Friday, November 30, 2018

चेतना


इस अहंबुद्धि में डूब कर क्या होगा ?
जब अहं पर मन का प्रभाव है,
मन पर इन्द्रियों का,
इन्द्रिय में ही कामना है,
कामना ही बन्धन का कारण है ।
फिर अहं के पीछे क्यों भागो ?
जब तक अहं को माना कुछ न मिला
अहंवान गहरी खाई में गिर पड़ता है
और आत्मवान ?
वह बढ़ता है सदा ऊँचाई की ओर ।
इस जगत में प्राणी–
अहं को प्रधानता दे कर, आत्मवान बनना चाहता है ।
और फिर ?
संतुलन खो बैठता है ।
वास्तव और अवास्तव मिल कर–
अवास्तव ही बनता है ।
फिर भी–
वास्तव की ओर मुड़ो अवास्तव को छोड़ो ।
वह वास्तव है, सत् है, उस सत् में आनन्द है ।
अवास्तव असत् है ।
पुन: अहं को छोड़ कर आत्म ही सब कुछ है ।
फिर असफलता में आत्मदोष क्यों ?
आत्म में रहो सफलता स्वयं सिद्ध है ।
असफलता का कारण अहं है आत्म नही ।
मैं आत्मदोषी नहीं अहं दोषी हूँ ।



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