Sunday, November 25, 2018

ध्वनि प्रदूषण


पात्र परिचय
बच्चे
रिम्मी-आयु पाँच वर्ष
पड़ोस के बच्चे आयु लगभग दस से बारह वर्ष
नीरज
गगनदीप
धीरज
प्रभाकर
सुखमय
रवि
नवेली
सुनील
पुरुष पात्र
दादा जी: रिम्मी के दादा जी
आयु लगभग साठ वर्ष
वेशभूषा
पात्र-अभिनय के अनुकूल वेशभूषा











(पर्दा खुलता है)
(दृश्य)
(घर का दृश्य है। एक बूढ़े व्यक्ति तखत पर बैठे हैं। कुछ बच्चे उन्हें आसपास घेरकर बैठे हैं।)
प्रभाकर : दादाजी कहानी सुनाइए।
दादाजी : बच्चों! कहानी तो सुनाऊँगा, लेकिन आज मेरा मन बहुत परेशान है।
सब बच्चे          : (एक साथ) क्या हुआ दादाजी!
दादाजी : (दुखी स्वर में) बच्चों! ध्वनि-प्रदूषण बहुत बढ़ रहा है। इससे शरीर मन की सेहत को नुकसान पहुँचता है। लोग तेज स्वर में संगीत बजाते हैं। समझाने से मानते नहीं हैं।
रिम्मी   : हमारे टीचर लोग भी कहते हैं, शोर मत मचाओ।
दादाजी : (हँसते हुए) बेटी! बच्चों के शोर से इतना अंतर नहीं पड़ता है। लोग शादियों धार्मिक उत्सवों में रात-रात भर लाउडस्पीकर बजाते हैं।
आज ही गाँव से फोन आया था। मेरे एक मित्र का कान इन्हीं लाउडस्पीकरों के शोर के कारण बुरी तरह सूज गया है।


रवि                  : हाँ दादाजी! लोग मोबाइल में गाने लगा देते हैं। कुछ लोग तो अपने कान में लीड लगाकर सुनते हैं। कुछ लोग वैसे ही तेज आवाज में बजाते हैं। इससे दूसरे लोगों को परेशानी होती है।
दादाजी : रवि! मोबाइल में गाना लगा देने से दूसरे लोगों को परेशान नहीं करना चाहिए। खुद भी लीड लगाकर सुनने से भी बहुत हानि होती है।

गगनदीप          : दादाजी! क्या हानि होती है?
दादाजी : (समझाते हुए) बच्चों! आधुनिक तकनीकें एक ओर सुविधाजनक हैं। दूसरी ओर इनसे सेहत को हानि पहुँच रही है। मोबाइल की तरंगें वैसे भी सेहत के लिए ठीक नहीं हैं। मोबाइल का उपयोग जितना सम्भव हो कम      से कम किया जाए। दूसरा कान में लीड लगा कर सुनने से ध्वनि तरंगों के दुष्प्रभाव के साथ-साथ मोबाइल-तरंगों का दुष्प्रभाव भी पड़ता है।

धीरज   : दादाजी! आप कहते हैं कि सुबह जल्दी उठो। चिड़ियों की चहचहाट सुनो, पक्षियों का संगीत सुनो। यह संगीत हमारे लिए लाभदायक है?
दादाजी : धीरज! यह प्राकृतिक संगीत है। पत्तों की खड़खड़ाहट, पक्षियों का शोर, गाय का रम्भाना आदि। यह सब मन को शान्ति देता है।

प्रभाकर : दादाजी! शादियों धार्मिक सभाओं में लोग रात-रात भर लाउडस्पीकर बजाते हैं। इससे लोगों को बहुत परेशानी होती है। शाम को सुबह पढ़ नहीं पाते हैं और रात को सो नहीं पाते हैं।
दादाजी : (दुःखी आवाज में) हाँ प्रभाकर बेटा! शादियों धार्मिक सभाओं में इतना तेज लाउडस्पीकर नहीं बजाना चाहिए। इससे भगवान खुश नहीं नाराज होते हैं।

