सब का प्रिय होऊँ
प्रियं मां कृणु देवेषु, प्रिय राजसु मा कृणु ।
प्रियं सर्वस्य पश्यत उतशूद्र उतार्ये । ।
अथर्ववेद 19/62/1
हे प्रभो! मुझे देवों(ब्राह्मणों) में प्यारा करो । मुझे राजाओं में प्यारा करो । सब देखने वालों का प्यारा करो । शूद्रों में और आर्यों में भी मुझे प्यारा बनाओ । (यहाँ पर जो वर्णों का वर्णन है, वह कर्मानुसार है, जन्म से नहीं ।)
कानों से मंगलमय सुनें
सुश्रुतौ कर्णौ भद्रश्रुतौ कर्णौ भद्रं श्लोकं श्रूयासम् । ।
अथर्ववेद 16/2/4
मेरे दोनों कान शीघ्र सुनने वाले हों । कानों से मंगलमय श्लोकों को सुना करूँ ।
मैं आनिन्दित होऊँ
अयुतोऽहमयुतो मा आत्मायुतं मे चक्षुरयुतं मे श्रोत्रमयुतो मे प्राणोयुतो मेऽपानोऽयुतो मे व्यानोऽयुतोऽहं सर्व: । ।
अथर्ववेद 19/51/1
हे परमात्मा! मैं आनिन्दित होऊँ । मेरी आत्मा आनिन्दित हो । मेरी आँखें आनिन्दित हों । मेरे कान आनिन्दित हों । मेरी प्राण, अपान और व्यान वायु भी आनिन्दित हो । मैं पूरी तरह अनिन्दित होऊँ, अर्थात् आत्मोन्नति करूँ ।
परमात्मा की अर्चना करो
अर्चत् प्रार्चत प्रिय मेधासो अर्चत ।
अर्चन्तु पुत्रका उत पुरं न धृष्णवर्चत् । ।
अथर्ववेद 20/92/5
हे प्रिय हितकारिणी बुद्धि वाले पुरुषों! निर्भय हो कर उस परमेश्वर की अच्छी प्रकार से अर्चना करो । गुणी सन्तानें उसका पूजन करें ।
तू ही हमारा माता–पिता है
त्वं हि न: पिता वसो त्वं माता शतक्रतो बभूविथ ।
अधा ते सुम्नमीमहे । ।
अथर्ववेद 20/108/2
हे वसु! शतक्रतो अर्थात् सैकड़ों कर्म वाले परमेश्वर! तू ही हमारा पिता और तू ही माता है । इसलिए तेरे सुख को हम माँगते हैं ।
मैं भी तेरे प्रकाश से प्रकाशमान होऊँ
शुक्रोऽसि भ्राजोऽसि ।
स यथा त्वं भ्राजता भ्राजोऽस्येवाहं भ्राजता भ्राज्यासम् । ।
अथर्ववेद 17/1/20
हे परमेश्वर! तु शुद्ध, स्वच्छ, निर्मल है । तू प्रकाशमान है । अत: तू जैसे प्रकाशमान स्वरूप के साथ प्रकाशमान है । वैसे ही मैं प्रकाशमान स्वरूप के साथ प्रकाशमान रहूँ ।
हमारी सदाशा पूर्ण हो
आकूतिं देवीं सुभगां पुरो दधे चित्तस्य माता सुहवा नो अस्तु ।
यामाशामेमि केवली सा मे अस्तु विदेयमेनां मनसि प्रविष्टाम् । ।
अथर्ववेद 19/4/2
दिव्य गुण वाली, बड़े ऐश्वर्यवाली संकल्पशक्ति को आगे धरता हूँ । चित्तज्ञान की वह माता हमारे लिए सहज ही बुलाने योग्य हो । जिस अच्छी आशा की कामना करूँ, वह पूर्ण हो । मेरे लिए सेवनीय हो । मन में प्रवेश की हुई इस आशा को मैं पाऊँ ।
परमात्मा हमारा सखा है
