कुछ उमड़–उमड़, कुछ घुमड़–घुमड़,
आते हैं सावन के घन ।
मेरा मन, प्यासा मन,
चातक सा मन, देखे जीवन–घन । ।
क्यों कास–कास सा होता है गगन,
जाने कब बरसेगा ये मेरे आँगन ?
खेतों में सूख गयी डारी–डारी,
धान की तो सूख गई क्यारी–क्यारी ।
अन्नदेवता रुष्ट हुए क्यों,
जल की हुई कमी भारी ।
तन भी सूख गया मेरा,
मन भी तो है भारी–भारी । ।
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