द्वार की ओर प्रिय की राह क्यों देखते?
क्या कोई आस अब भी बची है सखे?
क्यों न तू भी अकेले चले हे––मने ।
क्यों कली सोंचती है कि अलि ही आए?
पुष्प क्यों सोंचता है कि माली आए?
क्यों नहीं जी सके वे अकेले सखे?
क्यों न आता है भौंरा चुराने को मधु?
क्या सूख जाएगा सब रूप यों ही प्रभु?
क्या कोई आस अब भी बची है सखे?
क्यों न तू भी अकेले चले हे––मने ।
क्यों कली सोंचती है कि अलि ही आए?
पुष्प क्यों सोंचता है कि माली आए?
क्यों नहीं जी सके वे अकेले सखे?
क्यों न आता है भौंरा चुराने को मधु?
क्या सूख जाएगा सब रूप यों ही प्रभु?
No comments:
Post a Comment