आ त्वा सखाय: सख्या वदृत्युस्तिर: पुरू चिदर्णवां जगम्या: ।
पितुर्नपातमा दधीत वेधा अस्मिन्क्षये प्रतरां दीद्यान: । ।
सामवेद
हे परमेश्वर! अनुकूल रहने वाले भक्त लोग आपके साथ मित्र के तुल्य बर्तें । आप समस्त अन्तरिक्ष में अदृश्य रूप से व्याप रहे हो । आप हर पिता को सन्तान सुख दें । आप ही इस जगत में अनन्त प्रकाशमान हैं ।
वाणी में मिठास
जिह्वाया अग्रे मधु मे जिह्वामूले मधूलकम् ।
भयेदह क्रतावसो मय चित्तमुपायसि । ।
अथर्ववेद 1/34/2
मेरी जिह्वा के अग्रभाग में मिठास हो और जिह्वा के मूल में और भी अधिक मिठास हो या मिठास का झरना ही हो । हे मधु! तू अवश्य ही मेरे प्रत्येक कर्म में, चित्त में विद्यमान रह ।
हम मेधावी हों
यां मेधां देवगणा: पितरश्चोपासते ।
तया मामद्य मेधयाग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा ।
यजुर्वेद 32/14
जिस परमपवित्र मेधा की देवगण व पितर उपासना करते हैं । हे अग्निरूप परमात्मा! आज तुम उसी पवित्र मेधा से मुझे भी मेधावी बनाओ ।
परमात्मा के गुणों का समावेश
तेजोऽसि तेजो मयि धेहि वीर्यमसि वीर्यं मयि धेहि बलमसि
बलं मयि धेह्योजोऽस्योजो मयि धेहि मन्युरसि मन्युं मयिधेहि ।
सहोऽसि सहो मयि धेहि । ।
यजुर्वेद 19/9
हे परमात्मा! तुम तेज हो, मुझमें तेज भरो । तुम वीर्य हो, मुझमें वीर्य भरो । तुम बल हो, मुझमें बल भरो । तुम ओज हो, मुझमें ओज भरो । तुम मन्यु हो, मुझमें मन्यु अर्थात् क्रोध (आवश्यकता पड़ने पर थोड़ा क्रोध करना भी आवश्यक है ।) भरो । तुम शत्रु को अभिभूत करने वाले बल हो, मुझमें सह भरो ।
मैं कीर्तिमान होऊँ
यशो मा द्यावापृथिवी यशो मेन्दे्रबृहस्पतिं ।
यशो भगस्य विन्दतु यशो मा प्रतिमुच्यताम् ।
यशसा3स्या: संसदोऽहं प्रवदिता स्याम । ।
सामवेद
हे परमेश्वर मुझे द्युलोक और पृथ्वीलोक कीर्ति प्राप्त करवाएँ । मुझे राजा और विद्वान पुरुष यश को प्राप्त करवाएँ । मुझे ऐश्वर्य का सुख प्राप्त हो । यश मुझे कभी न छोड़े । कीर्तिवाला मैं इस विद्वत्सभा में सुन्दर बोलने वाला होऊँ ।
परमात्मा वाणी का प्रेरक है
अज्ञानो वाचमिस्यसि पवमान विधर्मणि ।
क्रन्दं देवो न सूर्य; । ।
सामवेद
हे पवित्रस्वरूप परमात्मन्! उदित सूर्यदेव की तरह अन्त:करण में वैदिक शब्दों को उत्पन्न करते हुए आप वाणी को प्रेरित करते हैं । अर्थात् जैसे प्रात:काल होते ही उदित सूर्य प्रकाश फैलाता है, उसी प्रकार परमात्मा सृष्टि प्रारम्भ होते ही ऋषियों के पवित्र अन्त:करण में वेदोपदेश करके उनकी वाणी को प्रेरित करता
है ।
