Saturday, November 24, 2018

अपने बजट के अनुसार चलें

पात्र परिचय
बच्चे
अविनाश
अविनाश के पड़ोस  के बच्चे
अंशू
उमा
अरुन्धती
चुनमुन
अनुराग
स्त्री पात्र
दादी- अविनाश की दादी
माँ अविनाश की माँ- आयु लगभग चालीस वर्ष
मंजू बहनजी- अविनाश के पड़ोस में रहने वाली समाजविज्ञान की अध्यापिका आयु लगभग तीस वर्ष
पुरुष पात्र
मोहन जी- अविनाश के पिता जी आयु लगभग चालीस वर्ष

वेशभूषा
पात्र अभिनय के अनुकूल वेशभूषा








(पर्दा खुलता है)
(दृश्य) 
(घर का दृश्य है । अविनाश और उसकी माँ बैठे बात कर रहे हैं ।)

माँ : देखो बेटा! जितनी आमदनी हो उतना ही खर्च करना चाहिए ।
अविनाश : माँ! मैं कौन-सा ज्यादा खर्च करता हूँ। स्कूल में सब बच्चे इण्टरवल में कैण्टीन से लेकर कितनी चीजें रोज खाते हैं। मैं कभी-कभी ही खाता हूँ।
माँ : बेटा! हमारी आमदनी इतनी नहीं है कि हम बाजार की खाने-पीने की चीजों में खर्च कर सकें। वैसे भी बाजार की चीजें नुकसान ही करती हैं।
अविनाश : (मुस्कराते हुए) ठीक कहती हैं माँ! मैं भी आपसे एक बात कहना चाहता हूँ, आप भी फालतू                               खर्च मत किया करें।
  
माँ : (गुस्से से) अब तू मुझे सिखाएगा! मैं फालतू खर्च करती हूँ।
(तेज आवाज सुनकर अविनाश के पिताजी भी आ गए।)

माँ : यह मुझे सिखा रहा है। कहता है कि आप लोग फालतू खर्च करते हैं।
अविनाश : पिताजी! देखिए कितने दिनों से नल टपक रहा है। मैं  इसे ठीक करवाने के लिए कहता हूँ तो                               आप लोग सुनते नहीं है। यह फालतू का खर्च नहीं है क्या?
माँ : (हँसते हुए) शरारती कहीं का। पानी ही तो है।
अविनाश : (गम्भीरता से) माँ! मैं यह बात शरारत से नहीं कह रहा  हूँ बल्कि गम्भीरता से कह रहा हूँ।                              यदि इसी तरह से पानी की बर्बादी होती रही तो एक दिन ऐसा आएगा कि हम बूँद-बूँद पानी के लिए तरस जाएँगे।
पिताजी : अविनाश कहता तो ठीक है। देखती नहीं हो, अखबारों में व टी.वी. में रोज ही आता है कि धरती     का भूजल-स्तर नीचे जा रहा है।
माँ : हाँ! आता तो है।
(पड़ोस में रहने वाली मंजू बहनजी का प्रवेश)

माँ और पिताजी :    (एक साथ) आइए मंजू बहन जी!
(अविनाश मंजू बहनजी के पैर छूता है।)
मंजू बहनजी : (आशीर्वाद देते हुए) खुश रहो, सदा सुखी रहो! आज रविवार है। मेरी छुट्टी है। सोचा मिल लूँ, आप सब लोग भी मिल जाएँगे।
पिताजी : अच्छा किया बहन जी!
(मंजू बहनजी बैठ जाती हैं।)

अविनाश : बुआजी! आप विद्यालय में क्या पढ़ाती हैं?
मंजू बहनजी : समाजविज्ञान! अविनाश देखो कहीं पर नल खुला है क्या? पानी टपकने की आवाज आ रही है।                            नल बंद कर दो।
अविनाश : बुआ जी! टोंटी खराब हो गई है। इसलिए नल टपक रहा है। इसे ठीक करवाना पड़ेगा।
मंजू बहन जी : भाईसाहब! नल ठीक करवाइए। पानी बहुत कीमती होता है। सोचिए अगर एक दिन भी           पानी न मिले तो हमारा क्या होगा। भूजल  वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि अभी भी           हम जल-संरक्षण के प्रति सचेत नहीं हुए तो सन् 2025 तक भारत भी अन्य जल की कमी वाले     देशों की तरह भारी जल की कमी का सामना  करेगा।
पिताजी     : ठीक कहती हैं बहन जी! मैं आज ही नल ठीक करवाऊँगा, अपना भी और अपने आस-पड़ोस       वालों का भी कोई नल बहता होगा तो उसे भी।
मंजू बहनजी : बहुत अच्छा सोचा है आपने!
पिताजी : बहन जी! धरती पर तो सदियों से लोग रहते हैं, लेकिन आजकल ही जल-संरक्षण की बात क्यों चल रही है?
अविनाश :    मैं बताऊँ?
मंजू बहनजीः    बताओ बेटा!
(दादी का प्रवेश)

