माता–पिता के लिए पाठशाला
पात्र परिचय
बच्चे
सन्तोष
आरती
अंकित
रीता
अपरिचिता
बसन्त
ज्ञान
नितिन
नवनीत
स्त्री पात्र
नानी–सन्तोष की नानी
सुरेखा जी–सन्तोष की माँ आयु लगभग चालीस वर्ष
प्रभा जी–नितिन की माँ आयु लगभग चालीस वर्ष
ज्योति जी और रत्ना
जी
पुरुष पात्र
विश्वेश्वर जी–नितिन के पिता जी आयु लगभग चालीस वर्ष
अजय जी–सन्तोष के पिता जी आयु लगभग चालीस वर्ष
देवेन्द्र जी
वेशभूषा
पात्र अभिनय के अनुकूल
वेशभूषा
(पर्दा खुलता है)
(प्रथम दृश्य)
(स्टेज पर घर का दृश्य
है । सन्तोष और उसके माता, पिता बैठे हैं । नानी तखत पर लेटी हैं ।)
सन्तोष : माँ! आप लोग नाम लिखना सीख लीजिए ।
माँ : क्या बक रही हो? हम लोग नाम लिखना नहीं जानते ।
सन्तोष :(मुस्कराते हुए) कहाँ जानती हैं नाम लिखना । जब
देखो आप लोग कहते हैं– बेटी, मोबाइल में नाम फीड कर दो ।
नानी :(ताली बजाते हुए उठ बैठीं) वाह बेटी! वाह, आखिर
नातिन किसकी है । क्या बात कही है–आप लोग नाम लिखना सीख
लीजिए ।
(सन्तोष जा कर नानी
से लिपट जाती है ।)
नानी : बिटिया! मुझे भी नाम लिखना सिखाएगी ?
सन्तोष : जरूर सिखाऊँगी, लेकिन अपने बच्चों से भी कह दीजिए
कि वह भी मोबाइल में नाम लिखना सीखें ।
नानी : अजय और सुरेखा! तुम लोग भी मोबाइल में नाम लिखना
सीखो, मैं भी सीखूँगी ।
पिताजी : (नाटकीय तरीके से हाथ जोड़ कर और सिर झुका कर) जो
आज्ञा माँजी!
(सब हँसने लगे)
माँ : मुझे नहीं सीखना है मोबाइल में नाम–वाम लिखना, मैं अनपढ़ ही भली ।
नानी : सुरेखा! क्यों नहीं सीखेगी मोबाइल में नाम लिखना,
सीख ले, मैं भी सीखँूगी ।
माँ : (भुनभुनाते हुए) ठीक है माँ!
सन्तोष : नानी! एक सप्ताह बाद हम लोगों की गर्मियों की छुट्टियाँ
हो जाएँगी । हम लोगों के पास खेलने–कूदने के बाद भी काफी
समय बचेगा । मैं सोच रही हूँ कि इन्हीं छुट्टियों में हम बड़े लोगों को पढ़ना–लिखना सिखा दें ।
नानी : अच्छा विचार है, जब शाम को पार्क में खेलने जाना
तब अन्य बच्चों से भी राय कर लेना ।
सन्तोष : अच्छी बात है । सभी अभिभावकगण नई तकनीक से सुपरिचित
हो जाएँ तो अच्छा ही है ।
पट–परिवर्तन
(दूसरा दृश्य)
(स्टेज पर पार्क का
दृश्य है । पीछे के पर्दे पर पेड़ पौधो के चित्र हैं । कुछ बच्चे स्टेज पर खेल रहे हैं
। कुछ घेरा बना कर बैठे हैं । स्टेज पर दो बेंचें पड़ी हैं, उन पर कुछ लोग बैठे हैं
।)
सन्तोष : दोस्तों! तुम लोगों को मालूम ही है कि एक सप्ताह
बाद हम लोगों की छुट्टियाँ हो जाएँगी ।
(खेलने वाले बच्चे भी
आ कर बैठ गए ।)
हम लोगों के पास खेलने–कूदने के बाद भी काफी समय बचेगा । मैं सोच रही हूँ कि माता–पिता के लिए पाठशाला खोल दें ।
सब बच्चे : (एक साथ आश्चर्य से) माता–पिता के लिए पाठशाला ?