प्रियं मां कृणु देवेषु, प्रिय राजसु मा कृणु ।
प्रियं सर्वस्य पश्यत उतशूद्र उतार्ये । ।
अथर्ववेद 19/62/1
हे प्रभो! मुझे देवों(ब्राह्मणों) में प्यारा करो । मुझे राजाओं में प्यारा करो । सब देखने वालों का प्यारा करो । शूद्रों में और आर्यों में भी मुझे प्यारा बनाओ । (यहाँ पर जो वर्णों का वर्णन है, वह कर्मानुसार है, जन्म से नहीं ।)
कानों से मंगलमय सुनें
सुश्रुतौ कर्णौ भद्रश्रुतौ कर्णौ भद्रं श्लोकं श्रूयासम् । ।
अथर्ववेद 16/2/4
मेरे दोनों कान शीघ्र सुनने वाले हों । कानों से मंगलमय श्लोकों को सुना करूँ ।
मैं आनिन्दित होऊँ
अयुतोऽहमयुतो मा आत्मायुतं मे चक्षुरयुतं मे श्रोत्रमयुतो मे प्राणोयुतो मेऽपानोऽयुतो मे व्यानोऽयुतोऽहं सर्व: । ।
अथर्ववेद 19/51/1
हे परमात्मा! मैं आनिन्दित होऊँ । मेरी आत्मा आनिन्दित हो । मेरी आँखें आनिन्दित हों । मेरे कान आनिन्दित हों । मेरी प्राण, अपान और व्यान वायु भी आनिन्दित हो । मैं पूरी तरह अनिन्दित होऊँ, अर्थात् आत्मोन्नति करूँ ।
परमात्मा की अर्चना करो
अर्चत् प्रार्चत प्रिय मेधासो अर्चत ।
अर्चन्तु पुत्रका उत पुरं न धृष्णवर्चत् । ।
अथर्ववेद 20/92/5
हे प्रिय हितकारिणी बुद्धि वाले पुरुषों! निर्भय हो कर उस परमेश्वर की अच्छी प्रकार से अर्चना करो । गुणी सन्तानें उसका पूजन करें ।
तू ही हमारा माता–पिता है
त्वं हि न: पिता वसो त्वं माता शतक्रतो बभूविथ ।
अधा ते सुम्नमीमहे । ।
अथर्ववेद 20/108/2
हे वसु! शतक्रतो अर्थात् सैकड़ों कर्म वाले परमेश्वर! तू ही हमारा पिता और तू ही माता है । इसलिए तेरे सुख को हम माँगते हैं ।
मैं भी तेरे प्रकाश से प्रकाशमान होऊँ
शुक्रोऽसि भ्राजोऽसि ।
स यथा त्वं भ्राजता भ्राजोऽस्येवाहं भ्राजता भ्राज्यासम् । ।
अथर्ववेद 17/1/20
हे परमेश्वर! तु शुद्ध, स्वच्छ, निर्मल है । तू प्रकाशमान है । अत: तू जैसे प्रकाशमान स्वरूप के साथ प्रकाशमान है । वैसे ही मैं प्रकाशमान स्वरूप के साथ प्रकाशमान रहूँ ।
हमारी सदाशा पूर्ण हो
आकूतिं देवीं सुभगां पुरो दधे चित्तस्य माता सुहवा नो अस्तु ।
यामाशामेमि केवली सा मे अस्तु विदेयमेनां मनसि प्रविष्टाम् । ।
अथर्ववेद 19/4/2
दिव्य गुण वाली, बड़े ऐश्वर्यवाली संकल्पशक्ति को आगे धरता हूँ । चित्तज्ञान की वह माता हमारे लिए सहज ही बुलाने योग्य हो । जिस अच्छी आशा की कामना करूँ, वह पूर्ण हो । मेरे लिए सेवनीय हो । मन में प्रवेश की हुई इस आशा को मैं पाऊँ ।
परमात्मा हमारा सखा है
आ त्वा सखाय: सख्या वदृत्युस्तिर: पुरू चिदर्णवां जगम्या: ।
