हे प्रभु!
मैंने तुझसे कभी कुछ नही माँगा ।
माँगा तो, केवल तेरे चरणों में प्रेम ।
तू मुझे क्यों बार–बार अपने से अलग करता है ।
शायद इसलिए कि मैं तुझे भूल न जाऊँ ।
मेरे में अहंभाव न आ जाए ।
कर्तापन और कामना न आ जाए,
मेरे में क्यों अहंभाव आता है,
क्यों कर्तापन आता है ?
मैं समझ नहीं पाती ।
हे प्रभु!
तू मुझसे जो चाहे कराए ।
मेरा तुझसे अलग कोई अस्तित्व न हो ।
मैं क्यों किसी से कुछ चाहूँ,
तेरा सौन्दर्य तो सर्वत्र है ।
अब तू मुझे अपने से अलग न कर,
मेरे में अहंभाव न आने दे ।
क्या सूर्य उदित होने पर–
मुझे प्रकाश ढ़ूँढ़ना पड़ता है ?
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