मंजू बहनजी      :   (उठकर दादी के पैर छूते हुए) प्रणाम माँजी!
दादी :(आशीर्वाद देते हुए) खुश रहो, सदा सुखी रहो!
अविनाश : दादी! जल संरक्षण की बात चल रही है।
अविनाश : पहले आजकल की तरह घरों में नल नहीं लगे होते थे। लोग नदियों, तालाबों व कुओं से पानी                              भर कर लाते थे। उसके बाद हैण्डपाइप लगे, तब भी पानी निकालने में मेहनत पड़ती थी।                                   इसलिए लोगों द्वारा जल की बर्बादी का प्रश्न ही नहीं था। नई खोजों के फलस्वरूप घरों में नल                             लग जाने से पानी का दुरुपयोग होने लगा है। इसलिए जल-संरक्षण आवश्यक है।
मंजू बहनजी :    शाबाश बेटा!

(नेपथ्य से घंटी बजने की आवाज आती है। अविनाश बाहर जाता है। अपने कुछ मित्रों के साथ प्रवेश)
सब बच्चे : (हाथ जोड़ कर) नमस्ते!
(सब बच्चे माँ, पिताजी, दादी और मंजू बहन जी के पैर छूते हैं । सब आशीर्वाद देते हैं । बच्चे बैठ जाते हैं ।)
अविनाश : यह लोग मुझे पार्क में खेलने के लिए बुलाने आए थे। जब मैंने बताया कि मंजू बुआजी आई हैं।                             वह जल-संरक्षण के बारे में बता रही हैं। तब सब अंदर आ गए।
मंजू बहनजी : बहुत अच्छा किया। वास्तव में जल के कई रूप होते हैं। जल-चक्र है।
अंशू : मैं बताऊँ बुआजी!
मंजू बहनजी       : बताओ अंशू!
अंशू : जल एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर गतिशील रहता है। जो जल कभी हिंद महासागर में था, हो सकता है आज वह बादलों में हो, या हमारे नल में हो। जल की मुख्य विशेषता है कि         वह अपनी अवस्था आसानी से बदल सकता है।यह अपनी तीन अवस्थाओं में-ठोस, द्रव तथा गैस के रूप में रहता है। जल महासागरों, नदियों, बादलों तथा झीलों आदि से वाष्पीकृत होकर ऊपर वायु में जाता है, जल वाष्प संघनन द्वारा हिमकणों में रूपांतरित हो जाता है। यह हिमकण                             वायु में तैरते रहते हैं और बादलों का निर्माण करते हैं। वही बादल जब बहुत बड़े हो जाते हैं और                          वायु में तैर नहीं पाते हैं, तब आपस में टकराते हैं और हिम, जल व वर्षा के रूप में धरती पर गिर                          पड़ते हैं। यही जल फिर से नदियों, नालों के माध्यम से नदियों और महासागरों में जा पहुँचता है।                           इस तरह जल-चक्र पूरा होता है।

मंजू बहनजी : (अंशू की पीठ थपथपाते हुए) बहुत अच्छी व सारगर्भित जानकारी दी है मास्टर साहब!
(सब हँसते हैं)
चुनमुन : बुआजी! पानी कितने चक्कर के बाद हमारे घर में आता है?
मंजू बहनजी : हाँ बेटी! अब मैं पृथ्वी के जल-बजट के बारे में बताती हूँ।
अविनाश :(उछलते हुए) अरे वाह बुआ जी! आपके आने से पहले मैं माँ से यही बात कर रहा था कि अपने बजट के अनुसार ही चलना चाहिए। पानी की कमी के कारण हमारा जल-बजट कम है।                                  इसलिए कम पानी खर्च करना चाहिए।
मंजू बहनजी  : (हँसते हुए) वास्तव में पृथ्वी का जल-बजट सदैव एक-सा ही रहता है। पृथ्वी पर जल की मात्र                                सदैव एक समान रहती है। जैसे-जल, जलवाष्प या हिम के रूप में। जल का स्थान बदल सकता                         है किन्तु जल-बजट कभी नहीं बदलता है। हो सकता है कि कभी जो जल नदी में था, आज वह                              बादलों में हो या हमारे नलों में या महासागरों में हो। हम पृथ्वी का जल-बजट नहीं बदल सकते                            हैं किन्तु इसका प्रयोग नियंत्रित कर सकते हैं।
अविनाश : बुआ जी! जब पृथ्वी का जल-बजट नहीं बदल सकता है, सदा एक-सा रहता है, तब विश्व में           पानी की बचत की बात क्यों चल रही है?
उमा : बुआ जी! मैं बताऊँ?
मंजू बहनजी      : बताओ उमा बेटी!
उमा     : यह सत्य है कि पृथ्वी का जल-बजट एक-सा ही रहता है  किन्तु पृथ्वी पर शुद्ध पेयजल की                                    कमी हो रही है।
माँ     : शुद्ध पेयजल की कमी के क्या कारण हैं?
अरुन्धती      : मैं बताऊँ? बुआजी!
मंजू बहन जीः    बताओ!
अरुन्धती : शुद्ध पेयजल की कमी के कई कारण हैं-