पितुर्नपातमा दधीत वेधा अस्मिन्क्षये प्रतरां दीद्यान: । ।
सामवेद
हे परमेश्वर! अनुकूल रहने वाले भक्त लोग आपके साथ मित्र के तुल्य बर्तें । आप समस्त अन्तरिक्ष में अदृश्य रूप से व्याप रहे हो । आप हर पिता को सन्तान सुख दें । आप ही इस जगत में अनन्त प्रकाशमान हैं ।
वाणी में मिठास
जिह्वाया अग्रे मधु मे जिह्वामूले मधूलकम् ।
भयेदह क्रतावसो मय चित्तमुपायसि । ।
अथर्ववेद 1/34/2
मेरी जिह्वा के अग्रभाग में मिठास हो और जिह्वा के मूल में और भी अधिक मिठास हो या मिठास का झरना ही हो । हे मधु! तू अवश्य ही मेरे प्रत्येक कर्म में, चित्त में विद्यमान रह ।
हम मेधावी हों
यां मेधां देवगणा: पितरश्चोपासते ।
तया मामद्य मेधयाग्ने मेधाविनं कुरु स्वाहा ।
यजुर्वेद 32/14
जिस परमपवित्र मेधा की देवगण व पितर उपासना करते हैं । हे अग्निरूप परमात्मा! आज तुम उसी पवित्र मेधा से मुझे भी मेधावी बनाओ ।
परमात्मा के गुणों का समावेश
तेजोऽसि तेजो मयि धेहि वीर्यमसि वीर्यं मयि धेहि बलमसि
बलं मयि धेह्योजोऽस्योजो मयि धेहि मन्युरसि मन्युं मयिधेहि ।
सहोऽसि सहो मयि धेहि । ।
यजुर्वेद 19/9
हे परमात्मा! तुम तेज हो, मुझमें तेज भरो । तुम वीर्य हो, मुझमें वीर्य भरो । तुम बल हो, मुझमें बल भरो । तुम ओज हो, मुझमें ओज भरो । तुम मन्यु हो, मुझमें मन्यु अर्थात् क्रोध (आवश्यकता पड़ने पर थोड़ा क्रोध करना भी आवश्यक है ।) भरो । तुम शत्रु को अभिभूत करने वाले बल हो, मुझमें सह भरो ।
मैं कीर्तिमान होऊँ
यशो मा द्यावापृथिवी यशो मेन्दे्रबृहस्पतिं ।
यशो भगस्य विन्दतु यशो मा प्रतिमुच्यताम् ।
यशसा3स्या: संसदोऽहं प्रवदिता स्याम । ।
सामवेद
हे परमेश्वर मुझे द्युलोक और पृथ्वीलोक कीर्ति प्राप्त करवाएँ । मुझे राजा और विद्वान पुरुष यश को प्राप्त करवाएँ । मुझे ऐश्वर्य का सुख प्राप्त हो । यश मुझे कभी न छोड़े । कीर्तिवाला मैं इस विद्वत्सभा में सुन्दर बोलने वाला होऊँ ।
परमात्मा वाणी का प्रेरक है
अज्ञानो वाचमिस्यसि पवमान विधर्मणि ।
क्रन्दं देवो न सूर्य; । ।
सामवेद
हे पवित्रस्वरूप परमात्मन्! उदित सूर्यदेव की तरह अन्त:करण में वैदिक शब्दों को उत्पन्न करते हुए आप वाणी को प्रेरित करते हैं । अर्थात् जैसे प्रात:काल होते ही उदित सूर्य प्रकाश फैलाता है, उसी प्रकार परमात्मा सृष्टि प्रारम्भ होते ही ऋषियों के पवित्र अन्त:करण में वेदोपदेश करके उनकी वाणी को प्रेरित करता
है ।
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