सन्तोष : हाँ, माता–पिता के लिए पाठशाला
। पहले मेरी पूरी बात सुनो । हमारे अधिकांश माता–पिता मोबाइल और कम्प्यूटर के आवश्यक फंक्शन भी नहीं जानते और न ही जानना चाहते
हैं । हम इन छुट्टियों में उनके लिए पाठशाला लगा कर उन्हें पढ़ाएँगे ।
(सब बच्चे मुस्कराने
लगे)
आरती : (हँसते हुए) अध्यापिका जी! विचार तो अच्छा है किन्तु
इसमें कई परेशानियाँ है । क्या माता–पिता हमारी बात मानेंगे?
यदि मान भी लें तो इतने लोगों को पढ़ाने के लिए जगह और संसाधन भी तो चाहिए ।
सन्तोष : वह रूपरेखा मेरे मन में है । सबसे अच्छी बात है
कि मेरी नानी इस सम्बन्ध में मेरा साथ दे रही हैं । तुम लोगों की सहमति चाहिए ।
अंकित : (नाटकीय तरीके से) कृपया अपनी योजना से हमें अवगत
करवा कर अनुग्रहीत करें ।
(सब हँसने लगे)
सन्तोष : जगह की बात तो सामुदायिक भवन से हल हो जाएगी । सबसे
बड़ी समस्या है, माता–पिता को राजी करना ।
रीता : इसके
लिए हमें मुहिम छेड़नी होगी । आज से ही हमें अपने–अपने माता–पिता से बात करनी होगी । अगर एक बच्चे के माता–पिता भी तैयार हो गए तो वह बाकी लोगों को मना लेंगे ।
अपरिचिता : सामुदायिक–केन्द्र की तुम्हारी
क्या योजना है, विस्तार से बताओ । सामुदायिक–केन्द्र आरक्षित करने
के लिए भी तो हमें बड़े लोगों की ही मदद लेनी पड़ेगी
न ।
सन्तोष : बिल्कुल ठीक है । सामुदायिक भवन में कई कमरे हैं
। मेज–कुर्सियाँ आदि भी हैं। अगर उसके संचालक अनुमति देते हैं तो एक छोटे कमरे में
उतनी कुर्सियाँ डलवा देंगे, जितने हमारे विद्यार्थी (माता–पिता) होंगे । वहीं पर शाम को उनकी कक्षाएँ लगेंगी ।
बसन्त : छोटे कमरे में कुर्सियाँ डलवाने की क्या आवश्यकता
है । जिस हॉल में सब कार्यक्रम होते हैं, उसमें तो माइक भी है और बहुत सी कुर्सियाँ
भी हैं ।
ज्ञान : दिमाग से काम लो । यदि हम हॉल लेते हैं तो हमारी
कक्षाएँ तो नियमित रूप से चलेंगी । बीच में कभी कोई कार्यक्रम हुआ तो वह कैसे होगा?
सन्तोष ने ठीक सोचा है । छोटा कमरा ही ठीक रहेगा ।
सन्तोष : (उत्साह के साथ खडे़ हो कर व दोनों हाथ ऊपर करके)
तो ठीक है दोस्तों! आज से अपनी मुहिम में जुट जाओ । माता–पिता को मनाओ, पाठशाला में भर्ती होने के लिए ।
ज्ञान : अरे यह लोग बड़े शरारती हैं । इतनी आसानी से थोड़ा
ही पाठशाला जाएँगे ।
सन्तोष : कल रविवार है । सुबह नाश्ता करने के बाद ही सब बच्चे
नौ बजे पार्क में आ जाना और अपनी–अपनी रिपोर्ट सुनाना
।
(कुछ बड़े लोग बच्चों
के पास आते हैं ।)
देवेन्द्र जी : बच्चों! आज तुम लोग खेल नहीं रहे हो ?