*  प्रदूषकों के कारण जल दूषित हो रहा है। यह सत्य है कि जल में स्वतः शुद्धिकरण की क्षमता होती है किंतु भारी मात्र में प्रदूषक मिल जाने से जल स्वयं को शुद्ध नहीं कर पाता है और उसे हम प्रदूषित जल का नाम दे देते हैं। इस प्रकार पेयजल की कमी हो जाती है।
*  बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण पेयजल की माँग बढ़ रही है।
  
*  कुछ लोग समर्सिबल पप्म चला कर जल का अत्यधिक दोहन कर रहे हैं।
*  कुछ लोग सामान्य नलों को भी दिन-भर खुला छोड़ कर अनावश्यक रूप से भूजल का अत्यधिक दोहन कर रहे हैं।

चुनमुन : हम लोगों को तो पढ़ाया गया है कि पृथ्वी का अधिकांश भाग जल से घिरा है। इसका लगभग 71% धरातल पानी से आच्छादित है, जिसके कारण यह अंतरिक्ष से नीली दिखाई पड़ती है। यही कारण है                    कि हमारी पृथ्वी को नीला ग्रह भी कहा जाता है।
(माँ अन्दर जाती हैं।)
मंजू बहनजीः ठीक कह रही हो चुनमुन! जब हम जल संसाधन की बात करते हैं तो इसमें महासागर, नदियाँ, झीलें, हिमनदियाँ, ग्लेशियर, भूमिगत जल तथा वायुमंडल के साथ, जल के सभी रूप समाहित                      रहते हैं। हमारी पृथ्वी पर पाये जाने वाले जल का लगभग 97% भाग महासागरों में पाया जाता है एवं इतना अधिक खारा होता है कि मानव के उपयोग में नहीं आ सकता है। पृथ्वी पर उपलब्ध जल का लगभग 3% जल स्वच्छ जल है,  किन्तु इस स्वच्छ जल का लगभग 77% भाग ध्रुवीय क्षेत्रें में                      जमा रहता है, जो अपनी स्थिति के कारण हमारे लिए अगम्य है। इस प्रकार शेष जल जो कि पृथ्वी पर                  उपलब्ध जल का एक प्रतिशत से भी कम है, वह नदियों, झीलों, वायुमण्डल, नमी मृदा, और वनस्पति                  में मौजूद है। अतः वनस्पति और प्राणीजगत के उपयोग योग्य जल नदियों, झीलों और भूजल के रूप                    में उपलब्ध जल का छोटा सा हिस्सा है। यही कारण है कि नीले ग्रह में रहने के बाद भी हम पेयजल                      की    कमी महसूस करते हैं।फिर भी यदि जल-प्रबंधन ठीक प्रकार से हो तो पानी की कमी दू की जा                  सकती है।
   
दादी :  (मंजू बहनजी के सिर पर हाथ फेरते हुए) मंजू! तेरे समझाने का तरीका अच्छा है। ईश्वर तुझे अच्छा स्वास्थ्य और लंबी आयु दे।
(माँ का कुछ खाद्य पदार्थ लेकर प्रवेश)

माँ : (अविनाश से) अविनाश! जा पानी और कुछ गिलास लेआ।
(अविनाश अन्दर जाता है।)
मंजू बहनजीः (खाद्य-पदार्थ उठाते हुए) हाँ भई अब तो पानी मिल जाए। पानी की बात करते-करते गला सूख    गया।
(सब हँसते हैं।)
(अविनाश का पानी और कुछ गिलास लिए हुए प्रवेश)

