पात्र-परिचय
कुछ बच्चे : घुटने तथा हाथ की कोहनियाँ जमीन पर टिकाए हैं। कुछ बच्चे काला कपड़ा पहन काली चींटी बने हैं। कुछ लाल चींटी बने हैं।
चींटी नेताः चीटियों का नेता
दो पुरुष : संसद भवन के गार्ड- बंदूकधारी गार्ड की वेशभूषा में हैं।
मंत्री जी : देश के पर्यावरण मंत्री- कुर्ता-पायजामा व टोपी पहने हैं।
(पर्दा खुलता है।)
(प्रथम दृश्य)
(मंच पर कुछ बच्चे जो चींटी बने हैं, उनकी कई लाइनें लगी हैं। बच्चे घुटने तथा दोनों हाथों की कोहनियाँ जमीन पर टिका कर चींटी के रूप में हैं।)
चींटियों का नेता: हमारी माँगें पूरी करो।
अन्य चींटियाँ : हमारी माँगें पूरी करो।
नेता चींटी
: हमें जीने का अधिकार दो।
अन्य चींटिया :
हमें जीने का अधिकार दो।
(इसी प्रकार बोलते हुए सभी चींटियाँ चलती जाती हैं।)
नेता चींटी :
साथियों! चलते रहो, रुको नहीं। हमें लम्बी दूरी तय करनी है, संसद भवन पहुँचना है।
सब : (गाते हुए चलते हैं।)
एक से भले दो, दो से भले चार।
मंजिल अपनी दूर है, रास्ता करना पार।।
नहीं रुकेंगे, नहीं थकेंगे, हम तो चलते जाएँगे।
नहीं डरेंगे, नहीं सहेंगे, अपनी माँगें मनवाएँगे।।
एक से भले दो, दो से भले चार।
मंजिल अपनी दूर है, रास्ता करना पार।।
(सबका चलते हुए अन्दर प्रस्थान)
पट-परिवर्तन
(दूसरा दृश्य)
(मंच पर पीछे पर्दे पर संसद भवन का चित्र है। सभी चींटियाँ मंच पर हैं। एक तरफ चींटी नेता है, दूसरी तरफ अन्य सभी चींटियाँ हैं।)
चींटी नेता :
प्रिय साथियों! कुछ दशकों पहले हमारी प्रजाति कितनी सुखी थी। अधिकतर जमीनें भी कच्ची थीं, अधिकतर घर भी कच्चे थे। पेड़-पौधे खूब थे | हम लोग घरों में, पेड़ों की जड़ों में या सड़कों पर अपने घर बना लेते थे व आराम से रहते थे। अब तो हमारे अस्तित्व पर ही खतरा मंडराने लगा है।
बोलो जोर से-हमारी माँगें पूरी करो।
सब चींटी :
(जोर से) हमारी माँगें पूरी करो।
चींटी नेता: हमें जीने का अधिकार दो।
सब चींटी :
हमें जीने का अधिकार दो।
(दो बंदूकधारियों का प्रवेश)
एक बंदूकधारी :
क्यों शोर मचा रहे हो, संसद के सामने।
चींटी नेता : हम तुमसे बात नहीं करेंगे। पर्यावरण-मंत्री या प्रधानमंत्री को बाहर भेजो।
दोनों बंदूकधारी: (जोर से) भागो चलो यहाँ से।
चींटी नेता : ये ऐसे नहीं मानेंगे। साथियों इनके ऊपर चढ़ जाओ और काटो इन्हें।
(सब चींटियाँ गार्ड लोगों पर चढ़ने लगती हैं।)
दोनों गार्ड :
(दर्द से चिल्लाते हुए) हाय! हाय! हमें छोड़ो, हमें छोड़ो।
(हाथ पैर पटकते हैं। चींटियाँ गार्ड लोगों को छोड़कर हट जाती हैं।)
(गार्ड लोग अन्दर की ओर भागते हैं।)
(कुर्ता-पायजामा पहने हुए मंत्री जी का प्रवेश)
मंत्री जी : क्या बात है? क्यों हंगामा किया हुआ है?
चींटी नेता : आप कौन हैं?
मंत्री जी : मैं पर्यावरण मंत्री हूँ।
चींटी नेता : प्रणाम मंत्री जी!
मंत्री जी
: प्रणाम! हाँ कहो, क्या कहना है?
चींटी नेता : माननीय मंत्री जी! पक्के घरों, पक्की सड़कों व पक्के मकानों के कारण हमें घर मुहैया नहीं हो रहे हैं। शहरों में पेड़ भी बहुत कम हैं। पेड़ों की जड़ों में कच्ची भूमि पर हम अपना घर बना लेते थे। अब कहाँ जाएँ?
एक बुजुर्ग चींटी: मंत्री जी! एक और भी बड़ी समस्या है। मनुष्य खुद तो अपने पैरों में चप्पल, जूते पहनता है किन्तु हम...? कंकड़ीले, पत्थरीले रास्तों पर चलना मुश्किल है। हर तरफ कंकरीट के जंगल बन चुके हैं।
(चींटियों के समूह से कइयों की कराह एक साथ निकलती है-आह! आह!)
मंत्री जी : आप लोगों की बात तो विचारणीय है किन्तु हम क्या कर सकते हैं? आपके पैरों की इतनी छोटी चप्पलें कैसे बनवायी जाएँ?
चींटी नेता : मंत्री जी! आपको शायद नहीं मालूम कि हम लोगों के कारण ही जमीन उपजाऊ बनती है।
मंत्री जी :
आप लोगों के कारण जमीन उपजाऊ बनती है?
चींटी नेता : जी हाँ, मंत्री जी! हम चींटियाँ ही नहीं, बल्कि छोटे-बड़े जो भी कीड़े-मकोड़े हैं, जैसे-चींटी, कॉकरोच, केचुए आदि सब जमीन को खोदते हैं, जिससे जमीन की उर्वराशक्ति बनी रहती है, अन्यथा जमीन सख्त हो जाए।
एक चींटी :
और मंत्री जी! हम सभी कीड़ों-मकोड़ों की विष्ठा या मल से शक्तिशाली उर्वरक व खाद बनते हैं।
मंत्री जी : सही कहते हैं आप लोग। आपकी चप्पलों का इन्तजाम तो हम नहीं कर सकते हैं किन्तु आज से ही अभियान चलाएँगे कि पहले की भाँति कच्चे घरों का निर्माण हो। अधिकाधिक पेड़ लगें, जिससे आपका आश्रयस्थल सुरक्षित रहे। आइए आप लोग हमारे बगीचे में रहें। जहाँ चाहें अपना घर बना लें। आप लोग थके होंगे। आज बगीचे में कहीं पर विश्राम करें। आपकी दावत के लिए आटे की पंजीरी बनवा देते हैं, वह खाइए, आराम करिए। कल से अपने घर का निर्माण करिएगा।
सभी चींटियाँ :
(एक साथ) मंत्री जी की जय हो।
चींटी नेता :
मंत्री जी! अगर यह कंकरीट के महल बनना कम हो जावें तो हमें चप्पलों की आवश्यकता नहीं रहेगी।
मंत्री जी : और पर्यावरण-प्रदूषण में भी कमी आएगी।
(सभी चींटियों का अन्दर की ओर प्रस्थान)
(पर्दा गिरता है)
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