ज्ञान : चाचाजी! हम लोग पढ़ाई–लिखाई की बातें कर रहे हैं ।
देवेन्द्र जी : अच्छी बात है, लेकिन दौड़ने–भागने वाले खेल भी खेलने चाहिए ।
(सब बच्चे उठते हैं
व खेलने लगते हैं ।)
(थोड़ी देर बाद बच्चों
का प्रस्थान)
(नेपथ्य से आवाज आती
है– सब बच्चों ने अपने–अपने घर में इस योजना
को बताया । कुछ बच्चों को घुड़की मिली तो कुछ के अभिभावकों ने कहा, सोचेंगे, केवल नितिन
के माता–पिता ने इसे अच्छा व साहसिक कदम बताया ।)
पट–परिवर्तन
(तीसरा दृश्य)
(स्टेज पर पार्क का
दृश्य है, सब बच्चे उदास बैठे हैं ।)
ज्ञान : कोई तैयार नहीं हो रहा है । उल्टे मुझे डाँट और
पड़ गई ।
अपरिचिता : मेरी बात सुनते ही माँ बोलीं कि मेरा दिमाग मत खाओ
।
सन्तोष : तुमने यहाँ से जाने के बाद खाना नहीं खाया था क्या?
अपरिचिता : खाया था ।
सन्तोष : फिर माँ ने क्यों कहा कि दिमाग मत खाओ ।
(सब हँसने लगे)
(बाहर से नितिन आता
हुआ दिखाई दिया । वह बहुत खुश और उत्साहित था ।)
नितिन : दोस्तों! तीर मार लिया । मेरे माता–पिता ने इसे अच्छा और साहसिक कदम बताया ।
(सब बच्चों ने खुशी
के साथ तालियाँ बजाईं)
सन्तोष : नितिन! अब तुम्हारे माता–पिता अर्थात् हमारे चाचा–चाचीजी ही आशा का केन्द्र
हैं । क्या यह सम्भव है कि शाम को चाचा–चाची जी पार्क में आ
जाएँ ।
रीता : बेवकूफी की बात मत करो । हम सब शाम को नितिन के
घर चलेंगे और चाचा–चाची से बात करेंगे ।
सब बच्चे : बिल्कुल ठीक कहा है तुमने ।
सन्तोष : सब लोग आज शाम को छह बजे नितिन के घर चलेंगे ।
तब चाचाजी के मिलने की भी सम्भावना रहेगी ।
नितिन : आज तो इतवार है । सम्भवत: उनका कहीं जाने का कार्यक्रम
भी नहीं है । अत: वह तो मिल ही जाएँगे ।
पट–परिवर्तन
(चौथा दृश्य)
(नितिन का घर है । नितिन
और माँ
बैठे बातें कर रहे हैं
।)
नितिन : माँ! आज शाम को सब बच्चे हमारे घर आ रहे हैं ।
माँ : अच्छी
बात है, कोई खास कारण ।
नितिन : हाँ, वही माता–पिता की पाठशाला के
लिए बात करनी है ।
माँ : बच्चों
के नाश्ते के लिए क्या इंतजाम करूँ?
नितिन : माँ! पकौड़े बना लो, सब बच्चे खुश हो जाएँगे ।माँ : ठीक है
बेटा! तू एक काम कर दे, बेसन तो घर पर है । तू जा कर दो किलो आलू ले आ ।
नितिन : दो किलो आलू?
माँ : अरे
आलू बच जाएँगे तो घर में पड़े रहेंगे, कम नहीं पड़ना चाहिए ।
नितिन : ठीक है ।
(माँ नितिन को पैसे
और थैला देती हैं । नितिन का प्रस्थान)
पट–परिवर्तन
(पाचवाँ दृश्य)
(नितिन का घर है । नितिन,
उसके पिताजी और माँ
बैठे बातें कर रहे हैं
।)
(बाहर से घंटी बजने
की आवाज आती है ।)
नितिन : (दौड़ता हुआ बाहर की ओर जाता है ।) लगता है मेरी
मित्र मंडली आ गई है ।
(कुछ बच्चों के साथ
नितिन का प्रवेश)
सब बच्चे : (हाथ जोड़ कर) चाचाजी नमस्ते! चाचीजी नमस्ते!