अनुराग : (खाद्य-पदार्थ उठाते हुए) पेटपूजा सबसे बड़ी पूजा है।
(सब हँसते हैं व खाते-पीते हैं।)
अनुराग    : बुआजी! मैं जल की कमी का एक कारण बताऊँ।
मंजू बहनजीः बताओ अनुराग!
अनुराग      : यह सत्य है कि पृथ्वी पर उपलब्ध जल का अधिकांश भाग महासागरों में है किंतु यह जल अपने खारेपन के कारण उपयोग योग्य नहीं है। लेकिन जल शुद्धिकरण की प्रकृति ने                                      अद्भुत व्यवस्था की है। महासागरों का जल वाष्प बनकरउड़ जाता है और प्रकृति उस जल                                 का शुद्धिकरण करके वर्षा द्वारा पुनः धरती को लौटा देती है।दुःख होता है वनों की अन्धाधुन्ध                              कटाई और शहरीकरण तथा जल संरक्षण का उचित प्रबंधन न होने के कारण वर्षा का पूरा                                  जल उपयोग में नहीं आ पाता।
मंजू बहनजीः अनुराग तुमने बहुत अच्छा बताया है। अब आवश्यकता इस बात की है हम जल-संसाधन की पूरी संरचना को समझें।
अंशू : (नाटकीय तरीके से सिर झुका कर) बुआजी! कृपया मुझे भी बोलने का अवसर दें।
(सब हँसते हैं।)
मंजू बहनजी : बोलो अंशू!
अंशू : हमें उपभोग के लिए जो जल मिलता है, वह वर्षा का जल है।

वर्षा से प्राप्त धरती में समा जाने वाला जल- पृथ्वी पर जो जल वर्षण के रूप में प्राप्त होता है, वास्तव में प्राणिजगत व वनस्पति जगत का जीवन उसी पर निर्भर है। वर्षा का जल प्राकृतिक रूप से रिसकर मिट्टी में समा जाता है, वह तो अवमृदा (जमीन की निचली परत) में स्वतः ही संरक्षित हो जाता है, वह भूजल के रूप में विद्यमान रहता है, जिसे वनस्पतियाँ (कृषि, पेड़-पौधे) तो स्वतः ही जमीन से खींच लेती हैं। हम लोग भी कुआँ खोदकर हैण्डपम्प, समर्सिबल पम्प या अन्य साधनों द्वारा जमीन से पानी निकाल सकते हैं।
वर्षा से प्राप्त शेष जल- हम लोग जानते ही हैं कि धरती का लगभग तीन-चैथाई हिस्सा समुद्र से घिरा है। अतः वर्षा से प्राप्त केवल उतने ही जल का उपयोग हम कर सकते हैं, जो शेष एक चैथाई पृथ्वी पर वर्षण से उपलब्ध होता है। इसमें से भूजल के रूप में संरक्षित हुए जल के अतिरिक्त शेष जल जमीन पर या नदियों में बहते हुए समुद्र में चला जाता है। वास्तव में इसी जल को ठीक प्रकार से संरक्षित करके हम जल की उपलब्धता बढ़ा सकते हैं।
सबसे बड़ी बात है कि हम भूजल-स्तर को नीचे न जाने दें। घरों से उपयोग के बाद जो पानी निकलता है, उसे शुद्ध करके जमीन में संरक्षित करें व वर्षा का जल जो गिरता है उसे सीधे जमीन में उतार दें।

पिताजी : अंशू को तथ्यों का गहराई से ज्ञान है, समझाने का तरीका भी बहुत अच्छा है।
अनुराग : बुआ जी! अभी अंशू ने घरों व कार्यालयों में उपयोग किए हुए जल को संरक्षित करने के लिए कहा है। मैं बताऊँ उपयोग किए गए जल-संग्रहण के तरीके।
मंजू बहनजीः   इनके बारे में अगले रविवार को चर्चा करेंगे। अभी तो हम इतना ही समझ लें कि उपलब्ध जल को       कम से कम खर्च करें।
दादी : सही कह रही है तू मंजू! पानी के बिना तो कुछ घंटों में ही मनुष्य छटपटाने लगता है। पानी सबसे अधिक कीमती   है।
अविनाश : (शरारत के साथ) इसीलिए तो कहता हूँ कि अपने बजट के अनुसार चलें। शुद्ध पेयजल की कमी हो रही है। अतः हम कम से कम पानी खर्च करें।
माँ : बिल्कुल ठीक कहा, चलो एक नारा लगाओ।
बजट के अनुसार चलें।
पानी की हर बूँद बचे।।
सब लोग : बजट के अनुसार चलें।
                   पानी की हर बूँद बचे।।
(पटाक्षेप)

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