जीवन क्या यही है जीवन ?
प्रेम नही है, प्यार नही है ।
मातृ में, पितृ में, भ्रातृ में, मित्र में,
सब कहीं देखा पर नही मिली वह प्रेम की किरण,
मिली तो थी पर शायद नहीं मिली ।
प्राप्य भी क्यों हो ?
प्राप्य तो उनको है जो सत्पात्र हैं ।
जो चाहता है, शायद उसे अँधेरा ही मिलता है ।
जो भागता है, शायद उसे काँटे ही मिलते हैं ।
इन काँटों में ही सुख है ।
अँधेरे में ही प्रकाश है ।
विरह ही प्रेम है,
कामना ही दु:ख है,
आशा में ही निराशा है,
जीवन एक कसौटी है,
यही जीवन की परिभाषा है ।
प्रेम नही है, प्यार नही है ।
मातृ में, पितृ में, भ्रातृ में, मित्र में,
सब कहीं देखा पर नही मिली वह प्रेम की किरण,
मिली तो थी पर शायद नहीं मिली ।
प्राप्य भी क्यों हो ?
प्राप्य तो उनको है जो सत्पात्र हैं ।
जो चाहता है, शायद उसे अँधेरा ही मिलता है ।
जो भागता है, शायद उसे काँटे ही मिलते हैं ।
इन काँटों में ही सुख है ।
अँधेरे में ही प्रकाश है ।
विरह ही प्रेम है,
कामना ही दु:ख है,
आशा में ही निराशा है,
जीवन एक कसौटी है,
यही जीवन की परिभाषा है ।
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