अब तो दिया जल गया है, प्रकाश ही प्रकाश है ।
अन्धकार का स्मरण क्यों ?
कहीं भी अन्धकार हो, तो रुदन क्यों ?
चिन्गारी पास है तो प्रकाश की अल्पता कहाँ ?
यदि पहले नहीं अनुभव हुआ–
तो व्यर्थ तपन क्यो ?
तपना ही है तो अग्नि के ताप में तपो,
उस प्रकाश में तपो ।
वह ही कर्ता है,
फिर किसी की सहायता की आकांक्षा क्यों ?
सदा प्रकाश की ओर बढ़ते जाओ–
लक्ष्य स्वयं मिल जाएगा ।
क्या कोई प्रकाश से अन्धकार की ओर जाता है ?
अन्धकार का स्मरण क्यों ?
कहीं भी अन्धकार हो, तो रुदन क्यों ?
चिन्गारी पास है तो प्रकाश की अल्पता कहाँ ?
यदि पहले नहीं अनुभव हुआ–
तो व्यर्थ तपन क्यो ?
तपना ही है तो अग्नि के ताप में तपो,
उस प्रकाश में तपो ।
वह ही कर्ता है,
फिर किसी की सहायता की आकांक्षा क्यों ?
सदा प्रकाश की ओर बढ़ते जाओ–
लक्ष्य स्वयं मिल जाएगा ।
क्या कोई प्रकाश से अन्धकार की ओर जाता है ?
तो फिर–
पूर्व जीवन में प्रवेश क्यों ?
पीछे अन्धकार था अब प्रकाश है ।
सर्वत्र पुष्पों का सौन्दर्य है, शांति है ।
इस बगिया में ही प्रवेश करके–
सर्वत्र पुष्पों का चयन करो ।
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