Monday, November 26, 2018

नित्यानन्द



हे ईश्वर! हे प्रभु!
तू क्यों मेरी परीक्षा लेने के लिए कटिबद्ध है ।
मैं तेरे समक्ष निरी शिशु हूँ ।
मेरी याचना को स्वीकार कर,
मेरे अपराधों को क्षमा कर ।
अपराध, त्रुटियाँ मनुष्य का स्वभाव है ।
त्रुटियों पर ध्यान न देकर–
मुझे अपने चरणों में लगाए रख ।
तेरे चरणों में ही मेरी प्रीति लगी रहे ।
मेरे में कोई फल–कामना न हो,
मैं फल के विषय में चिन्तन न कर सकूँ ।
तू जो चाहे कर,
मैं उस आनन्द, उस सत्य के विषय में तर्क न कर सकूँ । ।
वह आनन्द नित्य है, वही सत्य है ।
मैं उस आनन्द को समझ नहीं पाती ।
जब मिलता है तो सोचती हूँ–––– क्यों मिल रहा है ?
उस आनन्द को छोड़कर अन्य सब मरीचिका है, आवरण है ।
वह आनन्द प्राप्त है तो अन्य की ओर क्यों भागूँ ?
उस प्रकाश में प्रकाशित रहूँ,
नित्य सत्यानन्द प्रकाश में सदा सर्वदा । ।

No comments:

Post a Comment