सुखमय            : दादाजी! यह ध्वनि प्रदूषण कैसे रोका जा सकता है?
दादाजी : सुखमय बेटा! डेसीबल ध्वनि तीव्रता की इकाई होती है। लाउडस्पीकर का प्रयोग करने के लिए सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है। सरकार द्वारा निर्धारित डेसीबल से तेज आवाज में लाउडस्पीकर नहीं बजाया जा सकता है।

नीरज   : दादाजी! जब सभी लोग अनुमति लेकर लाउडस्पीकर बजाते हैं। तब तेज डेसीबल में लाउडस्पीकर कैसे बजाते हैं?
दादाजी : (आह भरते हुए) बेटा! यही तो दुर्भाग्य है। कुछ लोग बिना अनुमति लिए ही लाउडस्पीकर लगा देते हैं।
नीरज   : दादाजी! तब उन पर कोई जुर्माना नहीं लगता है?

दादाजी : जुर्माना तो तब लगेगा , जब सम्बन्धित विभाग को पता चलेगा। मोहल्ले वालों में जागरूकता की कमी होती है। वह रातभर लाउडस्पीकर बजाने वाले की रिपोर्ट नहीं करते हैं।
नवेली   : ठीक कहते हैं दादाजी! गर्मियों की छुट्टियों में मामाजी के यहाँ गई थी। वहाँ पर लोग तेज आवाज में टी.वी. चलाते हैं। देवी जागरण के नाम पर कई-कई दिन रातभर लाउडस्पीकर बजता है।

दादाजी : (खड़े होकर नाटकीय तरीके से) नवेली ठीक कहती है। हाँ तो बच्चों! जागरूक हो जाओ।

(सब बच्चे भी खड़े हो जाते हैं।)

सब बच्चे          : (हाथ ऊपर करके) हम जागरूक हैं।
दादाजी : बच्चों! आज से हम प्रतिज्ञा करें- ‘तेज आवाज में लाउडस्पीकर नहीं बजने देंगे। सम्बन्धित व्यक्ति को समझाएँगे। उसके मानने पर उसकी रिपोर्ट करेंगे।

सब बच्चे          : आज से हम प्रतिज्ञा करते हैं कि तेज आवाज में लाउडस्पीकर नहीं बजने देंगे। सम्बन्धित व्यक्ति को समझाएँगे। उसके मानने पर उसकी रिपोर्ट करेंगे।
नवेली   : दादाजी! मोबाइल पर तेज आवाज में खुद गाने नहीं सुनेंगे, दूसरों को भी तेज आवाज में गाने नहीं बजाने देंगे।
नीरज   : (नवेली को चिढ़ाते हुए) छिपकली जी! आप खुद भी मोबाइल की लीड लगाकर गाने नहीं सुनेंगी। इससे आपके मस्तिष्क पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।

(सब हँसने लगते हैं।)

दादाजी : (हँसते हुए) ठीक कहता है नीरज! बच्चे आजकल मोबाइल की लीड कान में लगाए रहते हैं। लैपटॉप पर या मोबाइल पर गेम खेलते हैं। यह ठीक नहीं है। इससे आँखों, मस्तिष्क सामान्य स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।
धीरज   : दादाजी! मनोरंजन कैसे करें?
दादाजी : मनोरंजन अर्थात् मन की खुशी। दौड़ो, खेलो-कूदो। इससे शरीर और मन का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। बातें करो, कहानी सुनो, इससे मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान भी बढ़ता है।
सुनील  : अरे दादाजी! आज कहानी तो सुनाई ही नहीं।
दादाजी : चलो सुनाते हैं कहानी।
(रिम्मी उचक कर दादाजी की गोद में बैठ जाती है।)
(पटाक्षेप)

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