Saturday, November 24, 2018

दीपावली



छात्राएँ  :
कक्षा दस में पढ़ने वाली छात्राएँ-सुलभा, वन्दना, प्रीति, कल्पना, प्रभा, मीरा, कुमुद, निर्मला तथा अन्य छात्राएँ
अध्यापिका       : रीता कुलश्रेष्ठ
वेशभूषा
छात्राएँ  : विद्यालय की वेशभूषा में हैं।
अध्यापिका साड़ी पहने हैं।




(पर्दा खुलता है)
(प्रथम दृश्य)
(विद्यालय की कक्षा दस का दृश्य। कन्या विद्यालय है। पढ़ने वाली छात्राएँ हैं। मंच पर ब्लैकबोर्ड रखा है।)
(अध्यापिका का प्रवेश)
(सब बच्चे अपने-अपने स्थान पर खड़े हो जाते हैं।)
बच्चे     : सुप्रभात मैडम!
मैडम    : सुप्रभात बच्चों! बैठ जाओ बच्चों! दीपावली की छुट्टियाँ होने वाली हैं, आज तुम्हें पर्यावरणीय अपकर्षण के बारे में बताएँगे। दीपावली में जो पटाखे जलाएँ जाते हैं, उनसे पर्यावरण की गुणवत्ता में कमी आती है, प्रदूषण बढ़ता है। तुममें से कोई बता सकता है कि ओजोन परत क्या है?
(सुलभा हाथ खड़ा करती है।)
मैडम    : हाँ सुलभा! बताओ।
सुलभा              :     ओजोन परत इस तरह काम करती है, मानो एक पतला कम्बल पृथ्वी को लपेटे हुए इसकी रक्षा कर रहा है। जहाँ सूर्य की अन्य किरणें हमारे जीवन के लिए अनिवार्य हैं, वहीं उसकी पराबैगनी किरणें (Ultraviolet Rays) हमारे लिए बहुत हानिकारक हैं। ओजोन परत सूर्य की पराबैगनी किरणों (Ultraviolet Rays) को अवशोषित (Absorb) कर लेती है और हम तक पहुँचने नहीं देती है।ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं (Atom) से ओजोन का एक अणु (Molecule) बनता है। यह एक वायुमंडलीय गैस है और पृथ्वी के लिए सुरक्षाकवच का काम करती है।

मैडम    : (सुलभा के पास कर उसकी पीठ थपथपाती हैं।) बहुत सही, सारगर्भित और सटीक जानकारी दी है।
                         
 
                         पर्यावरण सम्बन्धी समस्याएँ इतनी विकट हो चुकी हैं कि हमारे अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है। तुम्हें पता ही है कि ओजोन परत में छेद हो गया है, जो प्रतिवर्ष बड़ा होता जा रहा है। अभी जैसा सुलभा ने बताया कि ओजोन परत हमारी  पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच का काम करती है, ऐसी दशा में ओजोन-परत में छेद हो जाना कितना घातक है।
बच्चों! तुम बता सकते हो कि कैसे दीपावली मनाई जाए जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुँचे।
(वन्दना हाथ खड़ा करती है।)
मैडम    : हाँ बताओ।
वन्दना : पटाखा नहीं जलाना है।
            पर्यावरण बचाना है।
मैडम    : शाबाश! और कोई?
प्रीति     : मिठाइयों के रूप में खुशियाँ बाँटो।
            पटाखों के रूप में भस्म करो ।।
मैडम    : बहुत अच्छा, और कवियित्री महोदया, कल्पना! अपनी कल्पना में पंख लगाकर कुछ बोलो।
(सब हँसने लगे)
कल्पना            : दीपावली मनानी है, पटाखावाली भगानी है।
                         अपने बलबूते पर हमको, जन-जन में क्रांति लानी है।
मैडम    : वाह, वाह! बहुत अच्छा!
(प्रभा हाथ खड़ा करती है)
प्रभा      : मैडम! अभी-अभी कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं।
मैडम    : बोलो!
प्रभा      : पटाखे खरीदना बंद करो, बिकने भी बंद हो जाएँगे। उन मासूमों के हाथ सिकने भी बंद हो जाएँगे।


मैडम    : प्रभा यहाँ आओ। (प्रभा आती है, मैडम उसे गले लगा लेती हैं भरे गले से बोलती हैं)-मेरी बच्ची! तुम्हारे अन्दर काव्य प्रतिभा के साथ-साथ कितना दर्द है गरीबों के लिए। बेटी! इस कविता को ब्लैक बोर्ड पर लिखो।
(प्रभा लिखती है।)
मैडम    : बच्चों! इस कविता की दूसरी लाइन देखो-उन मासूमों के हाथ सिंकने भी बंद हो जाएँगे से क्या                 समझे?
मीरा     : जो लोग पटाखे बनाने की फैक्ट्री में काम करते हैं, उनको भी तो नुकसान पहुँचता है, उन्हीं के लिए लिखा है।
मैडम    : शाबाश मीरा! बहुत ठीक कहा। प्रभा! जाकर बैठ जाओ।
(प्रभा जाकर अपनी सीट पर बैठ जाती है।)
                                            अब मैं भी दो पंक्तियाँ बोलती हूँ-
बारूद के क्षणिक प्रकाश में, छिपा है घना अँधेरा।
इसे बनाने के लिए, कितनों का उजड़ता है बसेरा ।।
(मैडम इन पंक्तियों को ब्लैक बोर्ड पर लिख देती हैं।)
मैडम    : बच्चों! तुम्हें पता है पटाखे बारूद से बनते हैं, इन बारूद की फैक्ट्रियों में काम करने वाले मजदूरों का स्वास्थ्य बहुत खराब हो जाता है, इसी कारण कई बार असमय मृत्यु भी हो जाती है।
कुमुद    : (हाथ खड़ा करती है)
मैडम    : हाँ कुमुद!
कुमुद    : मैडम! अभी-अभी लिखा है-
दीप जलाकर खुशियाँ मनाओ।
बारूद के ढेर में आत्मा को सुलगाओ ।।
मैडम    : शाबाश कुमुद! बहुत अच्छा, बहुत अच्छा।
(घंटी बजती है।)
मैडम    :अच्छा बच्चों! घंटी बज गई है, यह बताओ इस दीपावली को कैसे मनाओगे ?
सब एक साथ: हम पटाखे नहीं जलाएँगे।
मैडम         : धरती को स्वर्ग बनाएँगे।
सब एक साथ: धरती को स्वर्ग बनाएँगे।
(पटाक्षेप)

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