दर्द इतना बढ़ा कि पता ही न चला ।
अंगुली कटी मेरी कि गला भी कट चला । ।
दोस्तों की खोज में भटकते चले गए ।
न मिले दोस्त ख्वाब दोस्ती का लिए रहे । ।
तुम चरणों की रज से माँ, अब मुझको जीवन दे देना ।
ज्ञान ज्योति की उस तरंग से, आपूरित कर मन देना । ।
प्रेम की वीणा के प्रिय कर तार झंकृत गीत दे दो ।
गीत के संगीत को प्रिय, तान दे कर मोल दे दो । ।
कुछ नशा ऐसा चढ़ा कि दुनिया का नशा भूल गया ।
‘शिखा’ को दीपक ही याद रहा, बाकी सहारा छूट गया । ।
मैने जगना सीख लिया है, तोड़ दिया सोने का हार ।
जिस चुप को राज कहती हो, वही तो बोलता हरदम । ।
रात को ले कर सोए थे, प्यार भरे नयनों को तेरे ।
स्वप्न ने आ कर तोड़ दिया, अहसास दिलाया सत्य मुझे । ।
स्वप्न तो आया था मन में, बीत गया वह जीवन में ।
दूर हो गई सुखद अरुणिमा, दूर हो गए तुम मुझसे । ।
पड़े रहे हम निपट अकेले, घूम रहे मन को कलपाते ।
भटक रहे हैं राहों में अब, जीवन को कुछ–कुछ समझाते । ।
आँसू तुम अब हो क्यों बहते, दुनिया की सब बातें सहते ।
कोई न समझ पाया गरिमा, यूँ ही बहते हैं सब कहते । ।
ठोकर मार हृदय–मन में प्रिय, छोड़ दिया है एकाकी ।
टूटेगा जीवन कलपन से, है इसका एहसास नही ।
घृणा स्वयं आश्चर्ययुक्त हो, अविचल हो साकार हुई ।
श्रद्धा का प्रतिफल जीवन में, नफरत का अवलम्ब बनी । ।
अपमानित कर प्रेम अतुल, क्या पाओगे तुम मेरे जीवन ।
पाकर यह सौन्दर्य विमल, क्यों नहीं हुआ उल्लसित हृदय मन । ।
मैने जगना सीख लिया है, तोड़ दिया सोने का हार ।
जिस चुप को राज कहती हो, वही तो बोलता हरदम । ।
हमारी अंगूठी नगीने बिना है, सही ज्ञान की यह अभिज्ञान मेरी ।
मेरी याद को तुम भुला न सकोगे, संस्मृति सदा ही हमारी रहेगी । ।
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