Thursday, August 16, 2018

सारे घर के कपड़े मैं धोती हूँ


सारे घर के कपड़े मैं धोती हूँ

पात्र परिचय
बच्चे
सुपर्णालगभग सोलह वर्षीया लड़की
स्त्री पात्र
मौसीसुपर्णा की मौसी आयु लगभग पैंतालीस वर्ष
माँसुपर्णा की माँ आयु लगभग चालीस वर्ष
वेशभूषा
पात्र अभिनय के अनुकूल वेशभूषा






(पर्दा खुलता है)
(दृश्य)
(स्टेज पर घर का दृश्य है । एक तखत पड़ा है व कुछ कुर्सियाँ पड़ी हैं । दीवार पर चित्र लगे हैं । मौसी तखत पर लेटी हैं, पास ही उनका पर्स रखा है । माँ व सुपर्णा पास पड़ी कुर्सियों पर बैठी हैं ।)
मौसी   : सुबहसुबह जल्दीजल्दी घर का काम निपटाने में थक गई । सोचा जल्दी तुम्हारे घर चलूँ ।
माँ  : दीदी! कभीकभी रुक भी जाया करो । एक ही शहर में हम दोनों के घर होने से मिलना तो हो जाता है, लेकिन रुकना नहीं होता है ।
सुपर्णा  : हाँ मौसी! मामाजी आते हैं तो कम से कम एक दिन तो रुकते ही हैं ।
मौसी   : अरे सुनीता! कोई बात नहीं, मिलना तो हो जाता है न । सुपर्णा! आज तुम्हारी छुट्टी है क्या?
सुपर्णा  : मौसी! आज हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव है । समारोह शाम को होगा । मैंने भी नाटक में भाग लिया है, लेकिन देर से जाना होगा ।
मौसी   : अच्छा है, तुम पढ़ाई में भी अच्छी हो और अन्य प्रतियोगिताओं में भी भाग लेती हो । यह अच्छी बात है ।
माँ  : दीदी! सुपर्णा को समझाइए । सोलह वर्ष की हो गई है । कुछ घर का कामकाज भी सीखे । मैं मानती हूँ कि पढ़ाई में अच्छी है, लेकिन घर का काम भी तो थोड़ाबहुत आना चाहिए ।
मौसी   : तुम ठीक कहती हो, लेकिन आजकल बच्चों को पढ़ाई से समय तो मिलता नहीं है ।
माँ  : दीदी! आपकी बात सही है लेकिन कोई चैबीसों घंटे पढ़ता तो रहता नहीं है । कभी जब पढ़ाई से मन ऊबे, तब दसपन्द्रह मिनट कोई काम कर ले । इस तरह धीरेधीरे घर का काम आ जाएगा ।
मौसी   : सुपर्णा! माँ ठीक कहती हैं, जब मन हो थोड़ाथोड़ा घर का काम सीख लो ।
(माँ मौसी के लिए नाश्ता लेने चली गर्इं ।)
सुपर्णा  : मौसी! सारे घर के कपड़े तो मैं ही धोती हूँ ।
मौसी   : सबके कपड़े तुम धोती हो ?
सुपर्णा  : हाँ मौसी! माँ बाथरूम में कपड़े डाल देती हैं, मैं धो देती हूँ फिर माँ सुखा देती हैं ।
मौसी   : तुम केवल अपने कपड़े धोती हो कि सबके ?
सुपर्णा  : केवल अपने ही नहीं, सबके कपड़ों के साथ ही घर की चादरें व पर्दे आदि भी मैं ही धोती हूँ ।
(मौसी चुप रह गईं, उन्हें सुनीता पर बहुत गुस्सा आ रहा था । तभी सुनीता नाश्ता ले कर आती है । )
मौसी   : (गुस्से से) नहीं करना है मुझे नाश्तावाश्ता । मैं जा रही हूँ अपने घर । अब कभी नहीं आऊँगी ।
(कहते हुए उठ खड़ी होती हैं ।)
माँ  : (मौसी को पकड़ कर बैठाते हुए) दीदी! क्या गलती हो गई मुझसे ?
मौसी   : तुम्हें शर्म नहीं आती इतनी छोटी सी लड़की से सारे घर के कपड़े धुलवाती हो, चादर और पर्दे तक धुलवाती हो ।
माँ  : (हँसते हुए) अच्छा अब समझ में आया तुम्हारे गुस्से का कारण ।
मौसी   : सुनीता! मुझे तुम्हारा हँसना अच्छा नहीं लग रहा है ।
माँ  :(हँसते हुए) दीदी! सुनो तो ।
मौसी   : एक तरफ तो तुम कहती हो कि सुपर्णा घर का कुछ काम नहीं करती है । दूसरी तरफ उससे सारे घर के कपड़े धुलवाती हो ।
माँ  : दीदी! हमने फुलीऑटोमेटिकवाशिंगमशीन खरीद ली है । मैं उसमें कपड़े डाल देती हूँ । सुपर्णा डिटर्जेंट डाल कर स्विचऑन कर देती है । जब कपड़े धुल जाते हैं, तब मशीन आवाज दे देती है । मैं कपड़े सुखा देती हूँ ।
मौसी   : अच्छा तो ये बात है । (कहते हुए मौसी भी हँस पड़ीं ।) अरे सुपर्णा!
(सुपर्णा तब तक कमरे से बाहर चली गई थी ।)
(पटाक्षेप)


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