Thursday, August 16, 2018

कुछ प्राणी आए नोच-खसोट कर चले गए


कुछ प्राणी आए नोच-खसोट कर चले गए
   उमा और आदर्श दोनों ही बच्चे आज बहुत खुश थे। गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थीं। दिनभर मौजमस्ती और उछलकूद।
   उनकी बुआ का फोन आया-वह अपने बच्चों आनन्द और स्मिता के साथ कुछ दिनों के लिए रही हैं । बच्चों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
   उमा ने कहा- ‘भइया! अब तो दिनभर धमाचैकड़ी होगी। कुछ योजनाएँ बना लो, जिससे समय आनन्द से बीते।
   आदर्श बोला- ‘तुमने तो मेरे मुँह की बात छीन ली। कुछ नई शरारतें सोचनी पड़ेंगी।
   और....दो दिन बाद उनकी बुआ अपने बच्चों के साथ गईं। उनके बच्चे भी उमा और आदर्श की हमउम्र ही थे। उमा और आदर्श उनके आने पर खुशी से चिल्लाने लगे।
   सबने खाना खाया, तब तक धूप तेज हो गई थी। माँ बोलीं- बच्चों! तुम लोग अन्दर बैठ कर खेलो। बाहर शाम को निकलना, तब पार्क में जा कर खेलना।
   आदर्श नाटकीय अन्दाज में बोला- ‘जो आज्ञा माता जी!’
   सब हँस पड़े। बच्चे अपने कमरे में चले गए। कमरे का रूप बदला हुआ था। माँ ने सबके लिए जमीन पर बिस्तर लगा दिया था। सब बिस्तर पर बैठकर बातें करने लगे। आनन्द और स्मिता थके होने के कारण सो गए। आदर्श और उमा भी सो गए।
        शाम को पाँच बजे माँ ने आवाज दी, तब सब उठे। माँ ने कहा- ‘चलो लस्सी बनाई है, पी लो।
   आनन्द खुशी से बोला- ‘अरे वाह लस्सी! लस्सी तो हम लोगों को बहुत पसन्द है।
   सब बच्चों ने कमरे के बाहर आकर लस्सी पी। उसके बाद आदर्श बोला- ‘माँ! हम लोग पार्क में खेलने जाएँ?’
हाँ जाओ!’
   सब बच्चे खेलने चले गए। जब खेल कर लौटे तो बुआ जी बोलीं- ‘चलो खाना खा लो।
   खाने में आज इडली-डोसा बना है। बच्चे बहुत खुश हो गए। उमा बोली- ‘माँ! रोज इडली-डोसा क्यों नहीं बनाती हो?’
   माँ हँसते हुए बोलीं- ‘अगर रोज-रोज इडली-डोसा बनेगा, तब उससे ऊब जाओगे।
   खा-पीकर बच्चे अपने कमरे में चले गए। माँ आईं, उन्होंने कहा- ‘चलो मच्छरदानी लगा दें।
   उमा हाथ लहराते हुए बोली- ‘माते! घी दानी में घी रहता है, तब मच्छरदानी में भी तो मच्छर ही रहेंगे न। हम मच्छर नहीं है इसलिए हम मच्छरदानी नहीं लगाएँगे।
   माँ ने मुस्कराते हुए उमा का कान पकड़ते हुए कहा- ‘अच्छा बच्चू! रोज तो मच्छरदानी लगाती हो, तब मच्छर नहीं बनती हो।
   स्मिता ने कहा- ‘अरे मामी! अभी तो खेलेंगे। रात में पंखा चला लेंगे, तब मच्छर नहीं काटेंगे। प्लीज! मच्छरदानी मत लगाइए।
   माँ चली गईं। बच्चे कैरमबोर्ड खेलने लगे। जब आनन्द को जम्हाई आने लगी, तब सब बच्चे लाइट बन्द करके सो गए।
               
   बच्चों को रातभर मच्छरों ने खूब काटा। सब बच्चे बहुत परेशान थे। सुबह बच्चे कमरे के बाहर आए।
   आनन्द ने कहा- ‘मामा जी! आज रात को हमारे कमरे में कुछ प्राणी आए और हमें नोच-खसोट कर चले गए।
   मामाजी सहित सब लोगों के मुँह से एक साथ निकला-        क्या?’ और सब एक साथ उठ खड़े हुए। सब लोग बच्चों के पास आकर उन्हें सहलाने लगे।
   माँ कुछ गुस्से में बोलीं- ‘यह अब बता रहे हो, कौन आया घर में? तभी क्यों नहीं चिल्लाये?’
   आनन्द मुस्कराते हुए बोला-‘आप लोग परेशान हों, वह नोचने-खसोटने वाले प्राणी मच्छर थे।
   माँ गुस्से में बोलीं- ‘मच्छरों ने काटा। तुम लोग तो कह रहे थे कि कुछ लोग अन्दर आकर नोच-खसोट गए।
   आदर्श माँ से लिपटते हुए बोला- ‘प्यारी माँ!’ आनन्द के शब्द थे- ‘आज रात को हमारे कमरे में कुछ प्राणी आए और हमें नोच-खसोट कर चले गए। मच्छर भी तो प्राणी ही हैं न।
   माँ के साथ ही सब लोग हँस पड़े। माँ आनन्द के कान खींचते हुए बोलीं- ‘शरारती कहीं के हम लोग तो घबरा ही गए थे।
   आनन्द ने कहा- ‘धन्यवाद मामी जी! आपने मुझे शरारती कहा। बहुत अच्छा लगा।
   वह पैर छूते हुए बोला-‘आशीर्वाद दीजिए, इसी प्रकार शरारत करते रहें।
   माँ ने आनन्द के सिर पर हाथ रखा। अन्य बच्चों ने भी माँ और अन्य बड़े लोगों के पैर छुए और कहा- ‘हमें भी शरारत करने का आशीर्वाद दीजिए। सबने हँसते हुए सब बच्चों के सिर पर हाथ रखा।


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