंभौं ।
विनोद  : चाचा जी! अगर हम कुत्ते बाँधेंगे तो यही              हमारा भविष्य होगा ।
पिताजी : इस बात को तुम सीधेसीधे भी तो कह सकते       थे ।
गोलू    : भौंभौं ।
दादाजी  : बात तो ठीक है । हमें कुत्ते बाँधकर नहीं              रखने चाहिए । उन्हें भी स्वतंत्रता का अधिकार
       है ।
(गोलू उठ खड़ा हुआ । उसने अपना पट्टा खोल दिया और नाचने लगा ।)
गोलू    : (नाचते हुए) सीधी बात करने का इतना असर           होता । (दोनों हाथ जोड़ कर झुकते हुए) हमें       क्षमा करें, भौंभौं ।
(सब हँस पड़े)
गोलू    : (दादाजी के पैर छूते हुए) पूजनीय दादाजी! एक   निवेदन और करना है ।
दादाजी  : बोलो ।
गोलू    : (नाटकीय तरीके से) चिड़ियों को भी स्वतंत्र रूप      से उड़ने का अधिकार होना चाहिए ।
दादाजी  : (हाथ जोड़ कर नाटकीय तरीके से) जो आज्ञा        गुरुदेव!
(सब हँसते हैं ।)
पिताजी : ठीक है, कुत्ते के गले का पट्टा खोल दो और        चिड़ियों के जाल का पिंजरा भी ।
माँ     : वह तो ठीक है, लेकिन कुत्ते को यह स्वतंत्रता      होगी कि जब चाहे जाए, जब चाहे आ जाए ।         इसी प्रकार चिड़ियों का जाल तो खुला रहेगा
       किन्तु अभी चिड़ियों की आदत स्वतंत्ररूप से          उड़ने की नहीं है, इसलिए वह जब चाहें उड़े, जब       चाहें पिंजरे में आ जाएँ । उनके लिए दानापानी           पिंजरे में पहले की तरह रखा जाएगा ।
       जब वह अच्छी तरह उड़ना सीख जाएँगी,            तब उनकी इच्छा होगी तो चली जाएँगी । और        हाँ, पिंजरे का दरवाजा रात को जरूर बन्द कर        दिया जाए अन्यथा बिल्ली महारानी का डर             रहेगा ।
विनोद  : चाचीजी! बिल्ली महारानी का डर तो दिन में         भी    है । इसलिए अच्छा होगा कि पिंजरे का          दरवाजा तो खुला रहे किंतु पिंजरा टाँड़                 पर रखा जाएगा ताकि बिल्लीकुत्ता आकर उन्हें      न नोचें ।
माँ     : शाबाश मेरे बच्चे! बहुत अच्छा सोचा है ।
(दादाजी ने कुत्ते का पट्टा खोल दिया और पिताजी ने पक्षियों का पिंजरा । पक्षी निकल कर सबकी गोद में,
कन्धे पर बैठने लगे । कुत्ता भी उछलकूद करने
लगा ।)
माँ     : (भरे गले से) बेटा विनोद! कितना अच्छा लग           रहा है । इस मुफ्त की रौनक से अभी तक हम          कितने दूर थे ।
(पटाक्षेप)


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