अपनी पीड़ा में मुझको, आँसू बनकर घुलने दो ।
मेरी पीड़ा बस मेरी है, एकाकी ही सहने दो ।
क्या समझेगा कोई मेरे मन की पीड़ा को,
न समझ पाई मैं ही, अपनी जीवन क्रीड़ा को ।
इस वेदनाभयी हृदय को, अब दीपक बन जलने दो ।
मेरी पीड़ा बस मेरी है, एकाकी ही सहने दो ।
बाँध रहा मन आशाएँ अब और किसी जन से है क्यों ?
इस जीवन पथ मुझको अवलम्ब बिना चलने दो । ।
मेरी पीड़ा बस––
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