दोनों : (हाथ उठा कर आशीर्वाद की मुद्रा में) खुश रहो,
सदा सुखी रहो ।
(सब बच्चे बैठ जाते
हैं ।)
माँ : (उठ
कर अन्दर जाते हुए) अभी आती हूँ ।
(माँ का एक बड़े थाल
में पकौड़े लिए हुए प्रवेश)
बच्चे : (खुश होते हुए) अरे वाह पकौड़े ।
(सभी लोग पकौड़े खाने
लगते हैं ।)
(नितिन खाली बर्तनों
को रख कर लौट आता है ।)
पिताजी : बच्चों! तुम्हारी योजना कल नितिन ने बता दी थी,
अच्छी योजना है । मैं आज ही सामुदायिक केन्द्र के संचालक जी से बात करूँगा । तुम लोग
बहुत अच्छा कार्य करने की योजना बना रहे हो ।
सन्तोष : चाचाजी! एक समस्या और है । सारे अभिभावकों में केवल
आप ही तैयार हुए हैं ।
माँ : यह कार्य
भी हम लोग करेंगे । मैं कल से दोपहर को माताओं को मनाऊँगी ।
पिताजी : और मैं कार्यालय से आने के बाद शाम को पिताओं को
।
नितिन : (गर्व व शरारत से) देखो साथियों! हमारे दो विद्यार्थी
तो कितने अच्छे हैं ।
(बच्चों के साथ ही माता–पिता ने भी ठहाका लगाया ।)
(नेपथ्य से आवाज आती
है ।)
(एक ओर बच्चों की गर्मियों
की छुट्टियाँ प्रारम्भ हो गईं । दूसरी ओर सामुदायिक केन्द्र में माता–पिता की
पाठशाला । समय रखा गया
सुबह छह से सात बजे ताकि सभी अभिभावक आ सकें । शाम का समय रखना उचित नहीं था क्योंकि
अभिभावकों को कार्यालय से लौटने में देर हो सकती थी ।)
पट–परिवर्तन
(छठा दृश्य)
(सामुदायिक भवन का दृश्य
है । एक मेज तथा कुछ कुर्सियाँ एक ओर लगी हैं, उन पर सात बच्चे बैठे हैं । मेज पर मिठाई
का डिब्बा रखा है । सामने कई कुर्सियाँ रखी हैं, उन पर चार अभिभावक बैठे हैं ।)
नवनीत : (खड़े हो कर) प्यारे विद्यार्थियों! शिक्षा और शिक्षण
एक सुखद कला है । इसलिए इसका प्रारम्भ मिठास से होना चाहिए ।
(बच्चों ने अपने विद्यार्थियों
के मुँह में मिठाई खिलाई, विद्यार्थियों ने तालियाँ बजार्इं ।)
प्रभा जी : (सन्तोष
के हाथ से मिठाई का डिब्बा लेते हुए) लाइए मैडम, हम लोग भी अपने अ/यापकों को मिठाई खिला दें ।
(प्रभाजी बच्चों को
मिठाई खिलाती हैं, तालियाँ बजती
हैं ।)
सन्तोष : (खड़े हो कर) प्यारे विद्यार्थियों! आप लोग अपने
मोबाइल, पेन व कॉपी लाये हैं ?
