सत्य
गोलू होमवर्क नहीं
कर पाया था। वह सोच रहा था कि मैडम
जी से क्या
कहेगा। विद्यालय के रास्ते में उसने
अपने साथी प्रणव
से बताया- ‘प्रणव!
मैं होमवर्क नहीं
कर पाया, खेलता
रहा, अब क्या
करूँ। सोचता हूँ,
मैडम से कह दूँ कि कुछ तबियत ठीक नहीं
थी।’
प्रणव बोला-
‘गोलू! ठीक है यह कहने से तुम सजा से या मैडम की डाँट से तो बच जाओगे किन्तु इसके क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं,
सोचा है इस पर।’
‘क्या हो सकता है?’ गोलू
ने कहा।
‘इस तरह छोटे-छोटे झूठ बोलते-बोलते धीरे-धीरे झूठ बोलने
की आदत पड़ती
जाती है। यह आदत धीरे-धीरे
व्यक्तित्व में समा जाती है। यह आदत पड़ जाने
पर मनुष्य बिना
कारण अपनी शेखी
बघारने के लिए झूठ बोलने लगता
है। तुमने देखा
नहीं है, अपनी
कक्षा में संजय
अकारण ही कितना
झूठ बोलता
है।’
‘ठीक कहते
हो प्रणव! इससे
संजय अपना ही नुकसान करता है। उसकी सही बात पर भी किसी
को विश्वास नहीं
होता है।’ गोलू
ने कहा।
‘इसके साथ ही सबसे बड़ा नुकसान यह होता
है कि व्यक्ति अपनी ही नजरों
में गिर जाता
है। उसका आत्मविश्वास समाप्त होने लगता
है -प्रणव बोला।
गोलू ने भावुक होकर कहा-
‘प्रणव! मेरे मित्रा! तुमने मुझे पतन में जाने से बचा लिया। मैं सदा सत्य का ही पालन
करूँगा।’
विद्यालय आ गया।
दोनों साथियों ने मुस्कराते हुए विद्यालय में प्रवेश किया।
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