सारे घर के कपड़े मैं
धोती हूँ
पात्र परिचय
बच्चे
सुपर्णा–लगभग सोलह वर्षीया लड़की
स्त्री पात्र
मौसी–सुपर्णा की मौसी आयु लगभग पैंतालीस वर्ष
माँ–सुपर्णा की माँ आयु लगभग चालीस वर्ष
वेशभूषा
पात्र अभिनय के अनुकूल
वेशभूषा
(पर्दा खुलता है)
(दृश्य)
(स्टेज पर घर का दृश्य
है । एक तखत पड़ा है व कुछ कुर्सियाँ पड़ी हैं । दीवार पर चित्र लगे हैं । मौसी तखत पर
लेटी हैं, पास ही उनका पर्स रखा है । माँ व सुपर्णा पास पड़ी कुर्सियों पर बैठी हैं
।)
मौसी : सुबह–सुबह जल्दी–जल्दी घर का काम निपटाने में थक गई । सोचा जल्दी तुम्हारे घर चलूँ ।
माँ : दीदी! कभी–कभी रुक भी जाया करो
। एक ही शहर में हम दोनों के घर होने से मिलना तो हो जाता है, लेकिन रुकना नहीं होता
है ।
सुपर्णा : हाँ मौसी! मामाजी आते हैं तो कम से कम एक दिन तो
रुकते ही हैं ।
मौसी : अरे सुनीता! कोई बात नहीं, मिलना तो हो जाता है
न । सुपर्णा! आज तुम्हारी छुट्टी है क्या?
सुपर्णा : मौसी! आज हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव है ।
समारोह शाम को होगा । मैंने भी नाटक में भाग लिया है, लेकिन देर से जाना होगा ।
मौसी : अच्छा है, तुम पढ़ाई में भी अच्छी हो और अन्य प्रतियोगिताओं
में भी भाग लेती हो । यह अच्छी बात है ।
माँ : दीदी! सुपर्णा को समझाइए । सोलह वर्ष की हो गई
है । कुछ घर का काम–काज भी सीखे । मैं मानती हूँ कि पढ़ाई में अच्छी
है, लेकिन घर का काम भी तो थोड़ा–बहुत आना चाहिए ।
मौसी : तुम ठीक कहती हो, लेकिन आजकल बच्चों को पढ़ाई से
समय तो मिलता नहीं है ।
माँ : दीदी! आपकी बात सही है लेकिन कोई चैबीसों घंटे
पढ़ता तो रहता नहीं है । कभी जब पढ़ाई से मन ऊबे, तब दस–पन्द्रह मिनट कोई काम कर ले । इस तरह धीरे–धीरे घर का काम आ जाएगा
।
मौसी : सुपर्णा! माँ ठीक कहती हैं, जब मन हो थोड़ा–थोड़ा घर का काम सीख लो ।
(माँ मौसी के लिए नाश्ता
लेने चली गर्इं ।)
सुपर्णा : मौसी! सारे घर के कपड़े तो मैं ही धोती हूँ ।
मौसी : सबके कपड़े तुम धोती हो ?
सुपर्णा : हाँ मौसी! माँ बाथरूम में कपड़े डाल देती हैं, मैं
धो देती हूँ फिर माँ सुखा देती हैं ।
मौसी : तुम केवल अपने कपड़े धोती हो कि सबके ?
सुपर्णा : केवल अपने ही नहीं, सबके कपड़ों के साथ ही घर की
चादरें व पर्दे आदि भी मैं ही धोती हूँ ।
(मौसी चुप रह गईं, उन्हें
सुनीता पर बहुत गुस्सा आ रहा था । तभी सुनीता नाश्ता ले कर आती है । )
मौसी : (गुस्से से) नहीं करना है मुझे नाश्ता–वाश्ता । मैं जा रही हूँ अपने घर । अब कभी नहीं आऊँगी ।
(कहते हुए उठ खड़ी होती
हैं ।)
माँ : (मौसी को पकड़ कर बैठाते हुए) दीदी! क्या गलती हो
गई मुझसे ?
मौसी : तुम्हें शर्म नहीं आती इतनी छोटी सी लड़की से सारे
घर के कपड़े धुलवाती हो, चादर और पर्दे तक धुलवाती हो ।
माँ : (हँसते हुए) अच्छा अब समझ में आया तुम्हारे गुस्से
का कारण ।
मौसी : सुनीता! मुझे तुम्हारा हँसना अच्छा नहीं लग रहा
है ।
माँ :(हँसते हुए) दीदी! सुनो तो ।
मौसी : एक तरफ तो तुम कहती हो कि सुपर्णा घर का कुछ काम
नहीं करती है । दूसरी तरफ उससे सारे घर के कपड़े धुलवाती हो ।
माँ : दीदी! हमने फुली–ऑटोमेटिक–वाशिंग–मशीन खरीद ली है । मैं
उसमें कपड़े डाल देती हूँ । सुपर्णा डिटर्जेंट
डाल कर स्विच–ऑन कर देती है । जब कपड़े धुल जाते हैं, तब मशीन
आवाज दे देती है । मैं कपड़े सुखा देती हूँ ।
मौसी : अच्छा तो ये बात है । (कहते हुए मौसी भी हँस पड़ीं
।) अरे सुपर्णा!
(सुपर्णा तब तक कमरे
से बाहर चली गई थी ।)
(पटाक्षेप)
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