विश्वेश्वर जी : मैं और प्रभाजी तो पेन और नोटबुक लाए हैं ।
नितिन : आज तो पहला दिन है, छूट है, लेकिन कल से पेन और
एक सादी कॉपी अवश्य लाइएगा । जो कुछ भी आप सीखेंगे, उसे कॉपी में लिख लेने से लाभ यह
होगा कि सीखी हुई चीज भूल जाने पर आप पुन: समझ सकते हैं ।
ज्योति जी और रत्ना
जी : (एक साथ) जी सर! अवश्य लाएँगे ।
(सब हँसने लगे)
नितिन : आज जिनके पास कॉपी नहीं है, उनको दूसरों की कॉपी
से दो–दो पृष्ठ दे देते हैं और पेन अपने पास से दे देते हैं ।
(सन्तोष दोनों विद्यार्थियों
को दो–दो पृष्ठ और पेन देती है ।)
नितिन : आज विद्यार्थी कम हैं और सिखाने वाले अधिक । इसलिए
हम लोग हर विद्यार्थी को अलग–अलग सिखाएँगे ।
(बच्चे अभिभावकों के
पास कुर्सियों पर बैठ जाते हैं और मोबाइल चलाने का अभिनय)
(नेपथ्य से आवाज आती
है ।)
(बच्चों ने अभिभावकों
को सबसे पहले मोबाइल में नाम दर्ज (फीड) करना सिखाया ।)
नवनीत : (मेज के पास आ कर खड़े हो कर) समय मिलने पर आप लोग
अभ्यास करिएगा । आज पहला कदमµआप लोगों को लिखना सिखा दिया गया ।
जो कठिनाई आए वह कल
हल की जाएगी । कल अन्य विद्यार्थियों को भी बुला कर लाइएगा ताकि हम लोगों के समय का
सदुपयोग हो सके ।
प्रभा जी : धन्यवाद सर! हम लोग लगन के साथ अभ्यास करेंगे
। आज की तकनीक के हिसाब से हम लोग साक्षर हो रहे हैं ।
(तालियाँ बजती हैं ।)
(सबका प्रस्थान)
पट–परिवर्तन
(सातवाँ दृश्य)
(सामुदायिक भवन का दृश्य
है । एक मेज तथा कुछ कुर्सियाँ एक ओर लगी हैं, उन पर सात बच्चे बैठे हैं । सामने की
कुर्सियों पर बीस अभिभावक बैठे हैं ।)
अपरिचिता : प्यारे विद्यार्थियों! आप लोगों की लगन का परिणाम
यह हुआ कि आप लोग पन्द्रह दिन में मोबाइल में नाम लिखना, मैसेज भेजना, व मैसेज रिसीव
करना अच्छी तरह सीख गए ।
कल से आप लोग लैपटॉप
अपने साथ लावें । आप लोगों को कल से लैपटॉप चलाना सिखाया जाएगा ।
देवेन्द्र जी : अरे मास्टर लोगों! कितना पढ़ाओगे, अब ऊब गए हम पढ़ने
से ।
आरती : अब पता चला पढ़ना कितना कठिन है ।
विश्वेश्वर जी : जी मैडम!
समझ गए, हम लोगों ने कल ही निर्णय कर लिया था कि आज तक ही पढ़ेंगे । आज कक्षा
का आखिरी दिन है । हम लोग आप लोगों के लिए गुरुदक्षिणा लाए हैं व नाश्ता भी ।
(प्रभा जी ने डायरी
और पेन बैग से निकाल कर सबको बाँटे ।)
नवनीत : (जीभ फैलाते हुए) और नाश्ता ।
देवेन्द्र जी : (हँसते हुए नाश्ते के पैकेट निकालते हैं ।) लीजिए
गुरुवर!
(सबको नाश्ते के पैकेट
देते हैं । सब ठहाके मारते हुए नाश्ता करते हैं ।)
प्रभा जी : (मेज के पास आ कर) प्यारे गुरुजनों! हमने गुरुदक्षिणा
के रूप में डायरी और पेन इसलिए दिए हैं ताकि आप लोग प्रतिदिन डायरी लिखें, इससे लेखन–क्षमता बढ़ेगी ।
(सब बच्चे प्रभा जी
तथा सभी अभिभावकों के पैर छूते हैं ।)
नवनीत : (मेज के पास आ कर) आपने डायरी लिखने की अच्छी शिक्षा
दी । हमने आप लोगों को मोबाइल चलाना सिखाया । आप लोगों ने हमें जीवन चलाना ।
(सब तालियाँ बजाते हैं
।)
(पर्दा गिरता है)
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